भारतीय राजनीति में संजय गांधी की छवि बिगड़े नवाब की रही। वह देश की पहली महिला प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के छोटे बेटे थे। इंदिरा गांधी पर किताब लिखने वाली पुपुल जयकर संजय को बेहूदा और आवारा कहकर संबोधित करती हैं।
संजय गांधी का जन्म 14 दिसंबर, 1946 को हुआ। द इंडियन एक्सप्रेस की कंट्रीब्यूटिंग एडिटर नीरजा चौधरी अपनी किताब ‘How Prime Ministers Decide’ में बताती हैं कि संजय के जन्म के वक्त इंदिरा को बहुत दर्द और परेशानी का सामना करना पड़ा था। वह उन्हें जन्म देते समय लगभग मर रही थीं।
जब संजय गर्भ में थे, तो इंदिरा की इच्छा थी कि वह एक लड़की को जन्म दें। उन्होंने उसके लिए एक नाम भी सोच लिया था। इंदिरा की कुलदेवी का नाम सारिका बताया जाता है। वह अपनी बेटी को यही नाम देना चाहती थीं। बाद में यह नाम इंदिरा के फैमिली फ्रेंड और कांग्रेस नेता कैप्टन सतीश शर्मा की बेटी को मिला।
बचपन में बहुत बदमाश थे संजय
संजय का जीवन उथल-पुथल से भरा रहा। बचपन में वह अपने नाना (नेहरू) के घर तीन मूर्ति भवन में फूलों के गमले तोड़ते और कुत्तों के कान खींचते थे। नीरजा लिखती हैं कि संजय बचपन में बहुत शरारती थे। उन्हें अक्सर खरोंचें आती रहती थीं। पढ़ाई में उनका मन बिलकुल नहीं लगता था। इंदिरा ने पहले उन्हें दिल्ली के मॉडर्न स्कूल भेजा और फिर देहरादून के आवासीय दून स्कूल में ट्रांसफर करा दिया। लेकिन संजय को तो स्कूल से नफरत थी। वह देहरादून में नहीं टिक पाए और उनकी स्कूली शिक्षा दिल्ली के सेंट कोलंबस से पूरी हुई।

इंदिरा गांधी ने एक बार अपनी मित्र पुपुल जयकर से कहा था, “राजीव विनम्र और अच्छे व्यवहार वाले छात्र थे। वहीं संजय विद्रोही और हंगामा करने वाले छात्र रहे। वह स्कूल की किसी भी गतिविधियों में रुचि नहीं लेते थे। अपने शिक्षकों के प्रति इतने असभ्य थे, जिसे बर्दाश्त नहीं किया जा सकता था। वह एक जंगली और मनमौजी युवक के रूप में बड़े हुए। वह अक्सर गंदगी में रहते और कारों के साथ कुछ-कुछ करते रहते थे।”
विदेश से भी इंटर्नशिप पूरा किए बिना लौटे आए
संजय को बचपन से ही मैकेनो सेट, कारों और हवाई जहाजों में रुचि थी। यह देखकर इंदिरा ने उन्हें इंग्लैंड के क्रेवे स्थित रोल्स-रॉयस कंपनी में इंटर्नशिप के लिए भेजा। हालांकि, वह तीन साल का प्रशिक्षण कोर्स भी पूरा नहीं कर पाए और दो साल में ही वापस लौट आये।
1967 में यूके से लौटने के बाद उन्होंने एक छोटी, सस्ती और स्वदेशी कार बनाने की ठानी। इंदिरा गांधी ने अपने बेटे के इस प्रोजेक्ट को प्रोत्साहित किया। 1971 में सरकार ने संजय को कार निर्माण का लाइसेंस दे दिया। प्रोजेक्ट पूरा हो इसके लिए सरकार ने कई तरह से मदद की।
जून 1971 में मारुति मोटर्स लिमिटेड की स्थापना हुई और संजय कंपनी के पहले प्रबंध निदेशक बने। हरियाणा के मुख्यमंत्री बंसी लाल ने कारखाने के लिए बहुत ही कम कीमत पर 297 एकड़ जमीन दी। संजय और उनकी मां को खुश करने की उत्सुकता में बंसी लाल ने किसानों को उनकी जमीन से बेरहमी से बेदखल कर दिया।
संजय की बनाई गाड़ी को खरीदने के लिए कार डीलर्स एडवांस में बड़ी राशि देने को तैयार थे। पचास हजार कारों का निर्माण किया जाना था – अक्टूबर 1973 तक 10,000, 1974 तक 25,000, और बाकी बाद में। हालांकि, एक भी कार का निर्माण नहीं किया गया। संजय की मौत के बाद इंदिरा ने भारतीय सड़कों पर आज देखी जाने वाली मारुति कारों के उत्पादन के लिए जापान की सुजुकी के साथ कॉन्ट्रैक्ट किया।
14 दिसंबर 1983 को जब गुड़गांव की फैक्ट्री से एक छोटी सफेद मारुति-800 निकली, तो इंदिरा गांधी ने कंपनी के अधिकारियों को भावुकता भरी आवाज में संबोधित किया था।