25 जून 1975 को जब इंदिरा गांधी की सरकार ने देश में इमरजेंसी लगाई थी, तब दिग्गज एडवोकेट फली एस. नरीमन एडिशनल सॉलिसिटर जनरल हुआ करके थे। नरीमन ने इंडियन एक्सप्रेस के एक लेख में इमरजेंसी से ठीक पहले और उसके बाद के घटनाक्रम को तफ्सील से बयां किया है। वह लिखते हैं कि 1 मई 1972 को पहली बार मुझे एडिशनल सॉलिसिटर (ASG) जनरल नियुक्त किया गया था। तब मुझे बॉम्बे हाईकोर्ट में प्रैक्टिस करते हुए 22 साल हो गए थे और मैं दिल्ली आना चाहता था।
1 मई 1975 को मेरा कार्यकाल पूरा हुआ और 3 साल का नया कार्यकाल मिल गया। मैं इससे खास खुश नहीं था, लेकिन कानून मंत्री ने वादा किया जल्द ही मेरा ओहदा बढ़ा दिया जाएगा। उन्होंने कहा कि जुलाई से सॉलिसिटर जनरल (SG) के दो पद होंगे, जिसमें एक मेरे लिए होगा।
नरीमन लिखते हैं कि मुझे दूसरा कार्यकाल मिले हुए अभी करीब महीने भर ही बीते थे कि 12 जून 1975 को इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस जगमोहन सिन्हा ने इंदिरा गांधी को अयोग्य करार दे दिया। इंदिरा गांधी के एडवोकेट जेबी दादाचनजी (J.B. Dadachanji) जजमेंट की कॉपी मेरे पास लेकर आए और मैंने उस जजमेंट को पढ़ा। फिर कानून मंत्री और प्रधानमंत्री के प्रिंसिपल सेक्रेटरी पीएन धर से जजमेंट को लेकर कई दौर की मीटिंग हुई।
इंदिरा ने मांगी मदद
फली एस. नरीमन लिखते हैं कि इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला तार्किक रूप से कई पहलुओं पर कमजोर था। मैंने कानून मंत्री एचआर गोखले और पीएन धर को यह बात बता दी। उन्होंने मुझसे कहा कि प्रधानमंत्री ने व्यक्तिगत तौर पर अनुरोध किया है कि मैं खुद इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में दाखिल होने वाली याचिका और स्टे एप्लीकेशन को एक बार देख लूं। हालांकि इंदिरा गांधी के एडवोकेट नानी पालखीवाला सारे दस्तावेज तैयार कर चुके थे। मैं यह जानकर काफी खुश हुआ।
दो दिन क्यों सुप्रीम कोर्ट नहीं गई थीं इंदिरा गांधी
नरीमन लिखते हैं कि मैंने 19 जून को पिटिशन के वेरिफिकेशन पैराग्राफ को देखा और उसमें कई बदलाव करवाए। लेकिन सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करने में एक-दो दिन की देरी हो गई। इसकी वजह यह थी कि इंदिरा गांधी ज्योतिष के मुताबिक सबसे अच्छे दिन अर्जी दायर करवाना चाहती थीं। सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल हुई और 22 जून को नानी पालखीवाला ने स्टे एप्लीकेशन पर वैकेशन जज जस्टिस वीआर कृष्णा अय्यर के सामने बहस की। अगली शाम यानी 23 जून की शाम मैं राजधानी एक्सप्रेस से पत्नी के साथ छुट्टियां मनाने बॉम्बे निकल गया।
इमरजेंसी से पहले गृह सचिव का ट्रांसफर
मैं ट्रेन में अखबार देख रहा था। इसी बीच मेरी नजर एक खबर पर पड़ी, जिसमें लिखा था कि सरकार ने गृह सचिव का तबादला कर दिया है और राजस्थान से किसी नए अफसर की नियुक्ति हुई है। मैं सोचने लगा कि कि आखिर सरकार को आनन-फानन में गृह सचिव के ट्रांसफर की क्या जरूरत पड़ गई? हालांकि इस पर कोई विशेष ध्यान नहीं दिया। इसी बीच सुप्रीम कोर्ट ने इंदिरा गांधी को पूरी राहत (absolute stay) देने से इनकार कर दिया।
24 जून को इंदिरा गांधी को इस जजमेंट की कॉपी मिली और अगले दिन देश में इमरजेंसी लग गई। तब मुझे समझ में आया कि आखिर सरकार ने गृह सचिव को क्यों बदला था। इंदिरा गांधी और उनके चंद करीबी इमरजेंसी के प्लान पर पहले से ही काम कर रहे थे।
एक लाइन का वो इस्तीफा
फली एस. नरीमन लिखते हैं कि 27 जून की सुबह मैंने कानून मंत्री को फोन किया और अपने इस्तीफे की बात बताई। इसके बाद सिर्फ एक लाइन का इस्तीफा लिखा और दिल्ली भेज दिया। चूंकि प्रेस पर सेंसरशिप लगा दी गई थी, इसलिए मेरे इस्तीफे की खबर भी दब गई। लेकिन न्यूयॉर्क टाइम्स में यह खबर छपी। हालांकि सरकार पर कोई फर्क नहीं पड़ा।