14-15 अगस्त 1947 की मध्यरात्रि भारत को विभाजन की त्रासदी के साथ आजादी मिली थी। दुनिया के मानचित्र पर पाकिस्तान का उदय हुआ था। विभाजन के लिए सबसे अधिक जिम्मेदार जिन्ना को माना गया। पाकिस्तान का निर्माण उनका सपना था। लेकिन वे अपने सपनों के पाकिस्तान में सिर्फ 13 महीने की जिंदगी जी सकें। 11 सितंबर, 1948 को 72 साल की उम्र में उनका निधन टीबी की बीमारी से हो गया। हालांकि उससे पहले ही उन्हें पाकिस्तान बनाने की अपनी गलती का अहसास हो चुका था।
जब फैसले पर हुआ अफसोस : भारत-पाकिस्तान के विभाजन से जमीन लहूलुहान हो उठा था। कारण करीब सवा करोड़ लोगों को अपना घर बार छोड़ देश बदलने को मजबूर होना पड़ा था। 10 लाख के करीब लोग पलायन और हिंसा में मारे गए थे। हजारों महिलाओं का अपहरण हुआ और बड़ी संख्या में उनके साथ बलात्कार हुआ था। यह दुनिया की कुछ सबसे बड़ी त्रासदियों में एक था।
जिन्ना इन खबरों से बुरी तरह हताश थे। उन्हें विश्वास नहीं हो रहा था कि दोनों देशों से इतने बड़े पैमाने पर पलायन हो रहा है। वरिष्ठ पत्रकार कुलदीप नैयर की आत्मकथा ‘एक जिंदगी काफी नहीं’ में जिन्ना के एक हवाई दौरे का जिक्र मिलता है, जो उन्हें विभाजित पंजाब को ऊपर से दिखाने के लिए तय किया गया था। इस दौरे पर जिन्ना के साथ पाकिस्तान के पुनर्वास मंत्री इफ्तिखार-उद-दीन और पाकिस्तान टाइम्स के संपादक मजहर अली खान भी गए थे। तीनों लाहौर से एक डकोटा विमान में बैठकर सरहदी इलाकों में ऊपर पहुंचे। नीचे शरणार्थियों का अंतहीन काफिला चल रहा था, जिसे देखकर जिन्ना ने अपना माथा पटकते हुए अफसोस से कहा, ”यह मैंने क्या कर डाला”
नहीं था त्रासदी का अंदाजा? : कांग्रेस और मुस्लिम लीग दोनों ने आबादी की अदला-बदली के प्रस्ताव को ठुकरा दिया था। जिन्ना के सचिव के.एच. खुर्शीद ने नैयर को बताया था कि जिन्ना ने कभी कल्पना भी नहीं की थी कि विभाजन के बाद इतने बड़े पैमाने पर हिंसा और पलायन होगा।
खुर्शीद की मानें तो विभाजन के बाद जिन्ना का प्लान पाकिस्तान को एक संसदीय प्रजातंत्र बनाना था। उन्होंने घोषणा की थी कि सरकार धर्म के नाम पर किसी से भेदभाव नहीं करेगी। वह दो राष्ट्र के अपने ही सिद्धांत की पुनर्व्याख्या करने लगे थे। जनता को भरोसा दिलाने के लिए उन्होंने पाकिस्तान का राष्ट्रगीत लिखने का जिम्मा उर्दू के हिन्दू शायर जगननाथ आजाद को दिया था। हालांकि जिन्ना की मौत के बाद राष्ट्रगीत बदल दिया गया।