सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील दुष्यंत दवे अक्सर सरकार की नीतियों की आलोचना करते हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तरह ही दवे का भी गृह राज्य गुजरात है। दवे का मानना है कि प्रधानमंत्री देश को सही दिशा में नहीं ले जा रहे हैं।

एक इंटरव्यू में दवे कहते हैं, “मेरा ऐसा मानना है कि प्रधानमंत्री देश को सही रास्ते पर नहीं ले जा रहे हैं। प्रधानमंत्री के पास देश को आगे ले जाने की जो शक्तियां है उसका सही इस्तेमाल नहीं हो रहा है।”

दवे से पूछा गया कि उन्हें ऐसा क्यों लगता है तो उन्होंने जवाब दिया, “जब आप सभी वर्गों को साथ लेकर नहीं चलेंगे। वह रास्ता सही कैसे होगा। पिछले दिनों मध्य प्रदेश में भाजपा के एक मेंबर ने वंचित समुदाय के व्यक्ति के ऊपर पेशाब कर दिया। देश में स्त्रियों की हालत भी सही नहीं है। भारत में बलात्कार के सिर्फ एक प्रतिशत मामले ही रिपोर्ट हो रहे हैं। 99 प्रतिशत मामले ऐसे हैं, जिसे महिलाएं रिपोर्ट नहीं करा रही हैं। अगर रिपोर्ट करने जाएंगी तो समाज में उनका रहना मुश्किल हो जाएगा, पुलिस उनकी स्टोरी नहीं मानेगी, उसकी हंसी उड़ाएगी और अगर केस कोर्ट में आ गया तो पब्लिक ह्युमिलियेशन शुरू हो जाएगा।”

दवे आगे कहते हैं कि “जब तक हम देश के वंचित समुदायों को उनका हक नहीं दिलाएंगे तक तक आजादी का कोई मतलब नहीं है। आजादी के इतने साल बाद भी कहीं किसी भी गांव में चले जाइए दलितों के घर गांव के बाहर मिलेंगे, दलित ऊंची जाति के हिंदुओं के कुएं को छू नहीं सकते, उनके मंदिरों में नहीं जा सकते। इन सभी समस्याओं को नरेंद्र मोदी जैसे लोकप्रिय नेता एक बार में खत्म कर सकते हैं। उनमें बहुत शक्ति है। लेकिन ऐसा नहीं हो रहा है।”

क्या पीएम जानबूझकर नहीं कर रहे प्रयास?

इस सवाल के जवाब में दवे स्पष्ट तौर पर कहते हैं, “मैं गलत हो सकता हूं। लेकिन मेरा मानना यही है कि पीएम मोदी इस दिशा में प्रयास ही नहीं कर रहे हैं। हम हिंदुस्तान की आबादी को अपनी समस्या मानते हैं। 20 से 50 की उम्र के लोगों के पास नौकरी नहीं है। वो बर्बाद हो रहे हैं। देश में करीब 20 से 25 करोड़ नौजवान बेरोजगार हैं। हम इनका इस्तेमाल क्यों नहीं कर रहे हैं।”

लोकतंत्र में आलोचना क्यों जरूरी?

दुष्यंत दवे आलोचना को फंडामेंटल राइट बताते हुए कहते हैं कि अगर लोकतंत्र में आलोचना नहीं होगी, तो वह तानाशाही बन जाएगी। दवे कन्हैया लाल मुंशी का एक वक्तव्य याद कर बताते हैं कि एक बार संविधान सभा में कन्हैया लाल मुंशी ने कहा था लोकशाही मतलब- आलोचना का अधिकार।

क्या देश में आलोचना करने का माहौल है?

दुष्यंत दवे का मानना है कि देश में डर का माहौल बन गया है। वह तंज करते हुए कहते हैं, “प्रधानमंत्री और भारतीय जनता पार्टी को मैं एक चीज के लिए बधाई देना चाहूंगा कि उन्होंने लोगों से उनकी हिम्मत छीन ली है। हम अतार्किक बनते जा रहे हैं। आज डाइनिंग टेबल पर पोलराइज हो चुका है। 5000 साल का हमारा इतिहास है, पहले कभी इतना पोलराइजेशन नहीं था, जितना आज है। देश में अशोक से लेकर अकबर तक का साम्राज्य रहा। लेकिन आलोचना की जगह कभी खत्म नहीं हुई। यह दुख की बात है कि लोग आज स्वतंत्र रूप से अपने विचार व्यक्त नहीं कर पाते हैं। मैं देश के लोगों से प्रार्थना करता हूं कि अगर वह लोकतंत्र को बचाना चाहते हैं तो आलोचना जरूर करें। सरपंच से लेकर प्रधानमंत्री तक के एक्शन पर नजर रखें।”

भारत में लोकतंत्र का हाल

वी-डेम डेमोक्रेसी रिपोर्ट 2023 के चुनावी लोकतंत्र सूचकांक में भारत 108वें स्थान पर है। 2022 में भारत 100वें स्थान पर था। अब देश तंजानिया, बोलीविया, मैक्सिको, सिंगापुर और नाइजीरिया जैसे देशों से काफी नीचे है। मार्च 2023 में जारी रिपोर्ट में भारत का नाम पिछले 10 वर्षों के शीर्ष 10 निरंकुश देशों में शामिल था।