Ritansh Azad
आज (6 दिसंबर, 2023) बाबा साहब आंबेडकर का परिनिर्वाण दिवस है। प्रधानमंत्री बनने से केवल कुछ दिन पहले आंबेडकर जयंती पर उत्तर प्रदेश में एक रैली को संबोधित करते हुए कहा था, “अगर बाबा साहब आंबेडकर न होते तो मेरे जैसा अति पिछड़े परिवार में पैदा हुआ व्यक्ति आज इस जगह पर खड़ा न होता। ये बाबा साहब आंबेडकर की कृपा है जो मैं आज आपके सामने खड़ा हूं।”
प्रधानमंत्री बनने के बाद भी नरेंद्र मोदी ने डॉ. आंबेडकर को अपना बताने का भरसक प्रयास किया है। पीएम बनने के कुछ माह बाद ही उन्होंने चैतन्य भूमि पर श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए डॉ. बाबासाहेब अंबेडकर स्मारक की आधारशिला रखी थी। साल 2017 में मोदी सरकार ने आंबेडकर के नाम पर भीम ऐप लॉन्च किया, उसी साल सरकार ने दिल्ली में आंबेडकर इंटरनेशनल सेंटर और 2018 में आंबेडकर नेशनल मेमोरियल का उदघाटन किया ।
आरएसएस भी काफी लंबे अरसे से समाज के दलित और वंचित वर्गों को अपना वोटर बनाने की मंशा से आंबेडकर को अपने हीरो की तरह पेश करती आई है। लेकिन सच तो ये है कि अंबेडकर को आरएसएस और बीजेपी की राजनीति से जोड़ना उनकी महान विरासत का मज़ाक उड़ाने के समान है। आंबेडकर द्वारा किए गए कामों और उसके द्वारा लिखी गई किताबों पर सिर्फ एक नज़र डालते से ये बिलकुल साफ हो जाता है कि आंबेडकर आरएसएस की विचारधारा के कट्टर
विरोधी थे।
डॉ. आंबेडकर ने हिंदू राज को बताया था आपदा
जहां एक ओर आरएसएस और उनकी विचारधारा से जुड़े संगठन भारत को हिन्दू राष्ट्र बनाने की बात करते हैं। वहीं बाबा साहब आंबेडकर 1940 में लिखी गई अपनी किताब “पाकिस्तान या भारत का विभाजन” (Pakistan or partition of india, Collected works , vol 8 पेज 358) में लिखते हैं, “यदि हिंदू राज एक हकीकत बन गया तो निस्संदेह यह इस देश के लिए सबसे बड़ी आपदा होगी। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि हिंदू क्या कहते हैं, हिन्दुत्व स्वतंत्रता, समानता और भाईचारे के लिए खतरा है। इस लिहाज से यह लोकतंत्र के विरुद्ध है। हिंदू राज को किसी भी कीमत पर रोका जाना चाहिए।”
आंबेडकर ने जलाई थी मनुस्मृति
आज आरएसएस/बीजेपी चाहे खुदको जितना भी दलित व पिछड़ा समर्थक दिखाने का प्रयास करें, उन्हें हमेशा से तथाकथित सवर्ण जातियों के संगठन के तौर पर जाना गया है। इसी बात को चिन्हित करते हुए पूर्व सांसद और वंचित बहुजन आघाडी के अध्यक्ष और बाबा साहब अंबेडकर के पोते प्रकाश अंबेडकर ने हाल ही में मुंबई में एक सभा में कहा, “आरएसएस/भाजपा भारतीय संविधान को बदलने पर आमादा हैं। उनका उद्देश्य भारतीय संविधान को मनुस्मृति से बदलना है।”
ये बात लगातार अंबेडकरवादी कहते रहे हैं। पाठकों को बता दें कि मनुस्मृति में दलितों, पिछड़ों और महिलाओं के लिए बेहद आपत्तिजनक नियम लिखे हुए हैं। जानकारों का कहना है कि ऐतिहासिक रूप से मनुस्मृति ने भारतीय समाज में जाति व्यवस्था को मज़बूत करने में अहम भूमिका निभाई थी। इसीलिए बाबा साहब अंबेडकर ने 25 दिसंबर, 1927 को महाड़ सत्याग्रह के दौरान हज़ारों लोगों के साथ मनुस्मृति को जलाया था। जिस मनुस्मृति और उसकी जातिवादी तथा महिला विरोधी विचारधारा का बाबा साहब जीवन भर विरोध करते रहे, उसे आरएसएस का समर्थन प्राप्त रहा है।
आरएसएस के मुखपत्र ऑर्गेनाइज़र ने 30 नवंबर, 1949 के अंक में संपादकीय में लिखा था, “भारत के इस नए संविधान की सबसे बुरी बात यह है कि इसमे भारतीय कुछ भी नहीं है… प्राचीन भारत के अद्भुत संवैधानिक विकास के बारे में इसमें कोई ज़िक्र ही नहीं है…आज तक मनुस्मृति मे दर्ज मनु के कानून दुनिया की प्रशंसा का कारण हैं और वे स्वयंस्फूर्त आज्ञाकारिता और अनुरूपता पैदा करते हैं… हमारे संवैधानिक विशेषज्ञों के लिए यह सब निरर्थक है।” यहां आरएसएस साफ तौर पर भारतीय संविधान के मुख्य निर्माता यानी अंबेडकर के विरोध में और मनुस्मृति के समर्थन में खड़ी दिख रही है।
संघ ने आंबेडकर के लाए हिंदू कोड बिल का किया था विरोध
आज़ाद भारत के पहले कानून मंत्री बाबा साहब अंबेडकर ने महिलाओं को बराबरी का अधिकार देने वाले हिन्दू कोड बिल को जब संसद में पेश किया, तो उनका भारी विरोध हुआ था। इसका विरोध करने में कांग्रेस का दक्षिणपंथी धड़ा, भारतीय जन संघ, अखिल भारतीय राम राज्य परिषद , हिन्दू महासभा और आरएसएस था। यह बिल महिलाओं को तलाक लेने, संपत्ति में हिस्सा पाने और अंतरजातीय विवाह जैसे आधिकार देता था। साथ ही हिन्दू पुरुषों को एक से ज़्यादा शादी करने से ये वंचित करता था।
इतिहासकार रामचन्द्र गुहा के मुताबिक “इस बिल के विपक्ष में सबसे आगे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ था। वर्ष में 1949 में आरएसएस ने दिल्ली में लगभग 79 सभाएं आयोजित की थी, जहां नेहरू और आंबेडकर के पुतले जलाए गए, और नए विधेयक की हिंदू संस्कृति और परंपरा पर हमले के रूप में निंदा की गई।”
आरएसएस ने अखिल भारतीय राम राज्य परिषद के नेता करपात्री महाराज के साथ मिलकर भी कई प्रदर्शन किये। इस विरोध के चलते कांग्रेस सरकार इस बिल से पीछे हट गई। आंबेडकर ने इस वजह से और कुछ अन्य मुद्दे पर नाराज़गी के कारण 1951 में कानून मंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया। बाद में ये बिल कांग्रेस सरकार द्वारा टुकड़ों में लाया गया। बता दें यही राम राज्य परिषद आगे चलकर भारतीय जन संघ का हिस्सा बनी जो आज की बीजेपी का पुराना रूप है।
हिंदू समाज का कोई अस्तित्व नहीं मानते थे आंबेडकर
जहां आज आरएसएस/बीजेपी हिन्दुत्व के नाम पर राजनीति करती है, वहीं अंबेडकर न सिर्फ हिन्दू वर्णव्यवस्था के खिलाफ थे बल्कि उन्होंने हिन्दू धर्म छोड़कर बौद्ध धर्म अपना लिया था। हिन्दू समाज के विषय पर उन्होंने 1936 में लिखे अपने बहुचर्चित भाषण “जाति का विनाश”, जिसे बाद में किताब के रूप में छापा गया में लिखा है “हिंदू समाज का असल में कोई अस्तित्व नहीं है। यह केवल जातियों का समूह है। प्रत्येक जाति अपने अस्तित्व के प्रति सचेत है। इसका(जाति का) अस्तित्व ही इसके अस्तित्व का सब कुछ और अंत है। जातियां कोई संघ भी नहीं बनातीं हैं। किसी जाति को यह अहसास नहीं होता कि वह अन्य जातियों से संबद्ध है। सिवाय तब जब हिंदू-मुस्लिम दंगा हो जाए। अन्य सभी अवसरों पर प्रत्येक जाति खुद को अन्य जातियों से अलग करने का प्रयास करती है।”
वे आगे लिखते हैं “किसी भी प्रकार की कोई हिंदू चेतना नहीं है। प्रत्येक हिंदू में जाति की चेतना मौजूद होती है।” उनका कहना था कि ये चेतना धार्मिक ग्रंथों ने पैदा की है जिस वजह से समाज में दलितों और महिलाओं की स्थिति दास के समान है। इसीलिए उन्होंने हिन्दू धर्म छोड़ने का निर्णय लिया। बाबा साहब आंबेडकर ने 14 अक्टूबर 1956 को नागपूर में अपने करीब 360,000 अनुयायियों के साथ बौद्ध धर्म स्वीकार कर लिया था। आज की राजनीति जो हर किसी को हिन्दू विरोधी साबित करने पर तुली हुई है क्या उसमें अंबेडकर पर ये आरोप लगाने का साहस है?
आंबेडकर के अर्थव्यवस्था संबंधी विचार
अंत में बात आंबेडकर साहब के अर्थव्यवस्था के संबंध में विचारों की। बाबा साहब अंबेडकर ने 1947 में लिखे States and Minorities नामक एक ज्ञापन लिखा था जो संविधान सभा को दिया गया था। इसमें उन्होंने भारत को एक समाजवादी राज्य बनाने की बात की है। वे लिखते हैं:
- 1. वे उद्योग जो प्रमुख उद्योग हैं या जिन्हें प्रमुख उद्योग घोषित किया जा सकता है, उनका अधिकार और संचालन राज्य के पास होगा।
- 2. वे उद्योग जो प्रमुख उद्योग नहीं हैं, लेकिन जो बुनियादी उद्योग हैं, उनका अधिकार भी राज्य के पास होगा और वे राज्य द्वारा या राज्य द्वारा स्थापित निगमों द्वारा चलाए जाएंगे।
- 3. बीमा पर राज्य का एकाधिकार होगा और राज्य प्रत्येक वयस्क नागरिक को विधानमंडल द्वारा निर्धारित उसके वेतन के अनुरूप जीवन बीमा पॉलिसी लेने के लिए बाध्य करेगा।
- 4. कृषि राज्य का उद्योग होगा।
- 5. राज्य ऐसे उद्योगों, बीमा और निजी व्यक्तियों द्वारा धारित कृषि भूमि में निर्वाह अधिकार प्राप्त करेगा, चाहे हम मालिक हों, किरायेदार हों या गिरवीदार हों और उन्हें भूमि में उनके अधिकार के मूल्य के बराबर डिबेंचर के रूप में मुआवजा देगा।
इसी बात को वो इस दस्तावेज़ में आगे समझाते हुए लिखते हैं, “भारत के तेज़ औद्योगीकरण के लिए राज्य में समाजवाद(state socialism ) की आवश्यक है। निजी कंपनियां ऐसा नहीं कर सकतीं और यदि उन्होंने ये किया तो यह आर्थिक असमानताओं को जन्म देगा जो पूंजीवाद ने यूरोप में पैदा की हैं और जो भारतीयों के लिए एक चेतावनी होनी चाहिए।”
वे अपने इसी दास्तावेज़ में समाजवाद को संविधानिक कानून द्वारा स्थापित करने की मांग तक करते हैं। अंबेडकर साहब जहां मुख्य कंपनियों और ज़मीनों के राष्ट्रीयकरण और समाजवाद की बात करते हैं वहीं आज की मोदी सरकार सभी सरकारी कंपनियों को पूंजीपतियों को बेचती दिख रही है! इसका नतीजा भी वही है जिसकी चेतावनी बाबा साहब दी थी, भयंकर आर्थिक असमानता। आज निजीकरण और पूंजीपतियों के पक्ष में बनाई जा रही नीतियों के कारण भारत के शीर्ष 1% लोगों के देश की 40.5% से अधिक संपत्ति है। यह डेटा ऑक्सफैम की 2021 की रिपोर्ट में मिलता है।
इन सभी बातों से ये साफ है कि आरएसएस/बीजेपी का अंबेडकर को अपना नायक बताना तथ्यों बिलकुल मेल नहीं खाता है। उनका ये दावा बिलकुल खोखला और फ़र्ज़ी है। आज के दौर में जब जातिवाद अपने चरम पर है, सांप्रदायिकता और पूंजीवाद का बोलबाला है, हमें बाबा साहब आंबेडकर के विचारों की सख्त ज़रूरत है। उनको पढ़ने और समझने से ही हम इस अंधेरे दौर में मुक्ति का रास्ता तलाश पाएंगे।