Akhilesh Yadav PDA Politics: पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक (PDA) कार्ड के जरिए लोकसभा चुनाव 2024 में अच्छी कामयाबी हासिल करने वाली समाजवादी पार्टी ने अब ब्राह्मण मतदाताओं का रुख किया है। समाजवादी पार्टी ने ऐसा बेहद सोच-समझकर किया है। लेकिन क्या सपा को ऐसा करने से 2027 में होने वाले उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में कोई फायदा होगा? इस पर बात करने से पहले अखिलेश यादव के ताजा बयानों के बारे में बात करते हैं।

पूर्व मुख्यमंत्री और सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने पिछले रविवार को पुलिस पोस्टिंग के आंकड़े साझा किए और दावा किया कि राज्य सरकार ठाकुरों के पक्ष में है। बताना होगा कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी इसी जाति समूह से आते हैं। अखिलेश यादव ने दावा किया कि आगरा कमिश्नरेट के अंतर्गत 48 स्टेशन हाउस ऑफिसर (SHO) और स्टेशन ऑफिसर (SO) में से PDA समुदाय के सिर्फ 15 लोग हैं जबकि बाकी “सिंह भाई लोग (ठाकुर)” हैं?

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अखिलेश ने अपने गृह जिले मैनपुरी के भी आंकड़ों को सामने रखा और दावा किया कि 15 में से 10 एसएचओ/एसओ ठाकुर थे। इसके बाद उन्होंने महोबा और प्रयागराज के आंकड़ों का भी हवाला दिया और कहा कि पुलिस पोस्टिंग में PDA समुदाय की हिस्सेदारी केवल 25% थी जबकि राज्य में उनकी आबादी 90% है।

जवाब देने आगे आए यूपी के डीजीपी

अखिलेश यादव के इन बयानों पर जब चर्चा शुरू हुई तो उत्तर प्रदेश के डीजीपी प्रशांत कुमार ने इस पर तीखी प्रतिक्रिया दी और इन दावों को खारिज कर दिया। लेकिन अखिलेश ने भी इस पर पलटवार किया और कहा कि डीजीपी को कम बोलना चाहिए और मुख्यमंत्री को इस पर ध्यान देना चाहिए।

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अखिलेश के हमलों का जवाब देने के लिए उत्तर प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष चौधरी भूपेंद्र सिंह भी सामने आए और उन्होंने दावों को खारिज किया। यूपी बीजेपी प्रमुख ने कहा, “आगरा कमिश्नरेट के तहत तैनात पुलिस अधिकारियों में ओबीसी और अनुसूचित जाति (एससी) समुदाय के सदस्य क्रमशः 39% और 18% हैं जबकि मैनपुरी में यह संख्या 31% और 19% है।”

उत्तर प्रदेश में ठाकुर समुदाय की आबादी करीब 7% है और ब्राह्मण समुदाय की आबादी 10% के करीब। इन दोनों समुदायों को उत्तर प्रदेश में बीजेपी का करीबी माना जाता है। यह भी माना जाता है कि बीजेपी को पिछले दो विधानसभा चुनाव में मिली जीत में इन समुदायों का समर्थन हासिल हुआ।

अब बात करते हैं कि अखिलेश यादव और सपा ब्राह्मणों का मामला क्यों उठा रहे हैं।

अखिलेश ने बीते कुछ वक्त में हरीश मिश्रा नाम के शख्स का मामला उठाया है। हरीश मिश्रा कुछ महीने पहले सपा में आए थे और उन पर करणी सेना के सदस्यों ने हमला किया था। अखिलेश यादव मिश्रा का समर्थन करते रहे हैं।

बीते रविवार को ही अखिलेश यादव ने गोरखपुर में स्वर्गीय हरिशंकर तिवारी के घर पर ईडी की छापेमारी को लेकर सवाल किया। हरिशंकर तिवारी पूर्वांचल के बाहुबली नेता थे। हरिशंकर तिवारी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के गोरखनाथ मठ के बीच टकराव भी चलता था। इस महीने की शुरुआत में ईडी ने हरिशंकर तिवारी के बेटे और सपा के राष्ट्रीय सचिव विनय शंकर तिवारी को 754 करोड़ रुपए के बैंक फ्रॉड मामले में गिरफ्तार किया था।

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इसी तरह सपा ने 2018 में लखनऊ में दो पुलिसकर्मियों द्वारा एप्पल के कर्मचारी विवेक तिवारी की हत्या और गैंगस्टर विकास दुबे की पुलिस एनकाउंटर में हुई मौत का भी संदर्भ दिया है। इसके साथ ही बस्ती में एक “उपाध्याय जी” को मारे जाने की बात को भी उठाया है। ये सभी ब्राह्मण समुदाय से हैं।

सपा का कहना है कि राज्य की योगी आदित्यनाथ सरकार “ब्राह्मण विरोधी” है। पुलिस पोस्टिंग का मुद्दा उठाकर भी सपा बताना चाहती है कि ब्राह्मण समुदाय के लोगों की उपेक्षा की जा रही है। हाल ही में पार्टी ने लखनऊ में एक विरोध प्रदर्शन किया जहां पर उसके कार्यकर्ताओं ने हाथों में “बाबा को हाता नहीं भाता” और “ब्राह्मणों पर उत्पीड़न बंद करो” लिखी हुई तख्तियां ली हुई थीं।

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संविधान निर्माता डॉ. भीमराव अंबेडकर। (Source-PTI)

‘ठाकुर बनाम ब्राह्मण’ की राजनीतिक लड़ाई

इससे सीधा संदेश मिलता है कि समाजवादी पार्टी राज्य में ‘ठाकुर बनाम ब्राह्मण’ की लड़ाई में से सियासी फायदा हासिल करना चाहती है। सपा ब्राह्मणों पर कथित अत्याचार का मुद्दा उठाकर ‘ठाकुर बनाम ब्राह्मण’ की राजनीतिक लड़ाई को भी फिर से जिंदा करने की कोशिश कर रही है।

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