साल था 1986। बॉम्बे हाईकोर्ट के जज जस्टिस पीबी सावंत को सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में नियुक्त करने की खबर तैरने लगी। उन दिनों जस्टिस सावंत बॉम्बे हाईकोर्ट की सीनियॉरिटी में 8वें नंबर पर थे। हाईकोर्ट के एक जज जस्टिस लेंटिन से उनकी अदावत के किस्से भी आम थे। हाईकोर्ट में दोनों की नियुक्ति एक ही दिन आगे-पीछे हुई थी। जस्टिस लेंटिन सिविल कोर्ट से हाईकोर्ट आए थे, जबकि जस्टिस सावंत की नियुक्ति बार से हुई थी।

उन दिनों परंपरा यह थी कि जब एक ही दिन दो जज अप्वॉइंट होते थे तो बार से जज बनने वाले जस्टिस को सीनियर माना जाता था। हालांकि जस्टिस लेंटिन, सावंत से एक दिन पहले ही शपथ ले चुके थे। लेकिन वे उन जजों में शामिल थे जिन्हें जस्टिस सावंत वरिष्ठता में पीछे छोड़ने वाले थे।

जब CJI ने दिल्ली बुलाया

मार्च 1986 के शुरुआती हफ्ते में तत्कालीन चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (CJI) पीएन भगवती ने जस्टिस सावंत से कहा कि 6 मार्च की रात तक उनका नाम सुप्रीम कोर्ट में नियुक्ति के लिए मंजूर हो जाएगा। इससे पहले हर हाल में दिल्ली आ जाएं। ताकि 10 मार्च को उन्हें शपथ दिला दी जाए। जब सीजेआई ने यह खबर दी तब जस्टिस सावंत का पहले ही मदुरै में एक कार्यक्रम था, और वहां जाने की तैयारी भी कर चुके थे। लेकिन चीफ जस्टिस के कहने पर अपना कार्यक्रम रद्द कर दिया और दिल्ली चले आए।

लॉबिंग के शिकार हो गए थे जस्टिस सावंत

6 मार्च की तारीख आई। सरकार ने लिस्ट भी मंजूर कर दी। उसमें तीन जजों का नाम था, जस्टिस एमएम दत्त, जस्टिस केएन सिंह और जस्टिस एन नटराजन। जस्टिस सावंत का नाम लिस्ट से गायब था। दिग्गज एडवोकेट अभिनव चंद्रचूड़ अपनी किताब Supreme Whispers में लिखते हैं कि न्यायपालिका में किस तरह लॉबिंग और जोड़तोड़ होती है, इसका सबसे मशहूर उदाहरण जस्टिस पीबी सावंत का ही है। जैसे ही पता चला कि सुप्रीम कोर्ट में नियुक्ति के जस्टिस सावंत के नाम पर विचार किया जा रहा है, उनके खिलाफ तगड़ी लॉबी लग गई थी और आखिरकार सफल भी हो गई।

PM की टेबल पर पड़ी रही फाइल

चीफ जस्टिस भगवती ने बाद में जस्टिस सावंत को बताया कि उनका नाम प्रधानमंत्री राजीव गांधी की टेबल पर काफी समय तक पड़ा रहा। बाद में पीएम ने उन्हें फोन कर कहा कि कुछ कारणों के चलते जस्टिस सावंत का नाम महीने भर के लिए होल्ड किया जा रहा है और महीने भर बाद उन्हें सुप्रीम कोर्ट में नियुक्त कर दिया जाएगा। हालांकि जस्टिस भगवती अपने कार्यकाल में जस्टिस सावंत को सुप्रीम कोर्ट में नियुक्त कराने में असफल रहे।

इस्तीफे की धमकी देने लगे साथी जज

सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ के बेटे अभिनव चंद्रचूड़ लिखते हैं, ‘जस्टिस सावंत का नाम लटकाने की एक वजह यह थी कि बॉम्बे हाईकोर्ट में उनके सीनियर जज सरकार के पास चले गए और इस्तीफे की धमकी देने लगे। तमाम सीनियर एडवोकेट्स भी एक हो गए।

आखिरकार 3 साल बाद हो पाई थी नियुक्ति

अभिनव लिखते हैं कि उन दिनों प्रधानमंत्री राजीव गांधी के एक पर्सनल सेक्रेटरी की बॉम्बे हाईकोर्ट के एक ऐसे जज से दोस्ती थी, जिसे जस्टिस सावंत सीनियॉरिटी में पीछे छोड़ने वाले थे। सरकार नहीं चाहती थी कि सावंत के चलते बॉम्बे हाईकोर्ट के जजों में खटास आए। इसीलिए उनका नाम मंजूर नहीं किया। बाद में साल 1989 में जस्टिस सावंत सुप्रीम कोर्ट के जज नियुक्त हुए थे।