लोकसभा चुनाव 2024 के नतीजे सामने आने के बाद से यह सवाल लगातार उठ रहा है कि क्या बीजेपी और आरएसएस में सबकुछ ठीक नहीं है? यह सवाल आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के कुछ बयानों और आरएसएस से जुड़ी पत्रिकाओं में छपी बातों से उठा। संघ प्रमुख मोहन भागवत ने गुरुवार को झारखंड के गुमला में जो कहा, उसे भी कई लोग प्रधानमंत्री से जोड़ कर देखने लगे। हालांकि, भागवत ने अपने किसी बयान में बीजेपी या मोदी का नाम नहीं लिया है।
ताजा बयान में भागवनत ने कहा कि आत्म-विकास के क्रम में एक मनुष्य ‘सुपरमैन’, फिर ‘देवता’ और ‘भगवान’ बनना चाहता है और ‘विश्वरूप’ की आकांक्षा कर सकता है, लेकिन यह निश्चित नहीं है कि आगे क्या होगा।
उन्होंने कहा, ” मानवीय गुणों को विकसित करने के बाद एक मनुष्य अलौकिक बनना चाहता है, ‘सुपरमैन’ बनना चाहता है, लेकिन वह वहां रुकता नहीं है। इसके बाद उसे लगता है कि देवता बनना चाहिए लेकिन देवता कहते है कि हमसे तो बड़ा भगवान है और फिर वह भगवान बनना चाहता है. भगवान कहता है कि वह तो विश्वरूप है तो वह मनुष्य विश्वरूप बनना चाहता है। वहां भी कुछ है क्या रुकने की जगह, ये कोई नहीं जानता है, लेकिन विकास का कोई अंत नहीं है।”
झारखंड में गैर सरकारी संगठन विकास भारती द्वारा आयोजित बैठक में मोहन भागवत ने कहा, “लोगों को कभी भी अपनी उपलब्धियों से संतुष्ट नहीं होना चाहिए और मानव जाति के कल्याण के लिए लगातार काम करना चाहिए क्योंकि विकास और मानव महत्वाकांक्षा की खोज का कोई अंत नहीं है।” आरएसएस प्रमुख ने सुझाव दिया कि व्यक्ति को मानवता की सेवा करने का प्रयास करना चाहिए।
उन्होंने कहा कि आंतरिक और बाहरी विकास का कोई अंत नहीं है और व्यक्ति को मानवता के लिए निरंतर काम करना चाहिए। भागवत ने आगे कहा, “एक कार्यकर्ता को कभी भी अपने काम से संतुष्ट नहीं होना चाहिए। काम जारी रहना चाहिए, पर्यावरण, शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्रों में लगातार काम करने का प्रयास करना चाहिए। इसका कोई अंत नहीं है और विभिन्न क्षेत्रों में निरंतर काम करना ही एकमात्र समाधान है। हमें इस दुनिया को सुंदर बनाने का प्रयास करना चाहिए जैसा कि भारत की प्रकृति है।”
भागवत के बयान पर कांग्रेस ने तुरंत निशाना साधा और जयराम रमेश ने इसे सीधे प्रधानमंत्री पर भागवत का निशाना बताया।
4 जून, 2024 को आम चुनाव के नतीजे सामने आने के कुछ ही दिन बाद राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ प्रमुख ने कहा था कि एक सच्चे ‘सेवक’ में अहंकार नहीं होता और वह ‘गरिमा’ बनाए रखते हुए लोगों की सेवा करता है। लोकसभा चुनावों का जिक्र करते हुए आरएसएस प्रमुख ने कहा था कि प्रचार के दौरान सदाचार बरकरार नहीं रखा गया।
तब भी भागवत का यह बयान काफी चर्चा में रहा था और कहा गया था कि आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से नरेंद्र मोदी या भाजपा पर निशाना साधा है।

‘चुनाव प्रचार में गरिमा का अभाव था’
भागवत ने कहा था, “हमारी परंपरा सहमति बनाने की है। इसलिए संसद में दो पक्ष हैं ताकि किसी भी मुद्दे के दोनों पक्षों पर विचार किया जा सके। लेकिन हमारी संस्कृति की गरिमा, हमारे मूल्यों को बनाए रखा जाना चाहिए था। चुनाव प्रचार में गरिमा का अभाव था। इसने माहौल को जहरीला बना दिया। तकनीक का इस्तेमाल झूठे प्रचार और झूठी कहानियां फैलाने के लिए किया गया। क्या यह हमारी संस्कृति है?”
भागवत ने कहा था, “चुनाव आम सहमति बनाने की एक प्रक्रिया है। यह सुनिश्चित करने के लिए एक प्रणाली मौजूद है कि किसी भी मुद्दे के दोनों पक्षों का प्रतिनिधित्व समान विचारधारा वाली संसद में हो। स्वाभाविक रूप से, ऐसी आम सहमति हासिल करना उन व्यक्तियों के बीच चुनौतीपूर्ण है जो तीव्र प्रतिस्पर्धा के माध्यम से वहां पहुंचे हैं इसलिए हम बहुमत पर भरोसा करते हैं। सारी प्रतियोगिता इसी उद्देश्य से है। हालांकि, यह एक प्रतियोगिता है, युद्ध नहीं।”

सच्चे सेवक में अहंकार नहीं होता- भागवत
नागपुर में डॉ. हेडगेवार स्मृति भवन परिसर में संगठन के ‘कार्यकर्ता विकास वर्ग-द्वितीया’ के समापन कार्यक्रम में आरएसएस कार्यकर्ताओं की एक सभा को संबोधित करते हुए भागवत ने कहा था, “एक सच्चा सेवक काम करते समय मर्यादा बनाए रखता है। जो मर्यादा बनाए रखता है वह अपना काम करता है , लेकिन अनासक्त रहता है। उसमें कोई अहंकार नहीं होता है कि मैंने ये किया। केवल ऐसे व्यक्ति को ही सेवक कहलाने का अधिकार है।”
मणिपुर पर भी किया था सरकार का घेराव
मणिपुर मुद्दे पर भी भागवत ने कहा था, “मणिपुर एक साल से शांति की राह देख रहा है। इस पर प्राथमिकता से चर्चा होनी चाहिए। पिछले 10 सालों से राज्य में शांति थी। ऐसा लगा था कि वहां बंदूक संस्कृति खत्म हो गई है, लेकिन राज्य में अचानक हिंसा बढ़ गई है। वहां अचानक जो तनाव बढ़ गया या फिर भड़का दिया गया, उसकी आग में वह अब भी जल रहा है। उस पर कौन ध्यान देगा? इसे प्राथमिकता देना और इस पर ध्यान देना कर्तव्य है।”
‘समाज ने अपना मत दे दिया, उसके अनुसार सब होगा’
मोदी सरकार के शपथ ग्रहण के एक दिन बाद मोहन भागवत ने कहा था, “अभी चुनाव संपन्न हुए, उसके परिणाम भी आए। सरकार भी बन गई, यह सब हो गया लेकिन उसकी चर्चा अभी तक चलती है। जो हुआ वह क्यों हुआ, कैसे हुआ, क्या हुआ। यह अपने देश तंत्र में प्रति पांच साल में होने वाली घटना है। समाज ने अपना मत दे दिया, उसके अनुसार सब होगा। क्यों, कैसे, इसमें हम लोग नहीं पड़ते। हम लोकमत परिष्कार का अपना कर्तव्य करते रहते हैं। हर चुनाव में करते हैं, इस बार भी किया है। बाकी क्या हुआ इस चर्चा में नहीं पड़ते।”

आरएसएस के कई नेता बीजेपी पर साध रहे निशाना
आरएसएस के कई नेता-कार्यकर्ता भी चुनाव परिणाम सामने आने के बाद से बीजेपी पर हमलावर हैं। हाल ही में संघ से जुड़े विचारक रतन शारदा ने कहा था कि आरएसएस के कैडर को अहमियत नहीं दी गई और इसे हल्के में लिया गया।
रतन शारदा ने NEWS9 Live को दिए गए एक इंटरव्यू में कहा था, “भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा का यह बयान कि बीजेपी अब आगे बढ़ चुकी है और अकेले चलने में सक्षम है, लोकसभा चुनाव के दौरान नहीं आना चाहिए था। कोई भी संगठन जो आरएसएस से प्रेरित हो, उसके पास अपना कैडर होता है लेकिन यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि कई बार आरएसएस के कैडर को बहुत हल्के में ले लिया जाता है।”
शारदा ने कहा था कि जब वह मध्य प्रदेश गए थे तो संघ से जुड़े एक व्यक्ति ने उनसे कहा कि उनकी बात नहीं सुनी जाती है। भाजपा अपनी पसंद के उम्मीदवारों को चुनाव मैदान में उतारती है क्योंकि बीजेपी को लगता है कि झक मार के जिता ही देंगे और आरएसएस इस तरह के बर्ताव को पसंद नहीं करता है।
आरएसएस की मैगजीन में भाजपा पर लेख
आरएसएस से संबंधित पत्रिका ऑर्गनाइजर के एक लेख में लोकसभा चुनाव परिणामों का दोष बीजेपी पर मढ़ते हुए कहा गया था, ”2024 के आम चुनावों के नतीजे अति आत्मविश्वास वाले बीजेपी कार्यकर्ताओं और कई नेताओं के लिए रियलिटी चेक के रूप में आए हैं। उन्हें इस बात का एहसास नहीं था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी का 400+ का नारा भाजपा के लिए एक लक्ष्य था और विपक्ष के लिए एक चुनौती थी। लक्ष्य मैदान पर कड़ी मेहनत से हासिल होते हैं, सोशल मीडिया पर पोस्टर और सेल्फी शेयर करने से नहीं। चूंकि, वे अपनी दुनिया में खुश थे, मोदी जी की आभा से झलकती चमक का आनंद ले रहे थे, वे ज़मीन पर आवाज़ें नहीं सुन रहे थे।”