केंद्र सरकार ने संसद में कहा है कि यूनिफॉर्म सिविल कोड (UCC) यानी समान नागरिक संहिता पर कोर्ट के आदेश को देखते हुए लॉ कमीशन लोगों की राय ले रहा है। केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने राज्यसभा में कहा कि चूंकि यूसीसी पर लॉ कमीशन अभी कंसल्टेशन ले रहा है, ऐसे में इसकी रूपरेखा क्या होगी यह बहुत दूर की बात है। यूनिफॉर्म सिविल कोड भारतीय जनता पार्टी (BJP), इसकी पूर्ववर्ती भारतीय जनसंघ और RSS के एजेंडे में शामिल रहा है, लेकिन ऐसा नहीं है कि इस मसले को हमेशा पार्टी के चुनावी घोषणा पत्र में जगह मिली है।

आजादी के बाद क्या बहस?

जवाहरलाल नेहरू की अगुवाई वाली देश की पहली चुनी गई सरकार जब हिंदू कोड बिल लेकर आई तब भारतीय जनसंघ ने 15 अप्रैल 1955 को एक प्रस्ताव पारित कर इसकी कड़ी निंदा की थी। जनसंघ की वर्किंग कमेटी ने कहा था कि जब संविधान में स्पष्ट रूप से राज्यों को सभी नागरिकों के लिए समान नागरिक संहिता बनाने का अधिकार दिया गया है तो इस परिस्थिति में हिंदू कोड बिल एक समुदाय के साथ भेदभाव जैसा है और संविधान के खिलाफ भी है।

भारतीय जनसंघ ने हिंदू उत्तराधिकार विधेयक पर भी 23 अक्टूबर 1955 को कड़ी आपत्ति जताई थी। खासकर उस प्रावधान पर, जिसमें यह कहा गया था कि किसी शख्स की अवैध संतान, यदि ज्ञात हो तो उसका भी पिता से संबंध माना जाएगा और वैध संतान के बराबर हक मिलेगा। भारतीय जनसंघ ने साल 1957 के अपने चुनावी घोषणा पत्र में वादा किया कि यदि वे सत्ता में आए तो हिंदू मैरिज एक्ट और हिंदू उत्तराधिकार विधेयक वापस ले लेंगे, लेकिन यूनिफॉर्म सिविल कोड पर कोई बात नहीं की थी।

1960 से 1980 का दौर

भारतीय जनसंघ के साल 1962 के चुनावी घोषणा पत्र में भी यूनिफॉर्म सिविल कोड को कोई जगह नहीं मिली। हालांकि इस घोषणापत्र में भी हिंदू मैरिज एक्ट और हिंदू उत्तराधिकार विधेयक वापस लेने की बात कही गई थी। जनसंघ ने पहली बार 1967 के लोकसभा चुनाव से पहले उत्तराधिकार और गोद लेने के लिए एक समान कानून की बात की। 1971 में भी यह वादा किया, लेकिन 1977 और 1980 में इस मुद्दे पर कोई बात नहीं की।

बीजेपी का गठन, शाहबानो केस और 1980 के बाद का दौर

1980 में लोकसभा चुनाव के करीब 4 महीने बाद बीजेपी का गठन हुआ। इसके बाद 1984 में हुए लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने अपने घोषणापत्र में यूसीसी का कोई जिक्र नहीं किया। इस चुनाव में बीजेपी को सिर्फ 2 सीटें मिली थीं। पार्टी के दिग्गज नेता अटल बिहारी वाजपेयी को बुरी हार का सामना करना पड़ा था। बाद में 1980 का मध्य आते-आते लालकृष्ण आडवाणी की अगुवाई में बीजेपी ने तीन एजेंडों- यूनिफॉर्म सिविल कोड, अनुच्छेद 370 की वापसी और राम मंदिर का निर्माण..पर बेहद आक्रामक तरीके से काम करना शुरू किया। ।

साल 1985 में शाहबानो मामले के बाद समान नागरिक संहिता का मामला जोरशोर से गरमाया। बीजेपी और आरएसएस ने आक्रामक तरीके से यूनिफॉर्म सिविल कोड की मांग करनी शुरू की। 1986 में RSS ने अपनी अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा में संविधान का हवाला देते हुए सरकार से यूनिफॉर्म सिविल कोड लाने की मांग की। 1989 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने अपने घोषणा पत्र में वादा किया कि अगर वह सत्ता में आई तो अलग-अलग पर्सनल लॉ की समीक्षा के लिए एक कमीशन गठित करेगी।

BJP सांसद लाए प्राइवेट बिल

1991 के लोकसभा चुनाव में भी बीजेपी ने कहा कि वो कॉमन सिविल लॉ के लिए लॉ कमीशन गठित करेगी, जो तमाम सिविल लॉ का अध्ययन करेगी। बीजेपी सांसद लगातार संसद में भी यह मामला उठाते रहे। इसी बीच अल्मोड़ा से बीजेपी के सांसद बच्ची सिंह रावत 20 दिसंबर 1996 को यूसीसी पर प्राइवेट मेंबर बिल लेकर आए, जिसका शीर्षक था ‘यूनिफॉर्म मैरिज एंड डायवोर्स बिल”। हालांकि यह संसद में पास नहीं हो सका।

RSS ने की सांसदों से अपील

1995 में आरएसएस के अखिल भारतीय कार्यकारी मंडल (Akhil Bhartiya Karyakari Mandal) ने एक प्रस्ताव पारित घर देशभर के सांसदों से अपील की कि वे भले ही किसी पार्टी से ताल्लुक रखते हों, लेकिन नागरिकों के हित को ध्यान में रखते हुए यूनिफॉर्म सिविल कोड लाने का समर्थन करें। 1996 और 1998 में भी बीजेपी ने अपने चुनावी घोषणा पत्र में यूनिफॉर्म सिविल कोड का जिक्र किया और लॉ कमीशन गठित करने की बात कही।

NDA के एजेंडे से गायब हो गया UCC

हालांकि साल 1999 में बीजेपी, NDA के बैनर तले चुनावी मैदान में उतरी। इस चुनाव में बीजेपी ने अपना अलग से कोई घोषणा पत्र जारी नहीं किया। एनडीए के चुनावी एजेंडे में यूसीसी का कोई जिक्र नहीं था। 2004 के लोकसभा चुनाव में भी लगभग यही स्थिति रही। इस चुनाव में वाजपेयी सरकार को हार का सामना करना पड़ा था।

साल 2000 के बाद और मोदी युग

साल 2009 के लोकसभा चुनाव में जब बीजेपी ने लालकृष्ण आडवाणी को पीएम कैंडिडेट बनाया तो अपने घोषणा पत्र में फिर दोहराया कि वह यूनिफॉर्म सिविल कोड के लिए कमीशन गठित करेगा। साथ ही यह भी कहा कि यह आयोग इस्लामिक देशों सहित अन्य देशों में लैंगिक समानता की दिशा में सुधारों का भी अध्ययन करेगा।

इसके बाद आया मोदी युग। 2014 में जब बीजेपी ने नरेंद्र मोदी को पीएम कैंडिडेट बनाया तो घोषणापत्र में यूनिफॉर्म सिविल कोड लाने की बात दोहराई और 2019 में बीजेपी ने अपने ‘संकल्प पत्र’ में यूनिफॉर्म सिविल कोड लाने का वादा किया।