आजादी के बाद जस्टिस हीरालाल जे. कानिया (Hiralal Jekisundas Kania) सुप्रीम कोर्ट के पहले चीफ जस्टिस नियुक्त हुए। जस्टिस कानिया को CJI बने अभी 2 साल भी नहीं हुआ था कि 6 नवंबर 1951 को उनका असमय निधन हो गया। जस्टिस कानिया की अचानक मौत से सरकार के सामने सवाल खड़ा हो गया कि उनकी जगह कौन लेगा।

AG को ऑफर किया सीजेआई का पद

चर्चित एडवोकेट और CJI डीवाई चंद्रचूड़ के बेटे अभिनव चंद्रचूड़ अपनी किताब Supreme Whispers में लिखते हैं जस्टिस कानिया के निधन के बाद नए सीजेआई के अप्वाइंटमेंट से जुड़े तीन वर्जन हैं। सबसे विश्वसनीय वर्जन यह है कि जब जस्टिस कानिया का निधन हुआ तो गृह मंत्री केएन काटजू ने सबसे पहले सीजेआई का पद तत्कालीन अटार्नी जनरल मोतीलाल सी. सेतलवाड़ को ऑफर किया।

उस वक्त तक सेतलवाड़ सुप्रीम कोर्ट जज के रिटायरमेंट की निर्धारित 65 साल की उम्र को पार कर चुके थे। अटॉर्नी जनरल सेतलवाड़ ने पंडित नेहरू को बॉम्बे हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस चागला को सीजेआई बनाने का सुझाव दिया, जो सरकार के करीबी भी थे।

इस्तीफे की जिद पर अड़ गए सभी जज

अभिनव लिखते हैं कि प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की ख्वाहिश थी कि सीजेआई के पद पर किसी मुस्लिम जज की नियुक्ति हो, लेकिन सुप्रीम कोर्ट के सभी जज इस्तीफे की जिद पर अड़ गए। उनकी मांग थी कि जस्टिस कानिया के बाद परंपरा के मुताबिक सबसे वरिष्ठतम जज को सीजेआई बनाया जाना चाहिए और उस वक्त जस्टिस पतंजलि शास्त्री सबसे सीनियर मोस्ट जज थे।

जस्टिस शास्त्री को पसंद नहीं करते थे पंडित नेहरू

पंडित नेहरू जस्टिस शास्त्री को कुछ खास पसंद नहीं करते थे। पूर्व चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया रंगनाथ मिश्रा अमेरिकी स्कॉलर जॉर्ज एच. गोडबॉइस (जूनियर) को दिए एक इंटरव्यू में कहते हैं कि पंडित नेहरू जस्टिस शास्त्री को कमजोर जज मानते थे और उनकी इच्छा थी कि CJI के पद पर उनकी बेटी की तरह कोई मजबूत शख्स बैठे। बाद में जब सुप्रीम कोर्ट के तमाम जज इस्तीफे की धमकी देने लगे तो PM नेहरू के पास कोई रास्ता नहीं बचा। आखिरकार जस्टिस पतंजलि शास्त्री को चीफ जस्टिस नियुक्त करना पड़ा।

दूसरा वर्जन

अभिनव चंद्रचूड़ लिखते हैं कि जस्टिस कानिया की मौत के बाद सीजेआई के अपॉइंटमेंट से जुड़े दो वर्जन हैं। दूसरा वर्जन यह है कि जब जस्टिस कानिया की मौत हुई तो चीफ जस्टिस का पद उस वक्त तीसरे सीनियर मोस्ट जज जस्टिस बीके मुखरेजा को ऑफर किया गया। अभिनव लिखते हैं कि पूर्व चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया हिदायतुल्ला भी इस वर्जन को सही मानते हैं। हालांकि जस्टिस मुखरेजा उस वक्त खुद अपने सीनियर को बाइपास कर सीजेआई बनने को तैयार नहीं हुए थे।

तीसरा वर्जन

एक और वर्जन पूर्व चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया बीपी सिन्हा का है। बकौल सिन्हा, पंडित नेहरू इसलिए जस्टिस शास्त्री को सीजेआई नहीं बनाना चाहते थे, क्योंकि उनका कार्यकाल 4 साल से भी कम बचा था। जवाहरलाल नेहरू की इच्छा थी कि जो सीजेआई बने उसका कार्यकाल कम से कम 4 साल का हो। जस्टिस सिन्हा के मुताबिक पंडित नेहरू चाहते थे कि तब सुप्रीम कोर्ट के चौथे सीनियर मोस्ट जज एसआर दास चीफ जस्टिस बनें, लेकिन बात नहीं बन पाई थी।