2008 का मुंबई अटैक भला किसे नहीं याद होगा…तीन दिनों तक पूरा देश शॉक में था…अजमल कसाब इकलौता ऐसा आतंकी था, जिसे जिंदा पकड़ा गया और दुनिया के सामने पाकिस्तान की हरकत बेनकाब हुई। मगर कसाब की गिरफ्तारी के बाद उसे जिंदा अदालत में पेश करना कुछ कम चुनौती भरा काम नहीं था। हमले के वक्त मुंबई पुलिस के जेसीपी राकेश मारिया अपनी किताब ‘लेट मी से इट नॉव’ में लिखते हैं “क्राइम ब्रांच के जॉइंट कमिश्नर के तौर पर कसाब को जिंदा रखना मेरी सबसे बड़ी प्राथमिकता थी। लोगों और अफसरों का उसके प्रति बर्ताव देखते हुए मैंने उसके गार्ड्स खुद चुने थे।”
आईएसआई और लश्कर उसे किसी भी तरह खत्म करना चाहते थे ताकि हमले के इकलौते जिंदा सबूत को मिटाया जा सके। हमें भारत सरकार से खत मिला कि कसाब की सुरक्षा की पूरी जिम्मेदारी मुंबई पुलिस की क्राइम ब्रांच पर है। केंद्रीय जांच एजेंसियों से मिली जानकारी से पता चला कि पाकिस्तान ने कसाब को मारने का काम दाऊद इब्राहिम गैंग को दिया था। उसे कुछ हो जाता तो सिर्फ मेरी नौकरी ही नहीं, बल्कि मुंबई पुलिस की प्रतिष्ठा दांव पर थी।”
वरना कसाब होता हिंदू आंतकी: कसाब और उसके साथी फर्जी आईडेंटिटी कार्ड के साथ आए थे। ऐसे में उनके झूठ को उजागर करने के लिए कसाब का जिंदा रहना जरूरी था। राकेश ने अपनी किताब में लिखा है, “अगर कसाब उस फर्जी आईडी के साथ मर जाता तो अखबारों की हेडलाइंस चीख रही होतीं कि कैसे एक हिंदू आतंकवादी ने मुंबई पर हमला किया। टीवी पत्रकार बेंगलुरु में इकट्ठे होकर उसके परिवार और पड़ोसियों का इंटरव्यू ले रहे होते, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। पाकिस्तान के फरीदकोट का अजमल कसाब मेरे सामने बैठा था और मैं उससे पूछ रहा था, ‘की करन आया है? यानी क्या करने आया है, फिर धीरे-धीरे कसाब ने सारी परतें खोलीं।
क्या था ‘अल हुसैनी’: यूं तो 1993 के मुंबई सीरियल ब्लास्ट और 2008 के मुंबई टेरर अटैक के बीच 17 साल का अंतर था, मगर एक नाम ऐसा भी था जो इन दोनों आतंकी घटनाओं में सामने आया। वो नाम था अल हुसैनी। राकेश मारिया अपनी किताब में लिखते हैं “कसाब और उसके साथी ‘अल हुसैनी’ नाम की नाव से मुंबई में दाखिल हुए थे। यह नाम 1993 में मुंबई सीरियल ब्लास्ट्स केस में भी सुनने को मिला था। उस हमले के मुख्य आरोपी टाइगर मेमन के अपार्टमेंट ब्लॉक का नाम भी ‘अल हुसैनी’ था। पुलिस के मुताबिक, इसी इमारत में साजिश रची गई थी।’
पुलिस में गद्दार की तलाश: मुंबई हमले के बाद कसाब की दो तस्वीरें इंटरनेट पर खूब इस्तेमाल होती हैं। हाथ में AK-47 लिये कसाब की एक तस्वीर जो छत्रपति शिवाजी टर्मिनस की है और दूसरी फोटो मुंबई के एक पुलिस थाने की है। उस दूसरी तस्वीर के बारे में मारिया लिखते हैं, “हमने बहुत सावधानी बरती कि उसकी फोटो ना खींची जाए और कोई फोटो मीडिया के पास ना जाए। जब कुर्सी पर बैठे कसाब की फोटो मीडिया में चलने लगी, तो हमें झटका लगा।
मैंने सभी अफसरों को किनारे बुलाकर पूछा, ‘गद्दार कौन है?’ सबने इनकार किया…उनके चेहरे से पता चल रहा था कि वे सच बोल रहे हैं। फिर उन्होंने बताया कि केंद्रीय एजेंसियों ने कसाब से पूछताछ के लिए अपना एक अफसर मुंबई भेजा था।” दरअसल कसाब की फोटो जारी करके भारतीय एजेंसियां पाकिस्तान को ये संदेश दे रही थीं कि हमले में पाकिस्तानी हाथ होने का जिंदा सबूत कसाब भारत के पास है।