Sardar Vallabhbhai Patel’s Views On Kashmir Problem: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने पहले कार्यकाल में अगर सरदार वल्लभभाई पटेल भारत के पहले प्रधान मंत्री होते, तो मेरे कश्मीर का एक हिस्सा आज पाकिस्तान के साथ नहीं होता।
हाल में संसद में चर्चा के दौरान गृहमंत्री अमित शाह ने भी कश्मीर समस्या के लिए नेहरू को दोषी ठहराया। दरअसल, पिछले कुछ वर्षों में भाजपा ने खुद को भारत के पहले गृह मंत्री की विरासत के सच्चे उत्तराधिकारी के रूप में स्थापित किया है। कश्मीर पर नेहरू की कथित लापरवाही की आलोचना और पटेल के चरित्र और प्रतिबद्धता का जश्न, इस कथा के मूल में रहा है।
ऐसे में सरदार पटेल की पुण्यतिथि (15 दिसंबर) पर ऐतिहासिक तथ्यों की मदद से यह जान लेना ही उचित होगा कि कश्मीर को लेकर पटेल की क्या राय था। पटेल कश्मीर समस्या को एक ‘सिरदर्द’ मानते थे। हालांकि सच्चाई यह भी है कि कुछ आधिकारिक रिकॉर्ड और कुछ अनौपचारिक ख़त-ओ-किताबत को छोड़ दें तो उन्होंने कश्मीर कभी बहुत विस्तार से चर्चा नहीं की।
कश्मीर के पाकिस्तान में विलय से पटले को नहीं थी समस्या!
आज़ादी से दो महीने पहले 18 से 23 जून, 1947 के बीच लॉर्ड माउंटबेटन कश्मीर यात्रा पर थे। माउंटबेटन ने महाराजा हरि सिंह से कहा था कि “यदि कश्मीर पाकिस्तान में शामिल हो जाता है, तो इसे भारत सरकार मित्रताहीन नहीं मानेगी।” माउंटबेटन के पूर्व राजनीतिक सलाहकार वी पी मेनन ने लिखा है कि वायसराय ने हरि सिंह से कहा कि “उन्हें स्वयं सरदार पटेल से इस पर दृढ़ आश्वासन मिला था।” (Menon: Integration of the Indian States, 1956, p. 395)
उस समय महात्मा गांधी को उम्मीद थी कि कश्मीर भारत में शामिल हो जाएगा। उस समय पटेल के राजनीतिक सचिव रहे वी शंकर के अनुसार, सरदार पटले इस बात से कोई समस्या नहीं थी कि राजा हरि सिंह अपना निर्णय खुद लें। उनका मानना था कि, “यदि शासक को लगता है कि उसका और उसके राज्य का हित पाकिस्तान में शामिल होने में है, तो वह उसके रास्ते में नहीं आएंगे।” (Shankar: My Reminiscences of Sardar Patel, 1974, p. 127)
पटेल की जीवनी के लेखक, इतिहासकार राजमोहन गांधी के अनुसार, कश्मीर के बारे में वल्लभभाई की उदासीनता 13 सितंबर, 1947 तक बनी रही, उस सुबह भारत के पहले रक्षा मंत्री बलदेव सिंह को लिखे एक पत्र में उन्होंने संकेत दिया कि “यदि (कश्मीर) दूसरे डोमिनियन में शामिल होने का फैसला करता है, तो वह इस तथ्य को स्वीकार करेंगे।” (Gandhi: Patel: A Life, 1991, p. 439) हालांकि, राजमोहन गांधी ने लिखा है, पटेल का रवैया बाद में उसी दिन बदल गया, जब उन्होंने सुना कि पाकिस्तान ने जूनागढ़ के विलय की याचिका स्वीकार कर ली है।
जब पटेल ने कहा- कश्मीर लो और मामला खत्म करो…
जब पटेल भारत के एकीकरण में जुटे थे, उन्हीं दिनों उन्होंने पाकिस्तान के सामने यह प्रस्ताव रखा था कि कश्मीर ले लो और हैदराबाद की बात करनी छोड़ दो। इस बात का जिक्र राजिंद्र सरीन की किताब ‘पाकिस्तान-द इंडिया फैक्टर’ में मिलता है। वरिष्ठ पत्रकार रशीद किदवई ने भी अपनी किताब ‘भारत के प्रधानमंत्री’ में सरीन के हवाले से ही पटेल और पाकिस्तान के मंत्री अब्दुर्र निश्तर के बीच हुई बातचीत का उल्लेख किया है।
किताब के मुताबिक, पटेल ने निश्तर से स्पष्ट कहा था, “भाई यह हैदराबाद और जूनागढ़ की बात छोड़ो, आप तो कश्मीर की बात करो.. आप कश्मीर ले लो और मामला खत्म करो।” हालांकि पाकिस्तान के प्रधानमंत्री लियाकत अली को यह प्रस्ताव पसंद नहीं आया। और उन्होंने ‘कुछ पहाड़ियों’ (कश्मीर) के बदले हैदराबाद जैसे राज्य पर दावा छोड़ने से इनकार कर दिया। अंतत: पाकिस्तान को मुंह की खानी पड़ी और हैदराबाद एवं कश्मीर दोनों भारत का हिस्सा बन गए।
