जजों की नियुक्ति की प्रणाली कॉलेजियम सिस्टम को लेकर अक्सर सवाल उठते हैं। देश के केंद्रीय कानून मंत्री किरन रिजिजू भी कॉलेजियम सिस्टम में पारदर्शिता की कमी की बात कह चुके हैं। हालांकि न्यायिक बिरादरी का एक बड़ा वर्ग कॉलेजियम सिस्टम का बचाव करता है। हाल में भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने कॉलेजियम सिस्टम में पारदर्शिता लाने के लिए की गई पहल पर अपनी बात रखी।
सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कॉलेजियम सिस्टम के कामकाज में और अधिक पारदर्शिता लाने के लिए पहले से की गई पहल और अपनी योजनाओं को साझा किया।
रिसर्च विंग कर रही है काम
सीजेआई ने बताया कि मुख्य न्यायाधीश के रूप में शपथ लेने के बाद उन्होंने यह सुनिश्चित किया कि कोलेजियम के प्रस्तावों में विस्तृत कारण दिए जाएं। जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा है कि उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के रिसर्च विंग यानी सेंटर फॉर रिसर्च एंड प्लानिंग (CRP) को निर्देश दिया है कि कॉलेजियम के डिसीजन मेकिंग में अधिक निष्पक्षता लाने के लिए, सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम के स्थायी सचिवालय की सहायता करे।
CJI ने कहा, ऐसा कभी नहीं किया गया। कॉलेजियम जो काम करता है उसमें सेंस ऑफ ऑब्जेक्टिविटी की भावना को बढ़ावा देना है। इसलिए, सेंटर फॉर रिसर्च एंड प्लानिंग और परमानेंट सेक्रेटेरिएट एक साथ मिलकर काम करेंगे। सेंटर फॉर रिसर्च एंड प्लानिंग में कुछ असाधारण प्रतिभाशाली युवा हैं। CRP की परिकल्पना तत्कालीन सीजेआई टीएस ठाकुर ने की थी।
भारत में कैसे होती है जजों की नियुक्ति? सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज मदन लोकुर ने समझाया, देखें वीडियो
कैसे होती है जजों की नियुक्ति?
सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज मदन बी लोकुर ने एक इंटरव्यू में जजों की नियुक्ति का प्रोसेस समझाया है। वह कहते हैं,
“हाईकोर्ट में जजों की नियुक्ति का उदाहरण लें तो कॉलेजियम मुख्य न्यायाधीश और दो वरिष्ठ जजों के सुझाव से रिकमेन्डेशन तैयार करता है। रिकमेन्डेशन को तैयार करने से पहले कॉलेजियम के बाहर के कई जजों और वकीलों से भी परामर्श किया जाता है।
इस प्रोसेस के बाद हाईकोर्ट कॉलेजियम कुछ नाम तय करता है। उन नामों को राज्य के मुख्यमंत्री के पास भेजा जाता है। शिष्टाचार के तौर पर नामों की सूची राज्यपाल के पास भी भेजी जाती है। राज्य के मुख्यमंत्री और राज्यपाल नामों पर आपत्ति दर्ज करा सकते हैं। कोई टिप्पणी कर सकते हैं। या उन्हें जो कहना है वह कह सकते हैं।
इसके बाद मुख्यमंत्री अपनी आपत्ति/टिप्पणी के साथ नामों की सूची को भारत सरकार के कानून मंत्री के पास भेजते हैं। फिर कानून मंत्री भी इसे प्रोसेस करते हैं। उन्हें कुछ कहना होता है तो कहते हैं। अगर कोई सूटेबल नहीं होता है, तो बताते हैं। साथ में कारण भी बताते हैं।
इसके बाद यह पूरा का पूरा मैटर सुप्रीम कोर्ट के कोलेजियम के पास भेजा जाता है। सुप्रीम कोर्ट का कॉलेजियम चेक करता है। वह हाईकोर्ट के कॉलेजियम की सूची देखता है। मुख्यमंत्री और राज्यपाल की आपत्ति/टिप्पणी पर गौर करता है। कानून मंत्री के सुझावों पर ध्यान देता है।
इसके बाद सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम अपने उन वरिष्ठ जजों को इंक्वायरी के लिए लिखता है, जो उस अमुक हाईकोर्ट से जुड़े होते हैं। यानी सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम हाईकोर्ट के कॉलेजियम द्वारा भेजे गए नामों की जांच करवाता है। उन जजों के रिव्यू के बाद कॉलेजियम नाम फाइनल करता है।
कॉलेजियम द्वारा निर्णय लिए जाने के बाद रिकमेन्डेशन को भारत सरकार के पास भेजा जाता है। कई बार भारत सरकार पुनर्विचार के लिए फाइल सुप्रीम कोर्ट के कोलेजियम को वापस भेज देती है। सरकार की टिप्पणी के आधार पर उसमें बदलाव किया जाता है। या अगर सरकार की तरह से भेजे गई नए मटेरियल में दम नहीं होता, तो उसे खारिज कर दिया जाता है।”
इसके बाद रिकमेन्डेशन एक बार फिर भारत सरकार को भेजा जाता है, तब उन्हें उसे स्वीकार करना ही होता है। इस तरह हाईकोर्ट में जज की नियुक्ति होती है।”