विकास पाठक

8 फरवरी, 1855 को अवध फ्रंटियर पुलिस के मेजर जनरल जीबी आउट्रम ने अवध के नवाब वाजिद अली शाह को लिखा कि अयोध्या में हिंदू-मुस्लिम दंगे की पूरी संभावना है। उनका डर पांच महीने बाद सच साबित हुआ। 28 जुलाई को एक खूनी संघर्ष में मुस्लिम समुदाय के 75 लोग मारे गए।

पत्रकार से भाजपा नेता बने, पूर्व राज्यसभा सांसद बलबीर पुंज ने अपनी हालिया किताब ‘Tryst With Ayodhya’ में आउट्राम के पत्र का हवाला देते हुए कहा है, “ऐसा प्रतीत होता है कि शाह गुलाम हुसैन ने फैजाबाद के कोटुआहेन इलाके में मुसलमानों की एक बड़ी सेना इकट्ठा की थी। वह इलाके की शांति भंग करना चाहता था। खासकर हनुमान गढ़ी इलाके को बर्बाद करना चाहता था, जिसे हिंदुओं ने बसाया था। शाह गुलाम हुसैन के लेफ्टिनेंट को मौलवी साहब कहा जाता था। वह अधिक कट्टर और मार-काट के लिए तैयार रहने वाला व्यक्ति था। यही वजह थी कि हनुमान गढ़ी (मंदिर) में रहने वाले भिक्षुक और भक्त अपने जीवन की रक्षा के लिए हथियार रखने को मजबूर हुए।”

सुप्रीम कोर्ट के फैसले में भी हिंदू-मुस्लिम लड़ाई का जिक्र

नवंबर 2019 में हिंदू पक्ष को विवादित भूमि का मालिकाना हक देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने भी इन झड़पों का जिक्र किया था, “जन्मस्थान हनुमान गढ़ी से कुछ सौ कदम की दूरी पर है। 1855 में जब हिंदुओं और मुसलमानों के बीच एक बड़ा दंगा हुआ, तो हिंदुओं ने हनुमान गढ़ी पर कब्जा कर लिया। वहीं मुसलमानों ने जन्मस्थान पर कब्जा कर लिया। तब मुहम्मदियों ने हनुमानगढ़ी की सीढ़ियों पर भी कब्जा करने की कोशिश की थी लेकिन बल का प्रयोग कर उन्हें वापस खदेड़ दिया गया। फिर हिंदुओं ने इस तरीके को आगे भी अपनाया और तीसरे प्रयास में जन्मस्थान पर कब्ज़ा कर लिया। तब 75 मुसलमान मारे गए थे। उन्हें गंज-ए-शहीद (कब्रगाह) में दफनाया गया था। किंग्स रेजिमेंट के कई लोग हर समय निगरानी कर रहे थे, लेकिन उनके हस्तक्षेप करने का आदेश नहीं था।”

फैसले में लिखा गया है: “ऐसा कहा जाता है कि उस समय तक हिंदू और मुसलमान समान रूप से मस्जिद-मंदिर में पूजा करते थे। ब्रिटिश शासन में विवादों को रोकने के लिए एक रेलिंग लगाई गई है। इससे मस्जिद के भीतर मुसलमान नमाज पढ़ने लगे और रेलिंग के बाहर हिंदुओं ने एक मंच बनाया, जिस पर वे अपना प्रसाद चढ़ाते हैं।” हिंसा के संदर्भ में पुंज कहते हैं कि “नागा साधु और बैरागी वहां पर अन्य हिंदुओं के साथ एकत्र हुए थे और झड़प का हिस्सा थे।”

मराठों ने मदद के बदले अवध के नवाब से मांगी थी ‘राम जन्मभूमि’

पुंज ने अपनी पुस्तक में तर्क दिया है कि “1751 की शुरुआत में भी मराठा मजबूत थे। मराठों ने अवध के नवाब की दोआब क्षेत्र में पठान सेनाओं को हराने में मदद की थी और इसके बदले में नवाब से अपील की थी वे अयोध्या, काशी और मथुरा पर से कब्जा छोड़ दें।”

1756 में भी जब नवाब शुजा-उद-दौला ने अफगान आक्रमण के खिलाफ मराठों से मदद मांगी, तो मराठों ने अनुरोध किया कि उन्हें तीन स्थल हस्तांतरित कर दिए जाएं। हालांकि बाद में नवाब ने पाला बदल लिया और मराठा मांग अप्रासंगिक हो गई। इसके तुरंत बाद अहमद शाह अब्दाली से हुई पानीपत की तीसरी लड़ाई में हार के बाद मराठा साम्राज्य का पतन हो गया।

अयोध्या से जनसत्ता की ग्राउंड रिपोर्ट

जब निहंगों ने मस्जिद की दीवार पर लिख दिया ‘राम’

पुंज ने बाद में अमीर अली अमेठी द्वारा हनुमानगढ़ी पर कब्जा करने के एक और असफल प्रयास के बारे में लिखा, जिसे ब्रिटिश सैनिकों ने मार डाला था। पुंज कहते हैं इसकी शुरुआत 30 नवंबर, 1858 को मोहम्मद सलीम द्वारा कुछ निहंग सिखों के खिलाफ दर्ज की गई एफआईआर से हुई, जिन्होंने निशान साहिब स्थापित किया था और बाबरी मस्जिद के अंदर हवन किया था, साथ ही दीवारों पर ‘राम’ भी लिख दिया था।

यह सब 1857-58 की घटनाओं की पृष्ठभूमि में हुआ, जिसे सिपाही विद्रोह या भारत का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम कहा जाता है।

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