संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) ने मंगलवार को केंद्र के निर्देश के बाद ब्यूरोक्रेसी में ‘लेटरल एंट्री’ भर्ती के लिए जारी अपना लेटेस्ट विज्ञापन रद्द कर दिया। यूपीएससी ने 17 अगस्त को ‘लेटरल एंट्री’ के माध्यम से 45 संयुक्त सचिवों, निदेशकों और उप सचिवों की भर्ती के लिए अधिसूचना जारी की थी। जैसे ही यूपीएससी ने राजनीतिक विवाद के बीच लेटरल एंट्री का अपना विज्ञापन रद्द कर दिया, भाजपा के सहयोगियों और विरोधियों के बीच इसका क्रेडिट लेने की होड़ शुरू हो गयी।
भाजपा की प्रमुख सहयोगी जनता दल (यूनाइटेड) ने सोमवार को फैसले पर चिंता जताई थी, जिसके कैंसिल होने के बाद पार्टी ने यूपीएससी के फैसले का स्वागत किया। जेडी (यू) के राष्ट्रीय प्रवक्ता के सी त्यागी ने कहा, “हम हमारी चिंता का संज्ञान लेने के लिए प्रधानमंत्री को धन्यवाद देते हैं। यह नीतीश कुमार के नेतृत्व वाले सामाजिक न्याय आंदोलन की जीत है। वह फिर से देश में सामाजिक न्याय की ताकतों के चैंपियन के रूप में उभरे हैं।”
केंद्रीय मंत्री और लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के अध्यक्ष चिराग पासवान ने एक्स पर लिखा कि वह और उनकी पार्टी केंद्र सरकार द्वारा लेटरल एंट्री के माध्यम से भर्ती प्रक्रिया के पक्ष में कभी नहीं रही है। उन्होंने आगे लिखा, “मेरी मांग थी कि कोई भी सरकारी नियुक्ति आरक्षण के प्रावधानों को ध्यान में रखते हुए की जानी चाहिए। आज प्रधानमंत्री के निर्देश पर इस प्रक्रिया को रद्द करने का निर्णय लिया गया है, जिसका मैं और मेरी पार्टी स्वागत करते हैं।” चिराग ने कहा कि पीएम मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र की एनडीए सरकार समाज के कमजोर वर्गों के उत्थान के लिए प्रतिबद्ध है।
कांग्रेस भी क्रेडिट लेने से नहीं रही पीछे
वहीं, दूसरी ओर कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा कि दलितों, आदिवासियों, पिछड़े और कमजोर वर्गों के लिए सामाजिक न्याय की उनकी पार्टी की लड़ाई ने आरक्षण छीनने की भाजपा की योजना को विफल कर दिया है। खड़गे ने कहा, “राहुल गांधी, कांग्रेस और इंडिया गठबंधन की पार्टियों के अभियान के कारण सरकार ने एक कदम पीछे खींच लिया है। लेकिन जब तक बीजेपी-आरएसएस सत्ता में है वह आरक्षण छीनने के लिए नए हथकंडे अपनाती रहेगी और हम सभी को सावधान रहना होगा।”
राहुल गांधी ने कहा कांग्रेस हर कीमत पर संविधान और आरक्षण व्यवस्था की रक्षा करेगी
लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने कहा कि कांग्रेस हर कीमत पर संविधान और आरक्षण व्यवस्था की रक्षा करेगी। राहुल ने कहा, ”हम किसी भी कीमत पर भाजपा की लेटरल एंट्री जैसी साजिशों को नाकाम करेंगे।” कांग्रेस सांसद मणिकम टैगोर ने एक्स पर एक पोस्ट में कहा, “2024 ने हमें दो परिणाम दिए हैं, एक कमजोर प्रधानमंत्री और एक मजबूत लोगों का विपक्ष का नेता। अंत में, यह हमारे संविधान की जीत है।”
अखिलेश यादव ने बताया जनता की एकता की जीत
समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने इसे जनता की एकता की जीत बताया। उन्होंने X पर लिखा, “यूपीएससी में लेटरल एन्ट्री के पिछले दरवाज़े से आरक्षण को नकारते हुए नियुक्तियों की साज़िश आख़िरकार पीडीए की एकता के आगे झुक गयी है। सरकार को अब अपना ये फ़ैसला भी वापस लेना पड़ा है। भाजपा के षड्यंत्र अब कामयाब नहीं हो पा रहे हैं, ये PDA में आए जागरण और चेतना की बहुत बड़ी जीत है।”
अखिलेश ने आगे लिखा, “इन परिस्थितियों में समाजवादी पार्टी ‘लेटरल भर्ती’ के ख़िलाफ़ 2 अक्टूबर से शुरू होनेवाले आंदोलन के आह्वान को स्थगित करती है, साथ ही ये संकल्प लेती है कि भविष्य में भी ऐसी किसी चाल को कामयाब नहीं होने देगी व पुरज़ोर तरीके से इसका निर्णायक विरोध करेगी। जिस तरह से जनता ने हमारे 2 अक्टूबर के आंदोलन के लिए जुड़ना शुरू कर दिया था, ये उस एकजुटता की भी जीत है। लेटरल एंट्री ने भाजपा का आरक्षण विरोधी चेहरा उजागर कर दिया है।”
संविधान समर्थकों की जीत- मनोज कुमार झा
राजद के राज्यसभा सांसद मनोज कुमार झा ने कहा कि लेटरल एंट्री को वापस लेना दलित-बहुजन आबादी और संविधान समर्थकों की जीत है। उन्होंने कहा, लेटरल एंट्री का विज्ञापन 7 अगस्त को सामने आया। उसके तुरंत बाद विपक्ष के नेता (बिहार विधानसभा में) तेजस्वी यादव ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की और कहा कि सरकार को इसे वापस लेना होगा। इसके बाद पूरे देश में विरोध हुआ जिसके बाद लोग एहसास हुआ और सरकार ने आज निर्णय वापस ले लिया।”
बसपा अध्यक्ष मायावती ने कहा कि उनकी पार्टी के कड़े विरोध के कारण सरकार को मजबूर होना पड़ा। मायावती ने कहा कि ऐसी सभी आरक्षण विरोधी प्रक्रियाओं को हर स्तर पर रोकने की जरूरत है।
सहयोगियों के दबाव के आगे झुकी भाजपा?
वहीं, राजनीति के जानकार सरकार द्वारा विज्ञापन वापस लेने को 2020 में कृषि कानून वापस लेने की घटना से जोड़कर देखते हैं। दरअसल, 24 सितंबर 2020 को भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार ने पंजाब में अपने प्रमुख सहयोगी शिरोमणि अकाली दल (SAD) की चिंताओं के बावजूद संसद में कृषि सुधारों पर तीन विवादास्पद विधेयकों (जिन्हें कृषि कानूनों के रूप में जाना जाता है) को आगे बढ़ाया। जिसके बाद शिअद ने एनडीए से नाता तोड़ लिया। किसानों के एक साल के विरोध प्रदर्शन के बाद अंततः कृषि कानूनों को निरस्त कर दिया गया।
दूसरी ओर, 20 अगस्त 2024 की बात करें तो केंद्र ने अपने दो सहयोगियों, जेडीयू और एलजेपी (रामविलास) की चिंताओं के एक दिन के अंदर लेटरल एंट्री के माध्यम से सरकार में 45 प्रमुख पदों को भरने के लिए एक विज्ञापन वापस ले लिया।
एनडीए के सूत्रों ने दोनों स्थितियों के बीच अंतर की ओर इशारा किया। 2020 में जहां भाजपा को लोकसभा में 300 से अधिक सीटों के साथ अपने दम पर बहुमत प्राप्त हुआ। लेकिन, इस बार सिर्फ 240 सीटों के साथ वह सरकार चलाने के लिए सहयोगियों पर निर्भर है।
केंद्र में गठबंधन राजनीति की वापसी
यह परिस्थिति केंद्र में गठबंधन राजनीति की वापसी को दिखाती है। यह पहली बार नहीं है जब यह सरकार गठबंधन के दबाव के आगे झुकी है। इस महीने की शुरुआत में, जद (यू), एलजेपी और टीडीपी सहित कुछ सहयोगी दल वक्फ (संशोधन) विधेयक में प्रस्तावित व्यापक बदलावों से चिंतित थे जिसके बाद सरकार ने कानून को संसद की संयुक्त समिति को भेज दिया।
सरकार ने केंद्रीय बजट में भी प्रमुख सहयोगियों जेडीयू और टीडीपी द्वारा शासित बिहार और आंध्र प्रदेश को विशिष्ट आवंटन किया। विपक्ष ने इसकी आलोचना करते हुए इसे ‘सरकार बचाओ बजट’ बताया था। वहीं, जब मंगलवार को यूपीएससी ने लेटरल एंट्री के माध्यम से प्रमुख पदों को भरने के लिए अपने विज्ञापन को रद्द कर दिया तब भी एनडीए के सहयोगियों ने इसे अपनी जीत बताने में देरी नहीं की।
क्यों पीछे हटी बीजेपी?
विपक्ष ने लोकसभा चुनाव में सामाजिक न्याय के मुद्दे पर सफल अभियान चलाया था, इस बात को भाजपा ने भी स्वीकार किया है। चुनाव के बाद से भी विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने इस मुद्दे पर अपने हमले जारी रखे हैं, चाहे वह मोदी सरकार से जाति जनगणना कराने की मांग करना हो, एससी/एसटी के सब-कैटेगराइजेशन पर हाल ही में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बारे में बात करना हो या यूपीएससी का लेटरल भर्ती विज्ञापन।
भाजपा नेताओं ने खुले तौर पर स्वीकार किया है कि उन्हें लोकसभा चुनाव में विपक्ष के अभियान को समझने और जांचने में देर हो गई। पार्टी की सहयोगी और केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल ने द इंडियन एक्सप्रेस आइडिया एक्सचेंज सत्र में कहा कि यह अभियान काफी हद तक जिम्मेदार था कि भाजपा यूपी में 33 सीटों पर क्यों गिर गई, जो कि 2019 की लगभग आधी सीट है।
एससी/एसटी सब-कैटेगराइजेशन पर चुप है भाजपा
भाजपा को आगामी विधानसभा चुनाव से पहले अपने एससी/एसटी और ओबीसी वोट बैंक में भी सेंध लगने का डर है, जिस पर मुख्य रूप से “उच्च जातियों” की उत्तर भारतीय पार्टी होने का टैग लगा रहता है। एससी/एसटी सब-कैटेगराइजेशन पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद भाजपा ने इस पर अपना रुख स्पष्ट नहीं किया है, क्योंकि उसके अपने एससी/एसटी नेता आशंकित हैं कि इस तरह के उप-कोटा से उनकी एकता और अंततः आरक्षण कमजोर हो जाएगा।