अयोध्या में राम मंदिर बनाने के लिए चलाए गए आंदोलन और बाबरी विध्वंस में महिलाओं की भूमिका पर बहुत कम चर्चा होती है। जबकि मंदिर आंदोलन में महिलाओं की भूमिका महत्वपूर्ण रही।

बाबरी मस्जिद गिराए जाने के तुरंत बाद केंद्र सरकार ने मामले की तहकीकात के लिए लिबरहान कमीशन का गठन किया था। इसका नेतृत्व हाई कोर्ट के रिटायर्ड जज जस्टिस लिबरहान कर रहे थे।

कमिशन ने 17 साल बाद अपनी रिपोर्ट सौंपी थी, जिसमें 68 लोगों को साम्प्रदायिक भावनाएं भड़काने का दोषी पाया गया था। इस लिस्ट में उमा भारती, साध्वी ऋतंभरा और विजयाराजे सिंधिया का भी नाम था।

हिंदुत्ववादी विजयाराजे सिंधिया

राम मंदिर आंदोलन में शामिल साध्वी ऋतंभरा और उमा भारती की तरह विजयाराजे सिंधिया भी एकल (सिंगल) औरत थीं। विधवा होने के बाद से वह भी ब्रह्मचर्य का पालन कर रही थीं। हालांकि राजे की पृष्ठभूमि ऋतंभरा और भारती से अलग थी।

जहां ऋतंभरा और भारती का ताल्लुक गरीब परिवार से था। वहां विजयाराजे ग्वालियर राजघराने की बहु थीं। वह अपने पति जीवाजीराव सिंधिया की वजह से राजनीति में आईं और कांग्रेस से चुनाव लड़ी। हालांकि वैचारिक तौर पर वह कभी भी कांग्रेस के करीब नहीं रहीं। उनका मन अधिक हिंदुत्व में रमा।  

पति की मौत के बाद विजयाराजे ने न सिर्फ कांग्रेस छोड़ दिया बल्कि उसके खिलाफ गोलबंदी भी की। बाद में वह जनसंघ में शामिल हो गईं। जब भाजपा का गठन हुआ था, राजे संस्थापक सदस्यों में से एक थीं। पार्टी के उपाध्यक्ष पद पर भी रहीं।

जिस ग्वालियर पर राजे का परिवार शासन करता था, वह बाद में हिंदू महासभा का गढ़ बना। राजे हिंदू महासभा की विचारधारा के बेहद करीब रहीं। विश्व हिंदू परिषद में तो वह अध्यक्ष भी रहीं।

बाबरी विध्वंस और मंदिर आंदोलन में राजे की भूमिका

विजयाराजे सिंधिया राम मंदिर आंदोलन की प्रमुख चेहरा थीं। उन्होंने भाजपा के राम मंदिर बनाने के प्रस्ताव का समर्थन किया था। रथ यात्रा को सपोर्ट किया था। बीबीसी की एक विशेष रिपोर्ट में ‘सिटिज़न्स ट्राइब्यूनल ऑन अयोध्या’ में प्रकाशित एक आर्टिकल के हवाले से विजयाराजे सिंधिया का बयान लिखा है। बताया गया है कि बाबरी गिराए जाने से एक माह पहले नवंबर 1992 में राजे ने पटना में कहा था, “बाबरी मस्जिद को तोड़ा जाना होगा”

6 दिसंबर 1992 की रोज, जब कारसेवकों ने बाबरी पर हमला किया, तो विजयाराजे मस्जिद से कुछ दूरी पर बने मंच पर अन्य नेताओं के साथ विराजमान थीं। ‘सिटिज़न्स ट्राइब्यूनल ऑन अयोध्या’ के मुताबिक ही राजे ने छह दिसंबर को कारसेवकों से ‘सर्वश्रेष्ठ बलिदान’ के लिए तैयार रहने को कहा था।

“Creating a Nationality: Ramjanmabhumi Movement and Fear of the Self” नामक किताब में बाबरी विध्वंस वाले दिन का पूरा विवरण है। इस किताब में लिखा है कि बाबरी विध्वंस के बाद राजे ने कहा था, “अब मैं बिना किसी अफसोस के प्राण त्याग सकती हूं क्योंकि मैंने अपना सपना पूरा होते देख लिया है।”

विजयाराजे सिंधिया बाबरी विध्वंस मामले में आरोपी रही थीं। हालांकि विध्वंस के कुछ साल बाद ही राजे स्वास्थ्य कारणों से राजनीति से दूर हो गई थीं। साल 2001 में उनका निधन हो गया।

राजे ने प्रधानमंत्री से किया था वादा

एनसीपी संस्थापक शरद पवार ने अपनी आत्मकथा ‘अपनी शर्तों पर’ में लिखा है विजयाराजे सिंधिया ने तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव से वादा किया था कि बाबरी को कोई नुकसान नहीं होगा। प्रधानमंत्री ने उनके वादों पर यकीन भी कर लिया था।

तब शरद पवार रक्षामंत्री थे। उन्होंने अपनी आत्मकथा में लिखा है, “नेशनल इंट्रीजेशन काउंसिल की बैठक में राजमाता विजयाराजे सिंधिया सहित भाजपा के वरिष्ठ नेताओं ने अभियान के दौरान कानून का उल्लंघन न करने का स्पष्ट आश्वासन दिया था और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ने लिखित रूप से आश्वासन दिया था कि विवादित स्थल पर किसी भी अवांछनीय घटना को सरकार रोकेगी।”

जब शरद पवार ने जोर देकर कहा कि इन नेताओं पर विश्वास करना खतरनाक है तो नरसिम्हा राव ने कहा, “मैं राजमाता के शब्दों पर पूर्ण विश्वास करता हूं। मैं जानता हूं, वह मुझे नीचा नहीं दिखाएंगी।”