12 मार्च, 1993 को मुंबई में 12 जगहों पर बम धमाके हुए थे। तब राज्य की कमान शरद पवार के हाथों में थी। वह धमाकों से मात्र छह दिन पहले 6 मार्च, 1993 को चौथी बार मैंने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बने थे। मुम्बई बम धमाकों से बॉलीवुड अभिनेता संजय दत्ता का भी नाम जुड़ा था।

सीमा पार से आया था RDX

शरद पवार की सरकार हमला रोकने में तो कामयाब नहीं हो सकी थी लेकिन जांच की गति तेज कर साजिश से पर्दाफाश जरूर कर दिया था। सरकार को बहुत जल्द यह पता चल गया कि विस्फोटों के लिए इस्तेमाल हुआ आर.डी.एक्स. सीमा पार से आया था।

राजकमल प्रकाशन से छपी अपनी आत्मकथा ‘अपनी शर्तों पर’ में शरद पवार लिखते हैं, “जांच से पता चला कि विस्फोटों में आर.डी.एक्स. का प्रयोग हुआ है। इस तथ्य से यह स्पष्ट हो गया कि यह विस्फोट गहरी साजिश का हिस्सा है क्योंकि आर.डी.एक्स. न तो मुंबई में बनता है और न किसी के पास इसका लाइसेंस है।

मैंने हथियार निर्माता फैक्ट्रियों से सम्पर्क कर उनके आर.डी.एक्स. स्टॉक की जानकारी ली। उन्होंने अपने फैक्टरी परिसर से किसी प्रकार की स्मगलिंग या अन्य तरीके से आर. डी. एक्स. गायब होने से इनकार किया। इसका मतलब था कि आतंकवादियों ने विस्फोटक पदार्थ सीमा पार से प्राप्त किया था।”

संजय दत्त के घर बंदूक गलाने का प्रयास

बम धमाकों की शुरुआती जांच में पुलिस ने कई स्थानों पर छापेमारी कर सैकड़ों संदिग्ध लोगों को गिरफ्तार किया। उसी दौरान यह बात सामने आई कि बम विस्फोट में टाइगर मेनन, याकूब मेनन और जावेद चिकना शामिल हैं। इन लोगों ने दाऊद इब्राहिम के साथ मिलकर इस साजिश को अंजाम दिया था। सभी को पाकिस्तान से समर्थन और सहयोग मिला था। बड़ी मात्रा में आर.डी.एक्स. और गोला-बारूद समुद्र के रास्ते रायगढ़ जिले के तट पर भेजा गया था और वहीं पर इसका भंडारण भी हुआ था।

भंडारण के अनेक जगहों में से एक हिन्दी फिल्म स्टार संजय दत्त का गैरेज भी था। पुलिस की जांच के दौरान यह पता चला कि उनके घर में एक बन्दूक को गलाने का प्रयास किया गया था। अंडर वर्ल्ड के साथ संजय दत्त के सम्बन्ध और उनके परिसर से हथियारों की बरामदी के समाचार ने लोगों को अचंभित कर दिया।

शरद पवार ने सुनील दत्त को बुलाया

संजय दत्त के पिता सुनील दत्त और मां नर्गिस केवल लोकप्रिय फिल्मी हस्तियां ही नहीं थे बल्कि वे साम्प्रदायिक सद्भाव के लिए काम करने वाले लोग भी थे। तब सुनील दत्त मुम्बई से कांग्रेस पार्टी के सांसद भी हुआ करते थे। दूसरी तरफ उनके बेटे का संबंध एक बहुत ही संगीन अपराध से जुड़ रहा था। बम विस्फोटों में 257 बेगुनाह लोगों की जानें गई थीं, सैकड़ों लोग घायल हुए थे और करोड़ों रुपए की सार्वजनिक संपत्ति का नुकसान हुआ था।

शरद पवार लिखते हैं, “सुनील दत्त की प्रतिष्ठा और उनकी सामाजिक स्थिति को देखते हुए मैंने उनको अपने कार्यालय में बुलाया और उनको पुलिस की जांच-पड़ताल और तथ्यों से अवगत कराया। वह बुरी तरह से सदमे में आ गए और किंकर्तव्यविमूढ़ स्थिति में थे। उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा, ‘यदि मेरा बेटा राष्ट्र-विरोधी गतिविधियों में लिप्त पाया गया है, तो मैं कानून की प्रक्रिया में बाधा नहीं डालूंगा। आप अपनी कार्यवाही कीजिए और उसे दंडित करिए।’ एक पिता के रूप में मैं सुनील दत्त के दर्द को भली प्रकार समझ सकता था लेकिन मेरे पास जांच को आगे बढ़ाने और कार्यवाही करने के अतिरिक्त कोई रास्ता नहीं था।”

जब टूट गए सुनील दत्त!

शुरुआत में सुनील दत्त ने भावना में बहे बिना कार्रवाई में सहयोग किया। तब संजय दत्त विदेश में थे। उन्होंने अपने बेटे को तुरंत भारत बुलाया। अप्रैल 1993 में मुम्बई पुलिस ने संजय दत्त को टेररिस्ट एंड डिस्प्यूटेड एक्टिविटीज (प्रिवेंशन) ऐक्ट (टी.ए.डी.ए.) के तहत हवाई अड्डे से ही गिरफ्तार कर लिया।

कुछ समय बाद सुनील दत्त पुत्र में मोह में टूट गए। वह शरद पवार से मिलने पहुंचे। पवार लिखते हैं, “सुनील दत्त ने मुझसे सम्पर्क कर कहा- उनके पुत्र के प्रति यदि केस में कोई उदारता सम्भव हो तो उस पर ध्यान दिया जाए। मैंने केस के सम्बन्ध में उनको विस्तार से बताया कि काफी मजबूत साक्ष्य मौजूद हैं। बड़े दुखी मन से वे हमारे कार्यालय से चले गए। मुझे भी काफी अफसोस हुआ परन्तु मेरे पास कोई विकल्प नहीं था। संजय दत्त के खिलाफ लम्बे समय तक अदालतों में मुकदमा चला। अन्त में सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के अनुसार उनको पांच वर्ष की कठोर कारावास की सजा सुनाई गई।”