मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में एक मामले की सुनवाई के दौरान जज बेहद नाराज हो गए। नाराजगी का स्तर यह था कि अदालत को याचिकाकर्ता से कहना पड़ा कि आपको अदालत में इस तरह की याचिका लगाने से पहले 100 बार सोचना चाहिए। अदालत ने याचिकाकर्ता से यह भी कहा कि अगर अब आपने एक भी शब्द बोला तो हम आपको अवमानना नोटिस जारी कर देंगे।
क्या है पूरा मामला?
यहां बताना जरूरी होगा कि ‘मोदी चोर’ की टिप्पणी पर आपराधिक मानहानि के मामले में राहुल गांधी को दोषी ठहराया गया था और उनकी लोकसभा की सदस्यता निलंबित कर दी गई थी। लेकिन पिछले साल अगस्त में सुप्रीम कोर्ट ने इस पर रोक लगा दी थी और उनकी सदस्यता को बहाल कर दिया था।
लखनऊ के वकील और याचिकाकर्ता अशोक पांडे ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले को चुनौती दी थी और बीते साल सितंबर में शीर्ष अदालत में याचिका लगाई थी। इस साल जनवरी में शीर्ष अदालत ने इस याचिका को बेकार बताते हुए याचिकाकर्ता पर1 लाख रुपए का जुर्माना लगा दिया था। अदालत ने कहा था कि इस तरह की याचिकाएं केवल अदालत का समय खराब करती हैं।

मंगलवार को जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस केवी विश्वनाथन की बेंच इस मामले में सुनवाई कर रही थी।
मंगलवार को जब इस मामले में सुनवाई हुई तो अशोक पांडे ने अपना पक्ष अदालत के सामने रखा। इस पर अदालत ने कहा कि आज तक कितनी अदालतों ने आप पर जुर्माना लगाया है। यह कोई अकेली अदालत नहीं है जिसने आप पर जुर्माना लगाया है।
जुर्माना वापस लेने का अनुरोध
पांडे ने अदालत से अनुरोध किया कि अदालत ने उन पर जो जुर्माना लगाया है, उसे वापस ले लिया जाना चाहिए। इस पर बेंच की ओर से यह टिप्पणी आई कि अगर आप कोर्ट रूम से बाहर नहीं जाते हैं तो हम खुद पर शर्मिंदा होंगे। इसके बावजूद याचिकाकर्ता अशोक पांडे अदालत से बहस करते रहे और कहा कि वह जुर्माने की रकम नहीं दे सकते।
अदालत ने पांडे के जुर्माना हटाए जाने के अनुरोध को खारिज कर दिया।
बेंच पांडे के लगातार बहस करने की वजह से नाराज हो गई। बेंच ने कहा कि अगर अब आपने एक भी शब्द बोला तो हम आपको अवमानना नोटिस जारी कर देंगे। आपको अदालत में इस तरह की याचिका लगाने से पहले 100 बार सोचना चाहिए।
बहस के दौरान पांडे ने अदालत से कहा कि वह अब तक 200 जनहित याचिकाएं दायर कर चुके हैं। इस पर अदालत ने कहा कि अगर आप अगर आप इस तरह की 200 याचिकाएं दायर कर चुके हैं तो आपको इससे पहले कुछ तो सोचना चाहिए। लेकिन जब इसके बाद भी याचिकाकर्ता ने बहस जारी रखी तो जस्टिस गवई ने कहा कि आप अवमानना के नोटिस को स्वीकार कर रहे हैं या अदालत से बाहर जाएंगे। याचिकाकर्ता ने कहा कि वह बाहर जा रहे हैं।
निश्चित रूप से इस मामले में बेंच काफी नाराज हो गई थी और उसने याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया।

इससे पहले अक्टूबर 2023 में भी अशोक पांडे पर अदालत 1 लाख रुपए का जुर्माना लगा चुकी है। तब अशोक पांडे ने एनसीपी के नेता मोहम्मद फैजल की लोकसभा सदस्यता बहाल किए जाने के फैसले को चुनौती दी थी। सुप्रीम कोर्ट ने तब भी उनकी याचिका को रद्द कर दिया था।
कौन हैं जस्टिस बीआर गवई?
जस्टिस बीआर गवई ने 1987 से 1990 तक बंबई हाई कोर्ट में वकालत की। वह नागपुर नगर निगम, अमरावती नगर निगम और अमरावती विश्वविद्यालय के लिए स्थायी वकील थे। 14 नवंबर, 2003 को उन्हें हाई कोर्ट के एडिशनल जज के रूप में पदोन्नत किया गया। 12 नवंबर, 2005 को वह बॉम्बे हाई कोर्ट के जज बने। उन्होंने मुंबई में प्रिंसिपल सीट के साथ-साथ नागपुर, औरंगाबाद में सभी प्रकार की पीठों की अध्यक्षता की है। जस्टिस गवई को 24 मई, 2019 को सुप्रीम कोर्ट के जज के रूप में पदोन्नत किया गया।
कौन हैं जस्टिस विश्वनाथन?
जस्टिस विश्वनाथन ने अक्टूबर, 1988 में बार काउंसिल ऑफ तमिलनाडु में वकील के रूप में अपना करियर शुरू किया और बाद में वह दिल्ली आ गए। दिल्ली में पूर्व एडिशनल सॉलिसिटर जनरल सी.एस. वैद्यनाथन के साथ काम करते हुए उन्होंने सुप्रीम कोर्ट, दिल्ली हाई कोर्ट और विभिन्न कोर्ट में दायर अहम मामलों में उनकी सहायता की। उन्होंने 1990 से 1995 तक भारत के पूर्व अटॉर्नी जनरल के.के. वेणुगोपाल के साथ काम किया और सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के समक्ष अहम मामलों में पेश हुए।
अप्रैल 2009 में सुप्रीम कोर्ट के द्वारा उन्हें सीनियर एडवोकेट नामित किया गया। अगस्त, 2013 में उन्हें भारत के एडिशनल सॉलिसिटर जनरल नियुक्त किया गया और मई, 2014 तक वह इस पद पर रहे। जस्टिस विश्वनाथन राष्ट्रीय कानूनी सेवा प्राधिकरण (एनएएलएसए) के सदस्य रहे हैं। वह सुप्रीम कोर्ट की कानूनी सेवा समिति के सदस्य रहे हैं। मई, 2023 को बार से उन्हें सीधे सुप्रीम कोर्ट के जज के रूप में पदोन्नत किया गया।

दिसंबर, 2023 में थे 5 करोड़ से ज्यादा लंबित मामले
जनवरी, 2024 में सुप्रीम कोर्ट में 80,221 लंबित मामले थे। दिसंबर, 2023 में संसद में एक लिखित उत्तर में कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने कहा था कि 1 दिसंबर तक देश भर की अदालतों में 5,08,85,856 लंबित मामले थे इनमें से 61 लाख से अधिक मामले 25 हाई कोर्ट में थे।