30 जनवरी 1948 को महात्मा गांधी की हत्या के बाद राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। तत्कालीन सरसंघचालक माधवराव सदाशिवराव गोलवलकर (M.S. Golwalkar) को गिरफ्तार कर लिया गया। साथ ही सैकड़ों स्वयंसेवक भी गिरफ्तार कर लिए गए थे। फिर कई दौर की बातचीत हुई। आखिरकार करीब 17 महीने बाद 12 जुलाई 1949 को सरकार ने संघ से बैन हटा लिया।
बैन हटने से ठीक पहले आरएसएस ने अपने संविधान का मसौदा पेश किया। उस वक्त कहा गया कि सरदार पटेल ने संघ से बैन हटाने के लिए उसके संविधान में कुछ संशोधन की शर्तें रखी थीं। हालांकि गुरु गोलवलकर इस बात से सिरे से इनकार करते हैं। साथ ही यह भी कहते हैं संघ के पास 1949 के काफी पहले से ही अपना संविधान था, लेकिन उसका छपा हुआ प्रारूप नहीं था।
गोलवलकर के पत्रों, साक्षात्कारों और बातचीत के संकलन ‘श्री गुरुजी समग्र’ के नौवें खंड में संघ पर बैन और संविधान से जुड़ा ब्योरा दर्ज है। गुरु गोलवलकर कहते हैं कि भले ही आरएसएस ने 1949 में अपने संविधान का मसौदा पेश किया हो, लेकिन सच्चाई यह है कि संघ के संस्थापक डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार ने इससे करीब 15 साल पहले ही संविधान तैयार कर लिया था।
जब चोरी हो गया गोलवलकर का झोला
गुरु गोलवलकर कहते हैं कि डॉ. हेडगेवार ने 1933-34 के आसपास संघ के कार्यकर्ताओं की सहमति से एक संविधान तैयार किया था। संविधान न होना और छपा हुआ संविधान न होना, दोनों बातों में बहुत अंतर है। मैं उस संविधान की प्रति खुद अपने साथ रखना था। लेकिन एक बार प्रवास के दौरान मेरा सामान उस झोले सहित चोरी हो गया, जिसमें संविधान की प्रति थी। जब मैं वापस नागपुर पहुंचा तो मेरे पास पहनने के लिए एक धोती तक नहीं बची थी। मेरी सारी चीजें खो गई थीं। हां, संविधान की एक प्रतिलिपि नागपुर में थी।
किसने की चोरी?
तो क्या किसी ने जानबूझकर आपका सामान चोरी किया था या किसी पर शक है? इस सवाल पर गुरु गोलवलकर कहते हैं कि जिस संबंध में हम कुछ नहीं जानते, उसके बारे में क्या कह सकते हैं। मैंने कहा कि उसी संविधान (जो डॉ. हेडगेवार ने तैयार किया था) के आधार पर यह मसौदा (1949 का ड्राफ्ट) तैयार किया गया। कुछ मामूली सुधार के साथ उसे ही छाप दिया गया।
क्या सरकार की शर्त मानी थी?
एमएस गोलवलकर से जब पूछा गया कि क्या बैन हटाने से पहले सरकार ने कुछ परिवर्तन सुझाए थे और आपने स्वीकार किया? तो वह कहते हैं- नहीं। मैंने उन्हें कह दिया था कि मैं सहमत नहीं हूं। गोलवलकर कहते हैं कि उस वक्त तो हमारे संविधान का अंतिम स्वरूप सबके सामने विचार के लिए था ही। बस अंतिम रूप निर्धारित करना था और अपने कार्यकर्ताओं का पास पहुंचाना था, ताकि दिन प्रतिदिन के काम में उसे अमल में लाया जा सके।
गांधी हत्या में संघ की भूमिका पर
इसी बातचीत के क्रम में जब गोलवलकर से पूछा गया कि संघ से बैन हटने के बावजूद कुछ लोग बार-बार संघ पर गांधी हत्या का दोष लगाते हैं। तो उन्होंने कहा था कि यदि कोई झूठ बोलने का हठ ठान ले तो उसके लिए आखिर क्या किया जा सकता है?