पिछले दिनों कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने सब्ज़ी विक्रेता रामेश्वर और उनके परिवार से मुलाकात की थी। राहुल और रामेश्वर ने साथ खाना खाया था। मुलाकात को लेकर राहुल गांधी ने X (ट्विटर) पर लिखा था, “रामेश्वर जी एक ज़िंदादिल इंसान हैं! उनमें करोड़ों भारतीयों के सहज स्वभाव की झलक दिखती है। विपरीत परिस्थितियों में भी मुस्कुराते हुए मज़बूती से आगे बढ़ने वाले ही सही मायने में ‘भारत भाग्य विधाता’ हैं।”
राहुल गांधी ने जब रामेश्वर से मुलाकात का वीडियो सोशल मीडिया पर शेयर किया तो कुछ लोगों ने यह मांग उठाई कि कांग्रेस नेता सब्जी विक्रेता को दिल्ली से लोकसभा का टिकट क्यों नहीं दे देते?
सोशल मीडिया यूजर्स के इस सवाल से 80 के दशक एक किस्सा याद आता है, जब कांग्रेस के बड़े नेता और प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के बेटे संजय गांधी ने एक फल विक्रेता को लोकसभा के चुनाव में उतार दिया था।
जेल गए संजय गांधी की फल विक्रेता से मुलाकात
आपातकाल के बाद हुए सन् 1977 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की बुरी हार हुई थी। प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी खुद रायबरेली से अपनी सीट हार गई थीं। आपातकाल के दौरान कुख्यात हुए संजय गांधी को भी अमेठी में पटखनी मिली थी।
जयप्रकाश नारायण के प्रयास पर कई दलों के साथ आने से बनी जनता पार्टी को बहुमत मिली थी। तब बतौर प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई ने देश की पहली गैर-कांग्रेसी सरकार का नेतृत्व किया था।
1979 में दिल्ली की तीस हजारी कोर्ट ने संजय गांधी को दो साल कारावास की सजा सुनाई थी। उनपर बॉलीवुड फिल्म ‘किस्सा कुर्सी का’ ओरिजिनल प्रिंट जलाने का दोष साबित हुआ था। तीस हजारी के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई लेकिन अदालत ने जमानत याचिका रद्द कर उन्हें एक महीने के लिए तिहाड़ जेल (दिल्ली) भेज दिया। फिल्म ‘किस्सा कुर्सी का’ इंदिरा गांधी की सरकार पर आधारित थी।
जेल में ही संजय गांधी की मुलाकात फल बेचने वाले कल्पनाथ सोनकर से हुई थी।
जेल से निकल संजय ने की सोनकर की तलाश
जेल से निकलने के बाद संजय गांधी ने कल्पनाथ सोनकर की तलाश शुरु की। आखिरकार सोनकर मिल गए। बस्ती के रहने वाले सोनकर राजनीति का ‘क ख ग’ भी नहीं जानते थे। हालांकि समाज की समस्याओं पर खुलकर बोलते थे। संजय गांधी ने 1980 के लोकसभा चुनाव में उन्हें बस्ती सीट से कांग्रेस का प्रत्याशी घोषित कर दिया।
फल बेचने वाले सोनकर का इस सीट पर जनता पार्टी सरकार में रेल राज्यमंत्री रहे शिव नरायन से मुकाबला था। चुनाव परिणाम ने सबको चौंका कर रख दिया। कल्पनाथ ने शिव नरायन को हरा दिया। संजय ने जेल में मिले अपने फल विक्रेता मित्र को संसद में पहुंचा दिया। सोनकर 1989 में भी इस सीट से जीते। संजय गांधी के बाद सोनकर मेनका गांधी के करीबी हो गए।