प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पूर्व प्रधान सचिव नृपेंद्र मिश्रा पिछले तीन साल से राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट की निर्माण समिति के अध्यक्ष हैं। द इंडियन एक्सप्रेस के भूपेंद्र पांडेय और पी वैद्यनाथन अय्यर से बातचीत में नृपेंद्र मिश्रा ने बताया है कि वह PMO (प्रधानमंत्री कार्यालय) छोड़ने के बाद कौन सा पद चाहते थे और निर्माण समिति का अध्यक्ष कैसे बनाए गए।

किस पद पर थी नजर?

सुप्रीम कोर्ट ने  नौ नवम्बर, 2019 को दिए अपने फैसले में केंद्र सरकार को तीन महीने में ट्रस्ट बनाने को कहा था। छह फरवरी, 2020 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संसद में बताया था कि कैबिनेट ने राम मंदिर ट्रस्ट बनाने को मंजूरी दे दी है। ट्रस्ट की पहली बैठक 19 फरवरी, 2020 को हुई, जिसमें नृपेंद्र मिश्रा को मंदिर भवन निर्माण समिति का अध्यक्ष चुना गया।

लेकिन यहां तक पहुंचने की एक दिलचस्प बैक स्टोरी है, जो नृपेंद्र मिश्रा ने द इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में बताई है। मिश्रा 2014 से पीएमओ में नरेंद्र मोदी के साथ थे। अयोध्या विवाद पर फैसला आने से पहले अगस्त 2019 में मिश्रा पीएमओ छोड़ने का इरादा व्यक्त कर चुके थे। इसके बाद उन्हें नेहरू मेमोरियल ट्रस्ट का अध्यक्ष बना दिया गया था।

कुछ एक महीने बाद नृपेंद्र मिश्रा को प्रिंसिपल सेक्रेटरी पीके मिश्रा का कॉल आया। नृपेंद्र मिश्रा ने पीके मिश्रा को बताया कि वह चेयरमैन (नेहरू मेमोरियल ट्रस्ट का) तो बन चुके हैं, लेकिन अगर आप मुझसे पूछे तो मैं कुछ और बनना चाहूंगा।

नृपेंद्र मिश्रा के नजर दो सीटों पर थीं। एक था गवर्नरशिप। दूसरा था निर्माण समिति का अध्यक्ष। क्योंकि तब तक सुप्रीम कोर्ट का फैसला आ चुका था और ट्रस्ट बनाने की बात चल रही थी।

क्या नृपेंद्र मिश्रा को प्रधानमंत्री का आया था कॉल?

नृपेंद्र मिश्रा ने बातचीत में खुद ही स्पष्ट कर दिया कि उन्हें राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट की निर्माण समिति का अध्यक्ष बनाए जाने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का कॉल नहीं आया था। हां, लेकिन एक अन्य महत्वपूर्ण व्यक्ति का कॉल जरूर आया था।

नृपेंद्र मिश्रा द्वारा प्रिंसिपल सेक्रेटरी पीके मिश्रा के समक्ष अपनी इच्छा व्यक्त किए जाने के बाद उनके पास गृहमंत्री अमित शाह का कॉल आया। उन्होंने पूछा- आपने संकेत दिया है कि आप निर्माण समिति के अध्यक्ष बनना चाहते हैं? नृपेंद्र मिश्र मिश्रा ने गृहमंत्री के इस सवाल का जवाब- ‘हां’ में दिया।

इसके बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नृपेंद्र मिश्रा से कंफर्म किया कि क्या वह यह पद चाहते हैं। मिश्रा बताते हैं, “मुझे लगता है कि दो दिन के भीतर ट्रस्ट का ड्राफ्ट (जिस तरह से मंदिर बनना है) एक अपर सचिव मेरे निवास पर लेकर आया। ड्राफ्ट में अध्यक्ष बनने से संबंधित एक क्लॉज था। इसके बाद की कहानी तो आप लोग जानते ही हैं।”

जब कारसेवकों पर गोली चली

राम मंदिर आंदोलन और उसके बाद की अवधि में नृपेंद्र मिश्रा यूपी में था। उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह यादव की सरकार के दौरान जब अक्टूबर 1990 में कारसेवकों पर गोली चलाई गई थी, तब नृपेंद्र मिश्रा मुलायम सिंह यादव के प्रधान सचिव हुआ करते थे।

अयोध्या विवाद को सुलझाने के लिए किए गए अनेक प्रयासों और अंत में सुप्रीम कोर्ट फैसले से निकले हल पर विचार करते हुए मिश्रा कहते हैं, “कई बार ऐसा लगा कि इस मसले का कुछ हल निकल सकता है, लेकिन तमाम प्रयास विफल रहे। गलती यह थी कि इसे केवल प्रशासनिक मसले के तौर पर निपटाने की कोशिश हुई। अगर इसे थोड़ा अलग तरीके से बरता जाता तो शायद थोड़ा और सकारात्मक परिणाम मिल सकता था।”

बाबरी मस्जिद विध्वंस के वक्त मिश्रा कहां थें?

मुलायम सिंह की सरकार जाने और कल्याण सिंह की सरकार आने के बाद मंदिर आंदोलन का अगला चरण शुरू हुआ। नृपेंद्र मिश्रा बताते हैं कि दिसंबर 1992 में जब बाबरी मस्जिद गिराई गई, तब वह कल्याण सिंह के प्रधान सचिव नहीं थे। उन्होंने चार महीने पहले ही ग्रेटर नोएडा और नोएडा का अध्यक्ष बनने के लिए उस पद को छोड़ दिया था। मिश्रा मानते हैं कि वह घटना विभाजनकारी थी।

पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर के प्रयासों को याद करते हुए नृपेंद्र मिश्रा कहते हैं, “दिवंगत चंद्रशेखर जी ने दोनों धर्मों को एक साथ लाने के लिए गंभीर प्रयास किया था, लेकिन उनका प्रधानमंत्रित्व काल बहुत ही कम समय का था। अन्य लोगों ने भी प्रयास किए, मुझे अन्य प्रधानमंत्रियों के प्रयासों को कमतर नहीं आंकना चाहिए। फैसला सुनाने से पहले न्यायपालिका ने भी यही किया। उन्होंने कहा कि देखो हम एक कमेटी बनाएंगे, जाओ और कोई हल निकालो। यदि आप नहीं करते हैं, तो हम करेंगे।”