भारत और चीन के बीच 15-16 जून, 2020 को गलवान घाटी में संघर्ष हुआ था। इस घटना को अब तीन साल बीत चुके हैं। अक्टूबर 1975 के बाद LAC (Line of Actual Control) पर पहली बार गलवान में 20 सैनिकों की मौत हुई थी। 1974 में अरुणाचल प्रदेश के तुलुंग ला (Tulung La) में एक चाइनीज एम्बुश (Chinese ambush) में असम राइफल्स के चार जवान मारे गए थे।

गलवान में क्या हुआ था?

अप्रैल 2020 में चीन ने पूर्वी लद्दाख में कई स्थानों पर घुसपैठ करने की कोशिश की थी। इन घटनाओं से चीन के साथ सीमा पर तनाव था। जून में चीन की सेना पीपुल्स लिबरेशन आर्मी ने LAC पर भारत की तरफ टेंट और एक ऑब्जर्वेशन पोस्ट लगा दी। चीनी सैनिकों की निरंतर उपस्थिति से नाराज भारतीय सेना के जवानों ने उन्हें पीछे हटने को कहा।

रिपोर्ट के अनुसार,  16 बिहार के कमांडर कर्नल बी संतोष बाबू ने गलवान में तैनात पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (PLA) को जगह खाली करने को कहा। चीन के सैनिकों ने कर्नल बाबू के साथ धक्का-मुक्की की। इसके बाद करीब पांच घंटे तक दोनों सेनाओं के 600 सैनिकों के बीच भयंकर मारपीट हुई। दोनों पक्षों के बीच हुए एक समझौता के कारण बंदूक का इस्तेमाल किया नहीं जा सकता था, ऐसे में चीनी सेना ने कील लगे डंडों और भारत भारतीय सेना ने फाइबर ग्लास के डंडों का इस्तेमाल किया। दोनों तरफ से पत्थरबाजी भी जमकर हुई।  

धक्का-मुक्की में चोट लगने से कर्नल बाबू गलवान नदी में गिर गए। नदी बर्फ जैसी ठंडी थी। कर्नल बाबू की मौत हो गई। कई और भारतीय जनानों की गलवान नदी में गिरने या धक्का दिए जाने से मौत हो गई।

कुछ रिपोर्ट्स के अनुसार, चीनियों ने भारत की तुलना में अधिक लोगों को खोया। PLA ने लगभग एक साल बाद मार्च 2021 में अपनी ओर से चार मौतों को स्वीकार किया। फरवरी 2022 में ऑस्ट्रेलियाई वेबसाइट Klaxon ने बताया कि गलवान संघर्ष में PLA के कम से कम 38 सैनिक डूब गए थे।

चीन की सेना ने दो मेजर, दो कैप्टन और छह जवानों सहित 10 भारतीय सैनिकों को लगभग तीन दिनों तक हिरासत में रखा था। कई दौर की बातचीत के चीन ने सभी को वापस किया।

अब कैसे हैं हालात?

तीन साल बाद भी सीमा पर तनाव है। पूर्वी लद्दाख में भारत के 50,000 से अधिक सैनिक हैं, जिनकी आगे की चौकियों पर साल भर तैनाती रहती है।

“…हम चाहते हैं कि संबंध (चीन के साथ) अच्छे हों। लेकिन संबंध तभी अच्छे हो सकते हैं, जब सीमा पर अमन-चैन हो। और समझौतों का पालन हो।” यह बात इसी महीने एक प्रेस कांफ्रेंस विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कही थी। वैसे बता दें कि दोनों पक्षों के बीच बातचीत कभी नहीं रुकी। झड़प की अगली सुबह जयशंकर ने चीन के तत्कालीन विदेश मंत्री वांग यी से बात की थी।

जमीनी स्थिति क्या है?

अप्रैल में जयशंकर ने कहा था कि “चीन के साथ स्थिति बहुत नाजुक और … बहुत चुनौतीपूर्ण है। यदि सीमा समझौते का उल्लंघन किया जाता है तो चीन के साथ कोई नॉर्मल टाई नहीं हो पाएगा।” दोनों देशों के बीच अब तक 18 दौर की सैन्य स्तर की वार्ता हो चुकी है। पांच प्वाइंट ऐसे हैं, जिस पर अब तक सहमति नहीं बन पायी है। इन स्थानों पर “बफर जोन” बनाए गए हैं। समझौते के तहत इन जोनों पर दोनों देशों ने सैनिकों की तैनाती नहीं की है।

डेपसांग मैदान और डेमचोक में चीनी घुसपैठ को दोनों पक्षों ने लिगेसी इशू बताया है। इसका मतलब है, इन दो क्षेत्रों में गतिरोध अप्रैल 2020 से है। हालांकि डेपसांग में भारतीय सैनिक साल 2020 की शुरुआती महीनों तक   ‘Y nallah’ या बॉटलनेक जंक्शन तक गश्त करती थी। लेकिन बाद के महीनों में चीन की सेना यहां भारतीय सेना को आने से रोक दिया। डेमचोक के दक्षिण में भारतीय क्षेत्र के भीतर भेड़ों को ले जा रहे चरवाहों को चीनी सैनिकों ने चारडिंग-निलुंग नाला नामक क्षेत्र में रोक दिया था।

इस साल जनवरी में IB (Intelligence Bureau) द्वारा आयोजित वार्षिक डीजीपी कॉन्फ्रेंस में लेह सुपरिटेंडेंट ऑफ पुलिस पी.डी. नित्या ने एक पेपर सबमिट किया, जिसके मुताबिक, भारत पूर्वी लद्दाख में 65 पेट्रोलिंग प्वाइंट्स में से 26 गंवा चुका है। ऐसा भारतीय सुरक्षा बलों द्वारा गश्त नहीं करने के कारण हुआ है।

इसके अलावा, पी.डी. नित्या ने कहा, जिन क्षेत्रों में असहमति के कारण बफर जोन बनाए गए हैं, वहां सेना की तैनाती न होना से भारत को ही नुकसान होगा। यह बफर जोन बाद में नियंत्रण रेखा का रूप ले लेंगी, जिससे भारत अंतत: इन क्षेत्रों पर नियंत्रण खो देगा।”

सेवानिवृत्त सेना अधिकारी और भारत के चीन विशेषज्ञ इस बात से सहमत हैं कि बफर जोन से भारत को नुकसान होगा। वे कहते हैं कि नई दिल्ली को बीजिंग को बताना चाहिए कि बफर जोन बनाना समस्या का समाधान नहीं हैं, बल्कि यह किसी सीधी लड़ाई से बचने के लिए उठाया गया एक कदम है। इस बारे में कोई स्पष्टता नहीं है कि डिसएंगेजमेंट प्रक्रिया में कितनी भूमि को बफर जोन में परिवर्तित किया गया है।

चीन इन क्षेत्रों में इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलप कर रहा है, जिसमें पैंगोंग झील के किनारे दो पुल शामिल हैं। यह पुल उत्तरी तट से दक्षिणी किनारे तक आसानी से आवाजाही के लिए बनाई गई है। इसके अलावा चीन का प्लान सड़क और आवास बनाना भी है। दूसरी तरफ भारत भी अपनी ओर से बुनियादी ढांचे का तेजी से विकास कर रहा है। सड़कें, पुल, सुरंगें, हेलीपैड और सैनिकों के लिए आवास बना रहा।

समस्या को देखने के अलग-अलग तरीके

दोनों पक्षों में समस्या को देखने के तरीकों में एक बड़ा अंतर है। पिछले दिसंबर में अरुणाचल प्रदेश के तवांग में एक चौकी पर पीएलए ने आधी रात को हमले के प्रयास से किया, जिससे तनाव बढ़ गया था। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने अप्रैल के अंत में एक बैठक में अपने चीनी समकक्ष ली शांगफू को कड़े शब्दों में एक संदेश दिया कि सभी मुद्दों पर एलएसी को मौजूदा द्विपक्षीय समझौतों और प्रतिबद्धताओं के अनुसार हल करने की आवश्यकता है और इन समझौतों के उल्लंघन ने द्विपक्षीय संबंधों के पूरे आधार को खत्म कर दिया है।

ली का संदेश था कि दोनों पक्षों को दीर्घकालिक दृष्टिकोण अपनाना चाहिए। यानी ली सीमा विवाद पर अधिक बात करने को तैयार नहीं थे। इस बीच द्विपक्षीय व्यापार में तेजी जारी है, चीन से भारतीय आयात निर्यात से कहीं अधिक है।