कैसा हो अगर राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार (National Film Awards) जीतने वाली एक हीरोइन को उस फिल्म फेस्टिवल में जाने से रोक दिया जाए, जिसमें उसकी ही एक फिल्म दिखाई जाने वाली हो। कारण यह कि वह हीरोइन, हीरोइन की तरह नहीं दिखती थी।
यह घटना हुई थी स्मिता पाटिल के साथ। अपने सांवले रंग के साथ उन्होंने भारतीय सिने जगत में सफलता तो पा लिया, लेकिन समाज के पूर्वाग्रह को नहीं बदल पायीं। मैथिली राव ने स्मिता पाटिल की जीवनी ‘स्मिता पाटिल अ ब्रीफ इनकैनडिसेंस’ में अनीता पाटिल के हवाले से फिल्म फेस्टिवल वाली घटना को लिखा है।
अनीता पाटिल, स्मिता पाटिल की बहन हैं। वह बताती हैं, “यह 1980 के दशक की शुरुआत की बात है। मैं, स्मिता और पूनम ढिल्लो दिल्ली फिल्म फेस्टिवल में शामिल होने पहुंचे थे। वहां पहुंचकर याद आया कि हम अपना डेलीगेट्स बैज भूल आए हैं। ऐसे में उन्होंने पूनम को तो अंदर जाने दिया लेकिन स्मिता को नहीं क्योंकि वह एक फिल्म स्टार की तरह नहीं दिखती थीं।”
ध्यान रहे कि स्मिता पाटिल को अपनी फिल्म ‘भूमिका’ के 1977 में ही बेस्ट एक्ट्रेस का प्रतिष्ठित नेशनल अवार्ड मिल चुका था। जिस फिल्म फेस्टिवल में उन्हें जाने से रोका गया, उसमें भी उनकी फिल्म ‘चक्र’ की स्क्रीनिंग होने वाली थी। चक्र के लिए भी स्मिता पाटिल को 1981 में बेस्ट एक्ट्रेस का नेशनल अवार्ड मिला था।
दान में दे दिया था राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार का पूरा पैसा
जब श्याम बेनेगल की फिल्म ‘भूमिका’ को राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार देने की घोषणा हुई थी, तब स्मिता पाटिल महाराष्ट्र के एक गांव में रामदास फुटाने की फिल्म सर्वसाक्षी की शूटिंग कर रही थीं। द स्क्रॉल पर लिखे एक आर्टिकल में अनीता बताती हैं, “दिल्ली से किसी ने घर फोन करके मां को अवार्ड के बारे में बताया। मां को राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कारों के बारे में कोई जानकारी नहीं थी। उन्हें केवल यह पता चला कि स्मिता को “कोई पुरस्कार” मिला है। जब स्मिता शूटिंग से लौटी तो मां को राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार का महत्व समझाया। साथ ही यह बताया कि पुरस्कार के साथ 10,000 रुपये नकद मिलेंगे। स्मिता ने मां से गरीबों के लिए काम करने वाली 10 संस्थाओं को पैसे दान करने के लिए कहा। मां ने बिलकुल वैसा ही किया।”
अनीता आगे लिखती हैं, “मैंने अक्सर इस बारे में सोचा है। कोई ऐसा क्यों करेगा? उस समय स्मिता 22 साल की थी। उसके पास कोई नौकरी नहीं थी। परिवार मध्यम वर्गीय था। उन दिनों दस हजार रुपये बड़ी रकम होती थी।”
RSS के काउंटर में बनाए गए RSD में थी स्मिता
स्मिता पाटिल का जन्म 17 अक्टूबर, 1955 को महाराष्ट्र के एक राजनीतिक परिवार में हुआ था। स्मिता पाटिल के पिता शिवाजीराव गिरिधर पाटिल स्वतंत्रता सेनानी थी। आजादी की लड़ाई में वह 15 साल की उम्र में जेल गए थे। आजादी के बाद प्रजा सोशलिस्ट पार्टी में रहे और फिर 1964 में कांग्रेस पार्टी ज्वाइन कर लिया। वह महाराष्ट्र सरकार में बिजली और सिंचाई मंत्री भी रहे।
वहीं स्मिता पाटिल की मां विद्याताई पाटिल महाराष्ट्र की जानीमानी समाज सेविका थीं। शिवाजीराव पाटिल और विद्याताई को तीन बेटियां थी। सबसे बड़ी का नाम अनीता, दूसरे नंबर पर स्मिता और सबसे छोटी मान्या। स्मिता की शुरुआती पढ़ाई मराठी माध्यम स्कूल में हुई।
स्कूली जीवन के दौरान ही स्मिता राष्ट्र सेवा दल में शामिल हुई थीं। दरअसल, राजनीतिक रूप से जागरूक माता-पिता ने अनीता और स्मिता को राष्ट्र सेवा दल (RSD) में शामिल होने के लिए प्रोत्साहित किया। RSD एक सांस्कृतिक संगठन था, जिसकी स्थापना का स्वतंत्रता सेनानी और समाजवादी नेता एस.एम जोशी ने की थी।
1940 के दशक में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) तेजी से अपनी शाखाएं खोल रहा था, जिसमें बच्चों और युवाओं को वैचारिक और शारीरिक रूप से प्रशिक्षित किया जाता था। जोशी संघ की विचारधारा को खतरनाक मानते थे। उनके विचार में संघ बच्चों का ब्रेनवॉश कर उन्हें संकीर्ण और हिंदुत्ववादी बना रहा था। उन्हें संघ के काउंटर में ही RSD बनाने का विचार आया।
तब कांग्रेस सेवा दल था लेकिन वह युवाओं को वैचारिक रूप से प्रशिक्षित नहीं करता था। जोशी ने महात्मा गांधी के प्रमुख सिद्धांत “सर्वधर्म समभाव” का पालन करते हुए राष्ट्र सेवा दल के साथ आरएसएस शाखाओं का मुकाबला करने का फैसला किया। आरएसडी भी युवाओं को भर्ती कर प्रशिक्षित करने लगा।
अनीता और स्मिता भी आरएसडी की सदस्य बनीं। दोनों भारत दर्शन और महाराष्ट्र दर्शन पर गईं। आरएसडी में रहते हुए दोनों बहनें हाशिए पर मौजूद लोगों की सेवा के लिए दूरदराज के गावों में गईं।
स्मिता पाटिल की जिंदगी में आरएसडी के महत्व को रेखांकित करते हुए जीवनीकार मैथिली राव लिखती हैं, “समतावाद और सामाजिक न्याय, सभी आस्थाओं और धर्मों की समानता का विचार स्मिता पाटिल में अंतर्निहित था। सचेतन और अवचेतन रूप से आरएसडी के साथ बिताए गए वर्षों ने उनके चरित्र और व्यक्तित्व को आकार देने में एक अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।”
जींस के ऊपर साड़ी बांधकर दूरदर्शन में पढ़ती थीं खबर
मुंबई के एलफिंस्टन कॉलेज में पढ़ने के दौरान उन्हें दूरदर्शन मराठी में न्यूज रीडर का काम मिल गया था। काम मिलने का किस्सा भी दिलचस्प है। दरअसल, स्मिता पाटिल की एक दोस्त ज्योत्सना किरपेकर मुंबई स्थित दूरदर्शन मराठी में न्यूज रीडर थीं। दोस्त का पति दीपक किरपेकर एक फोटोग्राफर था। दीपक किरपेकर अक्सर स्मिता पाटिल की तस्वीर खींचा करते थे।
एक रोज वह स्मिता की तस्वीर अपनी पत्नी को दिखाने दूरदर्शन के दफ्तर पहुंचे। गेट से अंदर जाने से पहले उन्होंने तस्वीरों को अरेंज करने के मकसद से जमीन पर फैला दिया। तभी दूरदर्शन के डायरेक्टर पी वी कृष्मामूर्ति वहां से गुजरे। वह उन तस्वीरों को देखकर रुक गए। दीपक से तस्वीर में दिख रही लड़की के बारे में पूछा। दीपक ने बताया। डायरेक्टर ने स्मिता को दफ्तर लेकर आने को कहा।
जब दीपक ने यह बात स्मिता को बताई, तो पहले वह आने को राजी नहीं हुईं। बहुत कोशिश के बाद दीपक उन्हें अपनी स्कूटर पर बैठाकर दूरदर्शन के दफ्तर लेकर गए। वहां उनका ऑडिशन हुआ। स्मिता को कुछ गाकर सुनना था, कुछ ऐसा जो वह खुद पसंद करती हों। स्मिता पाटिल ने बांग्लादेश का राष्ट्रगान ‘आमार शोनार बाँगला’ सुनाया
स्मिता का चयन हो गया। वह दफ्तर में जींस पहनकर आती थीं। लेकिन टीवी पर न्यूज पढ़ने से ठीक कुछ मिनट पहले जींस के ऊपर पर ही साड़ी बांध लिया करती थीं। वह मराठी शब्दों का उच्चारण बहुत शुद्ध करती थीं। यही वजह थी कि मराठी सीखने के इच्छुक लोग स्मिता पाटिल को न्यूज पढ़ते हुए सुना और देखा करते थे।