संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) की ओर से शनिवार को जारी किए गए एक विज्ञापन के बाद राजनीतिक घमासान शुरू हो गया है। विज्ञापन के जरिये केंद्र सरकार के 24 मंत्रालयों में 45 पदों के लिए ज्वाइंट सेक्रेट्री, डायेरक्टर और डिप्टी सेक्रेट्री के पदों पर लेटरल एंट्री के जरिये भर्ती के लिए योग्य उम्मीदवारों के आवेदन मांगे गए हैं।
विज्ञापन में कहा गया है कि राज्य/केंद्रशासित प्रदेश की सरकारों में, पीएसयू, रिसर्च संस्थान, विश्वविद्यालयों और यहां तक कि प्राइवेट सेक्टर में भी अनुभव और योग्यता रखने वाले लोग वैकेंसी के लिए आवेदन कर सकते हैं।
इस विज्ञापन के प्रकाशित होने के बाद विपक्षी राजनीतिक दलों ने मोदी सरकार पर हमला बोल दिया है। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे, लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी, बीएसपी सुप्रीमो मायावती और सपा प्रमुख अखिलेश यादव सहित विपक्षी दलों के नेताओं ने कहा है कि इसमें अनुसूचित जाति (एससी), अनुसूचित जनजाति (एसटी) और अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षण का प्रावधान ही नहीं है।
नौकरशाही में लेटरल एंट्री क्या है?
2017 में नीति आयोग ने अपने तीन-वर्षीय एक्शन एजेंडा और शासन पर सचिवों के क्षेत्रीय समूह (एसजीओएस) ने इस साल फरवरी में दी गई अपनी रिपोर्ट में इस बात की सिफारिश की थी कि केंद्र सरकार में मिडिल और सीनियर मेनेजमेंट के स्तर पर लोगों की नियुक्ति की जाए।
लेटरल एंट्री से आए हुए लोग केंद्रीय सचिवालय का हिस्सा होंगे, जिसमें उस समय तक केवल अखिल भारतीय सेवाओं/केंद्रीय सिविल सेवाओं से आने वाले नौकरशाह ही सेवा दे रहे थे। लेटरल एंट्री से आने वाले लोगों को तीन साल के कांट्रेक्ट पर रखा जाएगा जिसे पांच साल तक बढ़ाया जा सकता है।
सिफारिश के आधार पर, लेटरल एंट्री के जरिये पहली बार 2018 में खाली पदों के लिए विज्ञापन जारी किए गए लेकिन तब केवल ज्वाइंट सेक्रेट्री स्तर के पदों के लिए ही लोगों की मांग की गई थी। इसके बाद डायरेक्टर और डिप्टी सेक्रेट्री के पद भी इसमें शामिल किए गए।
कैबिनेट की नियुक्ति समिति (एसीसी) द्वारा नियुक्त किये गये ज्वाइंट सेक्रेट्री, किसी भी विभाग में तीसरे सबसे बड़े ओहदे (सचिव और अतिरिक्त सचिव के बाद) पर होते हैं। ज्वाइंट सेक्रेट्री विभाग में एक विंग के प्रशासनिक प्रमुख के रूप में काम करते हैं।
डायरेक्टर ज्वाइंट सेक्रेट्री से एक रैंक नीचे होते हैं और डिप्टी सेक्रेट्री डायरेक्टर से एक रैंक नीचे होते हैं। हालांकि अधिकतर मंत्रालयों में वे लगभग एक जैसा ही काम करते हैं।
डायरेक्टर/डिप्टी सेक्रेट्री को किसी विभाग में मध्य स्तर पर काम करने वाला अधिकारी माना जाता है जबकि ज्वाइंट सेक्रेट्री स्तर वह जगह है, जहां से फैसले लेने की प्रक्रिया शुरू होती है।
लेटरल एंट्री को लेकर क्या है केंद्र सरकार का तर्क?
2019 में कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग (डीओपीटी) में राज्य मंत्री जितेंद्र सिंह ने राज्यसभा को बताया था कि लेटरल एंट्री का मकसद नए टैलेंट को सामने लाने के साथ ही जनशक्ति की उपलब्धता को बढ़ाना भी है।
इसके बाद 8 अगस्त, 2024 को राज्यसभा में एक सवाल के जवाब में जितेंद्र सिंह ने कहा था कि किसी क्षेत्र में विशेष ज्ञान और विशेषज्ञता को ध्यान में रखते हुए भारत सरकार में ज्वाइंट सेक्रेट्री, डायरेक्टर और डिप्टी सेक्रेट्री के स्तर पर लेटरल एंट्री के जरिये योग्य लोगों की भर्ती की जाएगी।
लेटरल एंट्री से अब तक कितने लोगों को मिली नियुक्ति?
लेटरल एंट्री के जरिये भर्ती का काम 2018 में शुरू हुआ और संयुक्त सचिव स्तर के पदों के लिए कुल 6,077 आवेदन आए थे। यूपीएससी द्वारा चयन प्रक्रिया से गुजरने के बाद 2019 में नौ अलग-अलग मंत्रालयों/विभागों में नियुक्ति के लिए नौ लोगों के नामों की सिफारिश की गई थी।
इसके बाद लेटरल एंट्री का एक और विज्ञापन 2021 में आया और मई 2023 में भी ऐसे दो विज्ञापन आये। राज्य मंत्री जितेंद्र सिंह ने इस साल 9 अगस्त को राज्यसभा में बताया था कि पिछले पांच वर्षों में लेटरल एंट्री के जरिये 63 नियुक्तियां की जा चुकी हैं और मौजूद वक्त में लेटरल एंट्री के जरिये चुने गए 57 लोग अलग-अलग मंत्रालयों/विभागों में काम कर रहे हैं।
लेटरल एंट्री की क्यों हो रही है आलोचना?
लेटरल एंट्री की इस आधार पर आलोचना की जा रही है कि इसके जरिये होने वाली भर्तियों में एससी, एसटी और ओबीसी उम्मीदवारों के लिए आरक्षण की कोई व्यवस्था नहीं है। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा है कि लेटरल एंट्री के जरिये की गई भर्तियां एक “सुनियोजित साजिश का हिस्सा” थीं और बीजेपी जानबूझकर नौकरियों में इस तरह भर्तियां कर रही है जिससे एससी, एसटी, ओबीसी वर्ग को आरक्षण से दूर रखा जा सके।
आरजेडी के नेता और बिहार के नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने भी इस कदम की कड़ी आलोचना की है। उन्होंने कहा कि अगर यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा के जरिये 45 आईएएस की नियुक्ति करती तो उसे एससी/एसटी और ओबीसी को आरक्षण देना पड़ता और 45 में से 22-23 नौकरशाह दलित, पिछड़ा और आदिवासी वर्गों से आते। उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती ने भी कहा कि लेटरल एंट्री संविधान का सीधा उल्लंघन है।
इसके अलावा आजाद समाज पार्टी (कांशीराम) के नेता और नगीना के सांसद चन्द्रशेखर आजाद ने भी इसका विरोध किया है। सपा मुखिया अखिलेश यादव ने कहा है कि यह पीडीए (पिछड़े, दलित और अल्पसंख्यकों) से आरक्षण छीनने की एक योजना है।
लेटरल एंट्री को आरक्षण के दायरे से बाहर कैसे रखा गया है?
सार्वजनिक नौकरियों और विश्वविद्यालयों में आरक्षण नीति ‘13-पॉइंट रोस्टर’ के जरिये लागू होती है। इस नीति के तहत एससी, एसटी, ओबीसी, ईडब्ल्यूएस के लिए आरक्षित खाली पदों को उनके कोटा प्रतिशत के आधार पर सौ से विभाजित करके आवंटित किया जाता है।
उदाहरण के लिए, ओबीसी कोटा 27% है, इसलिए किसी विभाग में जब वैकेंसी निकलती है तो (100/27=3.7) हर चौथे पद पर ओबीसी उम्मीदवार की भर्ती होगी। इसी तरह एससी उम्मीदवारों के लिए 15% आरक्षण है। इसका मतलब यह है कि हर 7वां खाली पद (100/15 = 6.66) एससी समुदाय के उम्मीदवार के लिए आरक्षित है। एसटी उम्मीदवारों के लिए (100/7.5 = 13.33), मतलब हर 14वां खाली पद एक एसटी उम्मीदवार के लिए आरक्षित है। इसी तरह ईडब्ल्यूएस उम्मीदवारों के लिए 10% आरक्षण है। इसका मतलब यह है कि हर 10वां पद ईडब्ल्यूएस उम्मीदवारों के लिए आरक्षित है।
लेटरल एंट्री में क्यों नहीं है आरक्षण?
आरक्षण प्रणाली को लागू करने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले ‘13-पॉइंट रोस्टर’ के अनुसार, जब किसी विभाग या कैडर में तीन तक रिक्तियां होती हैं तो कोई आरक्षण लागू नहीं होता है। आरटीआई एक्ट के तहत कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग (डीओपीटी) की फाइलों से इंडियन एक्सप्रेस को मिली जानकारी के मुताबिक, एकल पोस्ट कैडर में आरक्षण लागू नहीं होता है क्योंकि लेटरल एंट्री के तहत भरा जाने वाला प्रत्येक पद एक एकल पद है, इसलिए इनमें आरक्षण लागू नहीं है।
यूपीएससी ने इस बार 45 पदों के लिए विज्ञापन दिया है। ‘13-पॉइंट रोस्टर’ के मुताबिक, इसके हिसाब से छह पद एससी उम्मीदवारों के लिए, तीन एसटी उम्मीदवारों के लिए, 12 ओबीसी उम्मीदवारों के लिए और चार ईडब्ल्यूएस उम्मीदवारों के लिए आरक्षित होंगे।
लेकिन चूंकि इन वैकेंसियों के लिए प्रत्येक विभाग के लिए अलग से विज्ञापन दिया गया है, इसलिए इन सभी को एकल पद वाली वैकेंसी माना जाएगा और इसीलिए इसमें आरक्षण की नीति को लागू नहीं किया गया है।