अमृतसर के स्वर्ण मंदिर में ‘ऑपरेशन ब्लूस्टार’ के करीब 5 महीने बाद प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की उन्हीं के 2 बॉडीगार्ड बेअंत सिंह और सतवंत सिंह ने गोली मारकर हत्या कर दी। इंदिरा की हत्या के बाद सियासी उथल-पुथल मच गई थी। सिख विरोधी दंगे शुरू हो गए और हर जगह सिखों को शक के नजरिए से देखा जाने लगा। सरकारी मशीनरी भी इससे अछूती नहीं रही।

RAW के किस फैसला पर मच गया था घमासान?

खुफिया एजेंसी RAW के स्पेशल सेक्रेट्री रहे जीबीएस सिद्धू ने अपनी चर्चित किताब The Khalistan Story में ऑपरेशन ब्लूस्टार और इंदिरा की हत्या के बाद की घटनाओं को सिलसिलेवार बयां किया है। सिद्धू अपनी किताब में दावा करते हैं कि इंदिरा की हत्या के बाद खुफिया एजेंसी रॉ में एक अलिखित फैसला ले लिया गया कि पश्चिमी यूरोप और उत्तरी अमेरिका के RAW के स्टेशनों में किसी भी सिख अधिकारी या स्टाफ की तैनाती नहीं होगी। तर्क दिया गया कि उन पर भरोसा नहीं किया जा सकता है।

हर साल सेक्रेटरी को भेजते थे नोट

सिद्धू दावा करते हैं कि चूंकि यह निर्णय शीर्ष स्तर पर लिया गया था, ऐसे में संभव है कि अन्य डिपार्टमेंट में भी इसी तरह के निर्देश दिए गए होंगे। सरकार के इस फैसले के बाद मैं खुद यूरोप और उत्तरी अमेरिका में रॉ के स्टेशनों में तैनाती के योग्य नहीं रह गया था। जनवरी 1985 के बाद मैं हर साल डिपार्टमेंट के सेक्रेटरी (आर) को एक नोट लिखकर भेजने लगा कि व्यक्तिगत कारणों से विदेश में काम नहीं कर पाऊंगा। जबकि इसके पीछे की असल वजह यह थी कि मैं अपने चुनाव में धर्म की बात नहीं आने देना चाहता था।

सिद्धू लिखते हैं यह 1985 के मध्य की बात है। एजेंसी में एक बहुत सीनियर सिख अफसर थे। वे पहले दो-दो ‘सी क्लास’ स्टेशन को लीड कर चुके थे। नियम के मुताबिक उन्हें ‘ए क्लास स्टेशन’ में तैनात किया जाना चाहिए था, लेकिन जब उनका तीसरा बाद ट्रांसफर हुआ तो फिर ‘सी क्लास स्टेशन’ ही दे दिया गया।

जब सेक्रेटरी से भिड़ गए अफसर

सबकुछ ऐसे ही चलता रहा। 1989 के मध्य की बात है। ऐसे ही एक बेहूदा निर्णय पर सेक्रेटरी एके वर्मा के साथ मेरी तीखी बहस हो गई। मैंने कहा कि मेरे परिवार का लगभग सौ पीढ़ियों का कुर्सी-नामा है। 18 पीढ़ियां सिख रही हैं। भारत में ही पैदा हुईं और मरी हैं। हरिद्वार के पंडों के पास मेरे परिवार का रिकॉर्ड है। बातचीत मैंने सोनिया गांधी का भी नाम ले लिया। मैंने कहा मेरे जैसे बैकग्राउंड वाले किसी व्यक्ति पर भरोसा क्यों नहीं किया जा सकता? जबकि विदेशी मूल की एक महिला, जिसकी भारत में पहली पीढ़ी और वह प्रधानमंत्री की पत्नी बनकर 1 सफदरजंग रोड में रह रही हैं। क्या आप उनकी विश्वसनीयता से संतुष्ट हैं?

बहस में ले लिया था सोनिया गांधी का नाम

सिद्धू लिखते हैं कि उस वक्त मुझे अपनी वफादारी और ईमानदारी साबित करने के लिए सोनिया गांधी का संदर्भ देना पड़ा, क्योंकि कोई और दूसरा उदाहरण समझ में नहीं आ रहा था। सिख अफसरों से जुड़ा फैसला उनके पति और तत्कालीन पीएम राजीव गांधी ने ही लिया था।

खुफिया एजेंसी रॉ में 26 साल बिताने वाले जीबीएस सिद्धू अपनी किताब में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद का एक और वाकया बयां करते हैं, जो 1985 के मध्य का है। सिद्धू लिखते हैं कि मैं दिल्ली के लोधी रोड स्थित पोस्ट आफिस एक चिट्ठी स्पीड पोस्ट करने गया था। काउंटर पर 7-8 लोगों की लाइन थी। मेरे आगे बस एक आदमी खड़ा था। मैं अपनी बारी का इंतजार कर रहा था। तभी 30-32 साल का एक व्यक्ति, जो ऑफिस का चपरासी लग रहा था..ढेर सारे लिफाफे लेकर आया और मेरे आगे खड़ा हो गया।

जब पोस्ट ऑफिस में चीखने लगा शख़्स

जब मैंने उसे पीछे लाइन में जाकर खड़े होने को कहा तो चिल्लाने लगा और बोला- ‘क्यों, ये लोग अभी तक भारत में ही घूम रहे हैं? भारत छोड़कर अपने देश क्यों नहीं जाते हैं? सिद्धू लिखते हैं कि उस समय मुझमें इतनी ताकत थी कि उसे वहीं गिरा देता और पूछता कि तुम होते कौन हो मुझे मेरा देश छोड़कर जाने के लिए? यहीं पैदा हुआ हूं और यहीं आखिरी सांस लूंगा, लेकिन मैंने बहस करना उचित नहीं समझा। बाद में इस तरह की और घटनाएं सुनने को मिलती रहीं।