जम्मू-कश्मीर से धारा 370 खत्म हुए चार साल हो चुके हैं। इस बीच वहां कई पॉलिटिकल चेंज हुए हैं। पंचायती राज के सभी तीन स्तरों की स्थापना हो चुकी है, विधानसभा निर्वाचन क्षेत्रों के परिसीमन के दौरान अनुसूचित जनजातियों (SC) के लिए सीटें आरक्षित कर दी गई हैं।
जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा छीनने, राज्य का दर्जा रद्द करने और इसे दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित करने के आठ महीने बाद सरकार ने देश के अन्य हिस्सों से लोगों को जम्मू और कश्मीर में बसाने के लिए अधिवास कानूनों में बदलाव कर दिया था। इसके अलावा जम्मू-कश्मीर ने राजनीतिक रूप से कट्टर प्रतिद्वंद्वियों को दोस्त बनते और दोस्तों को प्रतिद्वंद्वी बनते भी देखा है।
जिला परिषद चुनाव
28 नवंबर से 19 दिसंबर, 2020 के बीच जम्मू-कश्मीर के सभी 20 जिलों में जिला विकास परिषद (DDC) के चुनाव हुए। इस चुनाव से जमीनी स्तर पर लोकतांत्रिक प्रक्रिया की उम्मीद जगी।
जम्मू-कश्मीर में डीडीसी को पहले डिस्ट्रिक्ट प्लानिंग डेवलपमेंट बोर्ड कहा जाता था, जिसके सदस्यों को राज्य सरकार द्वारा नामित किया जाता था। डीडीसी जिला स्तर पर विकास कार्यों के लिए वार्षिक व अन्य योजनाएं तैयार करता है। अतिरिक्त जिला विकास आयुक्त डीडीसी के मुख्य कार्यकारी अधिकारी होते हैं।
हालांकि, कई स्थानों पर डीडीसी अध्यक्षों ने शिकायत की है कि अधिकारी, निर्वाचित सदस्यों को योजना बनाने में शामिल नहीं करते। योजना को केवल जांच के लिए उनके सामने रखा जाता है। कुछ अध्यक्षों ने आरोप लगाया कि उनके मासिक मानदेय में भी देरी की जाती है।
पुराने प्रतिद्वंद्वी आए साथ
अनुच्छेद 370 के निरस्त होने के बाद लगभग सभी प्रमुख विपक्षी नेताओं को या तो हिरासत में ले लिया गया था या उनकी गतिविधियों पर रोक लगा दी गई थी। मुख्यधारा की पार्टियों की राजनीतिक गतिविधियों में रुकावट आने के साथ, नए संगठन उभरे और कई नेताओं ने पाला भी बदला।
पीडीपी को सबसे ज्यादा नुकसान हुआ। पीडीपी की अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती को ‘एहतियातन’ हिरासत में लिए जाने के कारण, उनके कई वरिष्ठ नेताओं ने पार्टी छोड़ दी। पूर्व मंत्री अल्ताफ बुखारी और कुछ अन्य वरिष्ठ पीडीपी नेताओं ने 2020 में ‘जम्मू-कश्मीर अपनी पार्टी’ बनाई।
कश्मीर की पारंपरिक राजनीति को खत्म करने के भाजपा के लगातार प्रयासों को रोकने के मकसद से राजनीतिक रूप से धुर प्रतिद्वंद्वी नेशनल कॉन्फ्रेंस और पीडीपी ने साल 2020 में पीपुल्स अलायंस फॉर गुपकर डिक्लेरेशन (PAGD) के बैनर तले कई अन्य विपक्षी दलों के साथ हाथ मिला लिया।
पीएजीडी ने डीडीसी चुनावों में सर्वसम्मति से उम्मीदवार उतारे और 112 सीटों पर जीत हासिल की। दूसरे नंबर पर रही भाजपा ने 75 सीटों पर जीत दर्ज की थी। इसके अलावा निर्दलीय 50, कांग्रेस 26, अपनी पार्टी 12, पीडीएफ और नेशनल पैंथर्स पार्टी 2-2, बीएसपी 1 सीट पर रही।
2021 में पीपुल्स कॉन्फ्रेंस के पीएजीडी छोड़ने के बाद, इसकी संख्या गिरकर 102 हो गई है। 2022 में पूर्व कांग्रेस नेता गुलाम नबी आज़ाद ने जम्मू और कश्मीर प्रोग्रेसिव आज़ाद डेमोक्रेटिक पार्टी (JKPADP) बनाई है।
परिसीमन आयोग
केंद्र ने 6 मार्च, 2020 को एससी और एसटी के लिए आरक्षित सीटों सहित 90 विधानसभा क्षेत्रों को अलग करने के लिए सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश रंजना देसाई की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय परिसीमन आयोग का गठन किया। आयोग ने साल 2022 में अपनी अंतिम रिपोर्ट पेश की। आयोग ने जम्मू संभाग में विधानसभा सीटों की संख्या 37 से बढ़ाकर 43 और कश्मीर में 46 से 47 करने की सिफारिश की।
इसके अलावा आयोग ने एसटी के लिए 9 निर्वाचन क्षेत्रों और एससी के लिए 6 निर्वाचन क्षेत्रों को आरक्षित करने की सिफारिश की। आयोग ने दो कश्मीरी हिंदू और एक पीओके से विस्थापित व्यक्ति को नॉमिनेशन के जरिए लाने का भी सुझाव दिया।
मतदान, कोटा और विरोध प्रदर्शन
डीडीसी चुनावों के सफल संचालन और परिसीमन पूरा होने से, समय से पहले विधानसभा चुनावों की अटकलें लगने लगीं हैं। इस बात को वरिष्ठ भाजपा नेताओं द्वारा UT में कार्यकर्ताओं को तैयारी शुरू करने के लिए बार-बार बुलाए जाने से बल मिला। हालांकि, अधिकारियों का कहना है कि अगले साल के लोकसभा चुनाव से पहले चुनाव होने की बहुत कम संभावना है।
इस बीच, केंद्र ने राज्य की एसटी सूची में चार नए समूहों को शामिल करने की मांग करते हुए लोकसभा में विधेयक पेश किया है। इसके कारण केंद्र शासित प्रदेश के प्रमुख एसटी समूहों, गुर्जरों और बकरवालों ने भारी विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया है। इस समुदाय का मानना है कि नए विधेयक से वह राजनीतिक रूप से कमजोर हो जाएंगे।
मंगलवार को गुज्जर-बकरवाल प्रदर्शनकारियों ने जम्मू-कश्मीर भाजपा के अल्पसंख्यक मोर्चा के एक वरिष्ठ नेता के साथ दुर्व्यवहार किया। प्रदर्शनकारी 6 और 7 अगस्त को जम्मू और राजौरी में रैली का आयोजन करने वाले हैं। इस बीच, एसटी विधेयक के लाभार्थी समूहों में से एक ‘पहाड़ी समुदाय’ कानून के समर्थन में मार्च निकालने की योजना बना रहा है।