साल 1977 में इमरजेंसी के ठीक बाद जब लोकसभा चुनाव हुए तो कांग्रेस (Congress) को बुरी हार का सामना करना पड़ा। जनता पार्टी की सरकार बनी और चौधरी चरण सिंह (Chaudhary Charan Singh) गृह मंत्री बने। चरण सिंह ने 9 कांग्रेस शासित राज्यों को चिट्ठी लिखी और कहा कि वे राज्यपाल से विधानसभा भंग कर नए चुनाव के ऐलान की मांग करें। इन नौ राज्यों में से 6 राज्यों की सरकारें, चिट्ठी को अवैध बताते हुए सुप्रीम कोर्ट चली गईं।

फैसले में कर दिया मुलाकात का खुलासा

29 अप्रैल 1977 को सुप्रीम कोर्ट की 7 जजों की बेंच ने बिना कोई कारण बताते हुए राज्यों की याचिका खारिज कर दी। कहा कि एक दूसरे जजमेंट में वजह बताएंगे। करीब सप्ताह भर बाद 6 मई 1977 को सुप्रीम कोर्ट ने ‘राजस्थान बनाम यूनियन ऑफ इंडिया’ केस में अपना फैसला सुनाया। फैसला सुनाने वाले जजों में जस्टिस पीके गोस्वामी भी शामिल थे।

उन्होंने इस फैसले को ह‍िला देने वाला फैसला बताया और अंत में ल‍िखा- चीफ जस्टिस मिर्जा हमीदुल्ला बेग ( Mirza Hameedullah Beg) ने उन्हें और बाकी जजों को सूचित किया था कि 29 अप्रैल के जजमेंट के बाद कार्यकारी राष्ट्रपति बीडी जत्ती उनसे मिलने गए थे और उस मुलाकात में इस केस का भी जिक्र हुआ था।

जस्टिस गोस्वामी ने लिखा- मैंने इस बात को बहुत गंभीरता से ल‍िया और इस पर बहुत सोच-व‍िचार क‍िया। मुझे उम्‍मीद है क‍ि सर्वोच्‍च पद पर बैठे राष्‍ट्रपत‍ि को क‍िसी भी व‍िवाद से परे रखा जाएगा और भव‍िष्‍य में भी उन्‍हें इससे कोई क्षत‍ि नहीं उठानी पड़ेगी

जजमेंट पढ़ उखड़ गए थे CJI

जब चीफ जस्टिस बेग ने गोस्वामी का जजमेंट पढ़ा तो उसी द‍िन (6 मई को) एक प्रेस स्टेटमेंट जारी कर दिया। इस स्टेटमेंट में लिखा कि जस्टिस गोस्वामी का ऑब्जर्वेशन गलत धारणाओं पर आधारित था। जस्टिस बेग ने लिखा कि कार्यकारी राष्ट्रपति जत्ती उन्हें अपने बेटे के रिसेप्शन के लिए इनवाइट करने आए थे और इस केस के बारे में एक शब्द तक बात नहीं हुई।

एडवोकेट और CJI डीवाई चंद्रचूड़ के बेटे अभिनव चंद्रचूड़ पेंगुइन पब्लिकेशन से प्रकाशित अपनी किताब ‘Supreme Whisper’ में लिखते हैं कि जत्ती के बेटे का रिसेप्शन 7 मई को था। यदि जस्टिस बेग इस कार्यक्रम में शामिल होते तो उनकी बीडी जत्ती और केंद्र सरकार के तमाम मंत्रियों से मुलाकात होती। इसीलिए जत्ती चाहते थे कि सुप्रीम कोर्ट का जजमेंट उनके बेटे के रिसेप्शन से पहले आ जाए, ताकि रिसेप्शन के दौरान कोई असहज स्थिति ना बने।

बाद में जस्टिस बेग ने अमेरिकन स्कॉलर प्रोफेसर जॉर्ज एच. गेडबॉयस (जूनियर) को दिये इंटरव्यू में जस्टिस गोस्वामी की तीखी आलोचना की थी। कहा कि यह बहुत अफसोस की बात थी कि जस्टिस गोस्वामी ने ‘चीफ जस्टिस’ को गलत समझा, जो बस इतना चाहते थे कि गर्मी की छुट्टियों के लिए कोर्ट बंद होने या जत्ती के बेटे के रिसेप्शन से पहले जजमेंट आ जाए, ताकि कोई असहज स्थिति ना बने।

CJI की जत्ती से फोन पर क्या बात हुई थी?

अभिनव चंद्रचूड़ लिखते हैं कि हालांकि जस्टिस बेग ने जो प्रेस रिलीज जारी की थी, उसमें पूरी जानकारी नहीं दी थी। कार्यकारी राष्ट्रपति जत्ती और चीफ जस्टिस बेग के बीच इससे कहीं ज्यादा बात हुई थी। जत्ती ने जस्टिस बेग फोन किया था और पूछा था कि अगर राज्य सरकारों को बर्खास्त करने वाले वारंट पर वह सिग्नेचर करने से इंकार कर दें तो इसके क्या परिणाम होंगे? उनका (बीडी जत्ती) का मानना था कि इस तरीके से वारंट पर साइन करना नैतिक रूप से गलत होगा।

अवमानना की कार्यवाही का मन बना लिया था

बॉम्बे हाईकोर्ट के एडवोकेट अभिनव चंद्रचूड़ लिखते हैं कि दरअसल जस्टिस बेग ने ही एक दिन अपने चेंबर में जजों के साथ डेली मीटिंग में जत्ती के साथ मुलाकात की चर्चा की थी। इसी इसी चर्चा से जस्टिस गोस्वामी को दोनों की मुलाकात का पता चला था। बाद में गोस्वामी के जजमेंट से जस्टिस बेग इतने नाराज हुए कि उनके खिलाफ अवमानना की कार्यवाही का मन बना लिया था।