सुप्रीम कोर्ट ने आज दिल्ली सरकार की उस याचिका पर अपना फैसला सुनाया जिसमें दिल्ली नगर निगम (MCD) में 10 एल्डरमैन को उनकी सहायता और सलाह के बिना नामित करने के उपराज्यपाल वीके सक्सेना के कदम को चुनौती दी गई थी। आप और भाजपा दोनों ही इस मुद्दे पर आमने-सामने थे। आप सरकार को झटका देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कहा कि उपराज्यपाल को दिल्ली सरकार की सहायता या सलाह की जरूरत नहीं है और वह दिल्ली नगर निगम अधिनियम, 1993 के अनुसार सीधे एमसीडी में एल्डरमैन की नियुक्ति कर सकते हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एमसीडी में सदस्यों को नामित करने की एलजी की शक्ति एक वैधानिक शक्ति है न कि कार्यकारी शक्ति। सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस पी एस नरसिम्हा और जस्टिस जे बी पारदीवाला की पीठ इस मामले में सोमवार को फैसला सुनाया जिससे एमसीडी की स्थायी समिति के गठन पर लंबे समय से चला आ रहा गतिरोध खत्म हुआ। पीठ ने 17 मई, 2023 को मामले में अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।
जनवरी 2023 में एलजी सक्सेना ने दिल्ली नगर निगम अधिनियम, 1957 द्वारा उन्हें दी गई शक्तियों के तहत एमसीडी में 10 एल्डरमैन (नामांकित सदस्यों) को नियुक्त किया था। अधिनियम प्रशासक (उपराज्यपाल) को नगर निगम में विशेष ज्ञान या अनुभव वाले लोगों को नियुक्त करने का आदेश देता है।
एल्डरमैन की नियुक्तियों पर AAP ने जताया विरोध
दिल्ली में एमसीडी के पार्षदों की नियुक्ति का फैसला बिना अरविंद केजरीवाल सरकार के मंत्रियों से विचार-विमर्श कर किए जाने का आम आदमी पार्टी (AAP) ने विरोध किया था। पिछले साल पार्षदों को नामांकित करने के दौरान एलजी ऑफिस की ओर से कहा गया था कि डीएमसी एक्ट के तहत प्राप्त शक्तियों के तहत उपराज्यपाल को 10 लोगों को नगर निगम में नामांकित करने का अधिकार है। एलजी ऑफिस ने कहा था कि उपराज्यपाल को कानूनी और संवैधानिक प्रावधानों के तहत पार्षदों की नियुक्ति का पूरा अधिकार है।
यह नियुक्तियां दिसंबर 2022 के एमसीडी चुनावों के कुछ दिनों बाद हुईं थीं जिसमें आप ने भाजपा को हराया था, जो 15 सालों से एमसीडी पर शासन कर रही थी। चुनाव में आप ने 250 सदस्यीय एमसीडी में भाजपा की 104 सीटों के मुकाबले 134 सीटें जीतीं थीं।
एल्डरमैन की नियुक्ति पर आप और भाजपा के बीच विवाद
जिसके बाद अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व वाली आप और भाजपा के बीच बड़ा विवाद खड़ा हो गया था जब एलजी सक्सेना द्वारा नामित सभी 10 सदस्य भाजपा के सदस्य निकले। नॉमिनेटड सदस्यों के अपॉइंटमेंट प्रोसेस और एलीजीबिलिटी क्राइटेरिया में भी खामी होने का आरोप था। आप नेताओं ने भाजपा पर बिना बहुमत हासिल किये एमसीडी को नियंत्रित करने की कोशिश करने का आरोप लगाया। इसके बाद AAP ने एल्डरमैन की नियुक्तियों को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी।
आप का दावा- संविधान के तहत नॉमिनेशन का अधिकार सरकार के पास
गौरतलब है कि एमसीडी में 250 निर्वाचित और 10 मनोनीत सदस्य होते हैं। मुख्यमंत्री केजरीवाल ने भी उस दौरान दावा किया था कि एमसीडी में सदस्यों का नॉमिनेशन दिल्ली सरकार ही करती है, एलजी ने बिना सरकार से सलाह लिए सदस्यों को नामित किया। संविधान के तहत नॉमिनेशन का अधिकार सरकार के पास है।
आप के एक वरिष्ठ नेता ने इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत के दौरान कहा, “अगर बीजेपी उपराज्यपाल के इस गैरकानूनी फैसले से एमसीडी की स्थायी समिति में बहुमत हासिल करने में कामयाब हो जाती है तो यह लोकतंत्र पर हमला होगा। यह स्थायी समिति निगम के सभी बड़े फैसले प्रभावी ढंग से करती है। यह 10 एल्डरमैन के बारे में नहीं है बल्कि लोगों की इच्छा के बारे में है।”
हालांकि, एल्डरमैन के पास सदन की बैठकों या मेयर चुनाव में मतदान का अधिकार नहीं है लेकिन वे स्थायी समिति के सदस्यों को चुनने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। एमसीडी में आप के पास कम बहुमत है, इसे देखते हुए मौजूदा सदन में उनकी भूमिका और भी महत्वपूर्ण हो गई है।
एमसीडी स्थायी समिति के बिना काम कर रही
डेढ़ साल से एमसीडी स्थायी समिति के बिना काम कर रही है। आप और भाजपा दिल्ली की खराब नागरिक सुविधाओं और बुनियादी ढांचे के लिए एक-दूसरे को जिम्मेदार ठहराते रहे हैं। भाजपा नेता स्थायी समिति का गठन नहीं करने के लिए आप को दोषी ठहराती है और कहती है कि एल्डरमैन की नियुक्ति सीधे तौर पर पैनल के गठन को प्रभावित नहीं करती है जैसा कि आप ने दावा किया है।
भाजपा ने आप पर राजनीतिक लाभ के लिए एमसीडी में गवर्नेंस को रोकने का भी आरोप लगाया है। ऐसे में शीर्ष अदालत का सोमवार का फैसला आप और भाजपा दोनों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि यह तय करेगा कि निगम भविष्य में कैसे चलेगा।
पार्षद मनोनीत करने की शक्ति LG के पास होने का मतलब वह MCD को अस्थिर कर सकते- सुप्रीम कोर्ट
मामले में अपना फैसला सुरक्षित रखने से पहले सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल कहा था कि एमसीडी के पार्षद मनोनीत करने की शक्ति उपराज्यपाल के पास होने का मतलब है कि वह नगर निगम को अस्थिर कर सकते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा था कि LG के पास दिल्ली में एक्सटेनसीव एग्जीक्यूटिव पावर्स नहीं हैं।
इन मामलों में हैं एलजी के पास शक्तियां
सुप्रीम कोर्ट ने बताया था कि LG अनुच्छेद 239AA (3) (A) के तहत केवल तीन विशिष्ट क्षेत्रों में अपने विवेक पर कार्यकारी शक्ति का उपयोग कर सकते हैं। वह है पब्लिक ऑर्डर, पुलिस और जमीन। अदालत ने यह भी कहा कि अगर LG दिल्ली सरकार की मंत्रिपरिषद से असहमत है तो उन्हें कार्य नियम ट्रांजेक्शन ऑफ बिजनेस 1961 में उल्लेखित प्रक्रिया का पालन करना चाहिए।
वहीं, सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान LG की तरफ से तर्क दिया गया था कि संविधान के अनुच्छेद 239(AA) के तहत LG की पावर और दिल्ली के एडमिनिस्ट्रेटर के रूप में उनकी भूमिका के बीच अंतर है। उन्होंने कहा कि कानून के आधार पर एल्डरमैन की नियुक्ति में LG की भूमिका है।
ASG के तर्क
सुनवाई के दौरान दिल्ली और नगर पालिकाओं के संबंध में कानून की उत्पत्ति के संबंध में एडिशनल सॉलिसीटर जनरल ने कहा था, “एमसीडी सेल्फ-गवर्निंग बॉडी है और एमसीडी अधिनियम के अर्थ में एडमिनिस्ट्रेटर की भूमिका अनुच्छेद 239AA (जो दिल्ली को विशेष दर्जा देता है) या GNCTD (राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार) अधिनियम के तहत प्रदान की गई भूमिका की मिरर इमेज नहीं है।”
हलफनामे में कहा गया है कि दिल्ली नगर निगम अधिनियम, 1957 को 1993 में संशोधित किया गया था और एलजी को प्रशासक बनाया गया था।एमसीडी को तीन भागों में बांटने के लिए 2011 में दिल्ली विधानसभा द्वारा अधिनियम में और संशोधन किया गया था लेकिन धारा 3 (3) के तहत एल्डरमैन को नामित करने की प्रशासक की शक्ति को नहीं बदला गया था।
हलफनामे में आगे कहा गया, “एलजी को डीएमसी अधिनियम में एडमिनिस्ट्रेटर के रूप में संदर्भित किया गया है और केंद्र सरकार और जीएनसीटीडी से अलग पहचाना गया है।”
क्या है एल्डरमैन की नियुक्ति के कानूनी प्रावधान?
दिल्ली नगर निगम अधिनियम, 1975 के अनुसार उपराज्यपाल 25 साल से ज्यादा उम्र के 10 लोगों को एमसीडी में एल्डरमैन के लिए नियुक्त कर सकते हैं।
एल्डरमैन को जनता के हित से जुड़े नगर निगम के फैसलों में सहायता करने का अधिकार होता है।
एल्डरमैन बनने के लिए व्यक्ति को नगर पालिका से जुड़े काम का अनुभव और ज्ञान होना जरूरी है।
(इनपुट- मल्लिका जोशी)