महाराष्ट्र में चार बार मुख्यमंत्री रहे और राज्य के सबसे बड़े मराठा नेता शरद पवार को कभी भी मराठा समुदाय के द्वारा की जा रही आरक्षण की मांग के मामले में अपनी राय खुलकर नहीं बतानी पड़ी। जबकि उनकी पार्टी ने हमेशा आधिकारिक रूप से मराठा समुदाय के लिए आरक्षण का समर्थन किया है लेकिन रविवार के दिन बहुत कुछ बदल गया।

शरद पवार रविवार को सोलापुर जिले के बार्शी शहर में जब एक रैली को संबोधित कर रहे थे तो मराठा समुदाय के लोगों ने नारेबाजी की और उन्हें काले झंडे दिखाए। पुलिस ने तुरंत कार्रवाई करते हुए इन प्रदर्शनकारियों को हिरासत में ले लिया।

इसके बाद प्रदर्शनकारियों ने सोलापुर जिले की माधा तहसील में उनके काफिले को रोका और पवार से कहा कि वह मराठा समुदाय के आरक्षण को लेकर अपना स्टैंड साफ करें।

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उद्धव ठाकरे की मल्लिकार्जुन खड़गे, राहुल गांधी और इंडिया गठबंधन के नेताओं से मुलाकात (Source- PTI)

पवार बोले- आरक्षण की मांग का शुरू से किया है समर्थन

पवार ने प्रदर्शनकारियों के सवाल के जवाब में कहा कि वह शुरू से ही मराठा समुदाय के आरक्षण की मांग का समर्थन करते रहे हैं। सोमवार को शरद पवार ने मराठा क्रांति ठोक मोर्चा के प्रतिनिधियों से अपने घर पर मुलाकात की और उनसे इस मुद्दे पर अपना रुख बताने को कहा।

शरद पवार को मराठा समुदाय के आरक्षण के मुद्दे पर अपना पक्ष अब तक इसलिए खुलकर नहीं बताना पड़ा था क्योंकि जिस दौरान वह महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री थे, तब तक यह मुद्दा इतना बड़ा नहीं था और जब यह मुद्दा बड़ा बना तब वह बड़े नेता होने के बाद भी किसी ताकतवर ओहदे पर नहीं थे।

शरद पवार महाराष्ट्र में मराठा समुदाय के सबसे बड़े नेता हैं लेकिन उन्हें सिर्फ इस समुदाय के नेता के रूप में नहीं बल्कि पूरे महाराष्ट्र के नेता के रूप में जाना जाता है।

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विधानसभा चुनाव में बड़ा मुद्दा बन सकता है मराठा आरक्षण। (Source-PTI)

1981 में पहली बार कांग्रेस विधायक ने उठाई थी मराठा आरक्षण की मांग

1981 में सबसे पहले कांग्रेस विधायक अन्नासाहेब पाटिल ने मराठा आरक्षण की मांग उठाई थी। मिडिल और लोअर मिडिल क्लास के मराठा समुदाय की समृद्धि जब घटने लगी तब आरक्षण की मांग को और बल मिला। मराठा समुदाय राजनीतिक रूप से प्रभावशाली है और इसमें अधिकतर लोग जमीदार हैं और खेती-किसानी से जुड़े हुए हैं। इस समुदाय ने महाराष्ट्र को सबसे ज्यादा मुख्यमंत्री भी दिए हैं।

1990 में मंडल आयोग की रिपोर्ट के लागू होने के बाद जब ओबीसी समुदाय को आरक्षण मिला उसके बाद भी मराठा समुदाय के लिए आरक्षण की मांग मुखर रूप से नहीं सुनाई दी। मराठा समुदाय के लिए आरक्षण की मांग महाराष्ट्र की राजनीति में 2016 से 2018 के बीच तब सुनाई दी थी, जब समुदाय के लोगों ने आरक्षण की मांग को लेकर जोरदार प्रदर्शन किया।

पहले यह प्रदर्शन शांतिपूर्ण थे लेकिन बाद में हिंसक हो गए। मराठा समुदाय के लिए आरक्षण की मांग मराठा क्रांति मोर्चा की ओर से उठाई गई थी। जिस दौरान मराठा समुदाय के लिए आरक्षण की मांग जोर-शोर से उठी, उस दौरान कांग्रेस और एनसीपी सत्ता में नहीं थे बल्कि बीजेपी सत्ता में थी।

एमकेटीएम के एक नेता ने कहा कि 2016 में यह आंदोलन शुरू हुआ था तो यह मराठाओं के द्वारा और मराठाओं के लिए था और इसे पूरी तरह से गैर राजनीतिक आंदोलन माना जाता था। लेकिन धीरे-धीरे कांग्रेस और एनसीपी ने इसका इस्तेमाल देवेंद्र फडणवीस की सरकार को निशाना बनाने के लिए करना शुरू कर दिया।

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अज‍ित पवार (ऊपर) और देवेंद्र फड़णवीस की फाइल फोटो (Source-PTI)

शरद पवार ने मराठा समुदाय के लिए क्या किया?

एमकेटीएम के नेता ने कहा कि अब हम खुद से पूछ रहे हैं कि मराठा समुदाय के शरद पवार जैसे बड़े नेता जो चार बार मुख्यमंत्री रहे, उन्होंने मराठा समुदाय के लिए क्या किया। उन्होंने मराठा समुदाय के आरक्षण का मुद्दा अपने मुख्यमंत्री रहते हुए क्यों नहीं सुलझाया? हम इस बात को भी देख रहे हैं कि महा विकास आघाडी के नेता अपने राजनीतिक स्वार्थ के लिए आरक्षण के मुद्दे का फायदा उठा रहे हैं।

एमकेटीएम के नेता रमेश केरे पाटिल ने कहा, ‘देवेंद्र फडणवीस ने मुख्यमंत्री रहते हुए कम से कम मराठाओं को 13% आरक्षण तो दिया, शरद पवार ने आरक्षण के मामले में हमारे लिए क्या किया?’

ओबीसी समुदाय के विरोध का है डर

महाराष्ट्र के अन्य सभी राजनीतिक दलों की तरह एनसीपी (शरद चंद्र पवार) भी सैंद्धातिक रूप से मराठा समुदाय के लिए आरक्षण के पक्ष में है लेकिन वह इसे ओबीसी को मिलने वाले आरक्षण से नहीं देना चाहते क्योंकि ओबीसी समुदाय के लोग इसके विरोध में सड़कों पर उतर जाएंगे।

शरद पवार ने मराठा आरक्षण की लड़ाई लड़ रहे कार्यकर्ताओं से मुलाकात के दौरान गेंद केंद्र सरकार के पाले में डालने की कोशिश की। पवार ने कहा, ‘आरक्षण का दायरा बढ़ाए जाने में एक रुकावट है क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया था कि आरक्षण के मामले में 50% की सीमा का उल्लंघन नहीं किया जा सकता। इस नीति को बदला चाहिए और नीति बदलने का अधिकार मोदी सरकार के पास है। अगर मोदी सरकार इस नीति को बदलने का फैसला करती है तो महाराष्ट्र के सभी राजनीतिक दल अपने मतभेदों को किनारे रखकर सरकार का समर्थन करेंगे और सरकार के साथ खड़े होंगे।’

शरद पवार ने कहा कि महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री को इस मामले में सर्वदलीय बैठक बुलानी चाहिए। मराठा समुदाय के आरक्षण की लड़ाई के प्रमुख चेहरे मनोज जरांगे पाटिल, ओबीसी नेता छगन भुजबल और अन्य सभी लोगों को बातचीत के लिए बुलाना चाहिए और इस मामले का हल निकालना चाहिए।

ऐसे वक्त में जब मराठा समुदाय गुस्से में है और कुछ ही महीने बाद विधानसभा के चुनाव होने हैं तो हाल में हुए घटनाक्रमों से पता चलता है कि महा विकास आघाड़ी गठबंधन के सहयोगी दल केवल महायुति सरकार का विरोध करके इस मामले में बच नहीं पाएंगे।

इस रणनीति ने लोकसभा चुनाव के दौरान तो काम किया था और मराठा समुदाय के असर वाली सीटों पर महायुति को नुकसान भी पहुंचा था।

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महाराष्ट्र में एनडीए गठबंधन की बढ़ेंगी मुश्किलें?। (Source- FB)

महाराष्ट्र में 52% है ओबीसी आबादी

पवार और उनके सहयोगी भी ओबीसी समुदाय को नाराज करने का जोखिम नहीं उठा सकते क्योंकि राज्य में ओबीसी समुदाय की आबादी 52% है।

एनसीपी (शरद चंद्र पवार) की महाराष्ट्र इकाई के अध्यक्ष जयंत पाटिल ने कहा कि सत्ता में बैठी पार्टियों को इस मामले में कदम उठाना होगा और सभी संगठनों से बात करके आरक्षण मुद्दे को सर्वसम्मति से हल करना होगा। उन्होंने कहा कि दुर्भाग्य से बीजेपी विपक्ष के नेताओं को निशाना बनाने के लिए कुछ वर्गों को उकसा रही है। वे लोग शरद पवार पर हमला करके इस मुद्दे का राजनीतिकरण करने और अपनी नाकामियों को छुपाने की कोशिश कर रहे हैं।