वैश्विक पटल पर कश्मीर की पहचान एक ऐसे क्षेत्र की बन गई है, जिसके लिए भारत और पाकिस्तान लड़ते रहते हैं। आजादी के तुरंत बाद 24 अक्टूबर 1947 को पाकिस्तान के कबायली लड़ाकों ने कश्मीर पर हमला कर, कुछ हिस्सों पर कब्जा कर लिया। आज उस क्षेत्र को POK के नाम से जाना जाता है।

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फिर कश्मीर को लेकर जनवरी 1965 में भारत-पाकिस्तान ने युद्ध लड़ा। इसकी शुरुआत पाकिस्तान द्वारा कच्छ के रण में ऑपरेशन डेजर्ट हॉक चलाए जाने के कारण हुई। तीन दिसंबर, 1971 को भारत और पाकिस्तान के बीच फिर युद्ध हुआ।

तब पाकिस्तान के अलग होकर बांग्लादेश बना। युद्ध के बाद शिमला समझौते के जरिए कश्मीर विवाद सुलझाने की कोशिश हुई और तय हुआ कि इस मामले में तीसरे देश का हस्तक्षेप स्वीकार नहीं किया जाएगा।

इसके बाद चुनाव में धांधली का आरोप लगा। अलगाववाद की शुरुआत हुई। एक हाईप्रोफाइल अपहरण हुआ। AFSPA लगा। कश्मीरी पंडितों का पलायन हुआ। कश्मीर की आजादी के लिए हुर्रियत कॉन्फ्रेंस बना।

अटल बिहारी वाजपेयी इंसानियत, जम्हूरियत और कश्मीरियत का सिद्धांत लेकर चले। दिल्ली-लौहर बस चलाई। कारगिल का युद्ध हुआ। आगरा समझौता का प्रयास हुआ। इंडियन एयरलाइंस के हवाई जहाज आईसी-814 को हाईजैक किया गया।

मनमोहन सरकार में राउंड टेबल कॉन्फ्रेंस हुआ। इस बीच अमराना से लेकर पुलवामा तक में कई बड़े आतंकी हमले हुए। हजारों जाने गईं। करोड़ों का नुकसान हुआ।

ये सबकुछ कश्मीर के लिए हुआ। दोनों देशों के बीच संघर्ष का इतना लंबा इतिहास कश्मीर के कारण बना। कश्मीर आज भी दुनिया के सबसे अधिक सैनिक तैनाती वाले क्षेत्रों में से एक है।

जब पाकिस्तान ने कश्मीर लेने से कर दिया मना

कश्मीर की वजह से आजादी के तुरंत बाद पाकिस्तान के साथ युद्ध में उलझ जाने से नेहरू और पटेल परेशान थे। अगस्त से अक्टूबर, 1947 के बीच चले प्रथम युद्ध से दोनों नेता संशय में पड़ गए थे कि कश्मीर पर कब्जा बरकरार रखना है या छोड़ना है।

बाद में पटेल ने पाकिस्तान के सामने हैदराबाद के बदले कश्मीर देने का प्रस्ताव रखा था। तब पाकिस्तान के प्रधानमंत्री लियाकत अली ने कश्मीर को मात्र कुछ पहाड़ियां करार देकर प्रस्ताव ठुकरा दिया।

वरिष्ठ पत्रकार रशीद किदवई ने अपनी किताब ‘भारत के प्रधानमंत्री’ में राजिंद्र सरीन की किताब ‘पाकिस्तान-द इंडिया फैक्टर’ के हवाले से इस किस्से का जिक्र किया है। पटेल व पाकिस्तान के मंत्री अब्दुर्र निश्तर के बीच एक वार्ता हुई।

किताब के मुताबिक, पटेल ने कहा,  ”भाई यह हैदराबाद और जूनागढ़ की बात छोड़ो, आप तो कश्मीर की बात करो.. आप कश्मीर ले लो और मामला खत्म करो।”

 गवर्नर जनरल माउंटबेटन ने पटेल के इस प्रस्ताव का जिक्र पाकिस्तान के प्रधानमंत्री लियाकत अली के सामने किया। उन्होंने पाकिस्तानी पीएम से कहा कि अगर पाकिस्तान हैदराबाद की जिद छोड़ दे तो भारत कश्मीर उन्हें देने को तैयार है।

इस पर लियाकत अली ने फौरन जवाब दिया, ”सरदार साहब, क्या आपका दिमाग चल गया है? हम एक ऐसा राज्य (हैदराबाद) क्यों छोड़ दे, जो पंजाब से बड़ा है और उसके बदले कुछ पहाड़ियां ले लें?” तब पाकिस्तान के कश्मीर की वैल्यू कुछ पहाड़ियों की थी, जिसे वह हैदराबाद के लिए नहीं छोड़ना चाहता था। दूसरी तरफ भारत भी कश्मीर को लेकर उतना आसक्त नहीं था।

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First published on: 05-09-2022 at 10:44 IST