सियासत के मैदान में हर राज्य की अपनी कहानी है—कर्नाटक में कुर्सी की खींचतान, ओडिशा में उपचुनाव की चालें, बिहार में उम्मीदवारों पर खींचतान और गुजरात में सत्ता संतुलन का फेरबदल। इन सबके बीच भाजपा, कांग्रेस और क्षेत्रीय दलों की रणनीतियां नई दिशा में बढ़ रही हैं। सत्ता की इस बहुरंगी राजनीति में हर कदम गणित से जुड़ा है।

गले की फांस

कर्नाटक में कांग्रेस के दो बड़े नेताओं में शक्ति परीक्षण और गुटबाजी निरंतर जारी है। उपमुख्यमंत्री डीके शिवकुमार मुख्यमंत्री बनने को उतावले हैं, तो मुख्यमंत्री सिद्धरमैया कुर्सी छोड़ने को तैयार नहीं। पार्टी आलाकमान भी उन्हें छेड़ने से बचता है। अब तो उनकी भाषा भी बदल गई है। डंके की चोट पर कह रहे हैं कि पूरे पांच साल सरकार चलाएंगे, जबकि पहले कहा करते थे कि आलाकमान जब तक चाहेगा, तब तक वे पद पर रहेंगे। दरअसल सिद्धारमैया और शिवकुमार के बीच कुर्सी के लिए घमासान तो चुनाव नतीजों के समय ही खूब चला था। पर, शिवकुमार मात खा गए थे। उन्हें उपमुख्यमंत्री पद से ही संतोष करना पड़ा था। हां, उन्हें संतुष्ट रखने के लिए आलाकमान ने प्रदेश अध्यक्ष भी बनाए रखा। तब चर्चा चली थी कि आलाकमान ने दोनों के बीच ढाई-ढाई साल का समीकरण तय किया था। शिवकुमार समर्थक कुछ मंत्री और विधायक बीच-बीच में उसी समझौते को लागू किए जाने की चर्चा छेड़ देते हैं। ताजा चर्चा यह है कि सिद्धारमैया अब अपने मंत्रिमंडल में फेरबदल की फिराक में हैं। मकसद शिवकुमार समर्थक मंत्रियों की छुट्टी करना बताया जा रहा है। पर जानकार मानते हैं कि शिवकुमार उन्हें ऐसा करने नहीं देंगे। भले वे अपनी लड़ाई मुखरता से ना लड़ पाते हों, पर समर्थकों का नुकसान नहीं होने देंगें। वे अपना अगला कदम इसी समीकरण को ध्यान में रख कर उठाएंगे।

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चौकस भाजपा

ओड़ीशा में एक विधानसभा सीट का उपचुनाव है। नुआ पाड़ा की यह सीट बीजद (बीजू जनता दल) के विधायक राजेंद्र ढोलकिया के निधन से खाली हुई है। चर्चा थी कि नवीन पटनायक उपचुनाव में उनके बेटे जय ढोलकिया को उम्मीदवार बना सकते हैं, ताकि सहानुभूति वोट हासिल कर जीत पक्की हो जाए। सियासत में ऐसा होता भी है। लेकिन, विपक्ष की इस सीट पर भी निगाह लगाए बैठी भाजपा ने जय को पार्टी में शामिल कर लिया। उन्हीं को टिकट देने की चर्चा है। पिछले साल हुए चुनाव में जहां भाजपा ने बहुमत पाकर ओड़ीशा में अपनी सरकार बनाई थी, और बीजद को विधानसभा ही नहीं, लोकसभा चुनाव में भी तगड़ा झटका दिया था, वहीं नुआ पाड़ा में भाजपा तीसरे नंबर पर आई थी। यहां मुख्य जनाधार कांग्रेस और बीजद का ही है। भाजपा नवीन पटनायक को वापसी का कोई अवसर नहीं देना चाहती।

अभी तक ‘महाअसमंजस’

बिहार के चुनाव मैदान में उतरने से पहले ही महागठबंधन की सियासी पेच नए उम्मीदवारों को रात भर जगा रही है। गठबंधन के तहत लड़ने वाले सहयोगी दलों को चुपचाप पार्टी के निशान दिए जा रहे हैं। इस अंदरूनी घमासान का असर यह हुआ है कि महागठबंधन में कितनी सीट पर कौन मैदान में होगा, यह आखिर में ही तय हो पाएगा। महागठबंधन में एक-एक सीट के लिए खींचतान चल रही है। हालांकि तमाम अटकलों के बीच महागठबंधन इस बार के चुनाव में अपनी सरकार बनने का दावा कर रहा है। दूसरी ओर, महागठबंधन की इस रार का फायदा भाजपा व उसके सहयोगी दल उठाने में लग गए हैं। विपक्ष की कमजोर तैयारी को उल्लेखित कर ‘महाअसमंजस’ पर तंज कस रहे हैं।

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‘गौरव’ की बात

बोडोलैंड क्षेत्रीय परिषद के चुनाव में भाजपा और उसकी सहयोगी यूपीपीएल को हार का मुंह देखना पड़ा है। पार्टी के कद्दावर नेता, चार बार के सांसद और केंद्र की मोदी सरकार में मंत्री रहे राजन गोहेन ने पार्टी छोड़ दी है। उन्होंने आरोप लगाया है कि भाजपा सरकार में असम की अस्मिता का अपमान हो रहा है। असमिया संस्कृति को कमजोर किया जा रहा है। असम में भाषा और सांस्कृतिक पहचान को लेकर लोग बेहद संवेदनशील हैं। असम के कारण ही केंद्र सरकार ने नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) को अभी लागू नहीं किया है। माना जाता है कि सीएए से असम में बांग्ला भाषा और संस्कृति मजबूत होगी, और असमिया संस्कृति कमजोर। गोहेन ने असमिया संस्कृति के गौरव की बात उठाई है। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष गौरव गोगोई ने भी पिछले दिनों अहोम संस्कृति का मामला उठाया था। गोगोई भी अहोम वंश का प्रतिनिधित्व करते हैं। गोहेन ने अभी तक किसी दूसरी पार्टी में जाने की बात भले न की हो, पर उनके भाजपा छोड़ने से नुकसान तो होगा ही। यह नहीं भूलना चाहिए कि असम में अगले साल विधानसभा चुनाव हैं। असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्व सरमा ने अपनी उग्र हिंदुत्व की जो छवि बनाई है, उसकी काट में विपक्ष असमिया संस्कृति की बात कर रहा है। भाषा भी असम में एक मुद्दा है। अगले साल के चुनाव को लेकर गोगोई अपनी जमीन मजबूत करने में जुटे हैं, तो सत्ता पक्ष विपक्ष पर ज्यादा हमलावर हो रहा है।

फेरबदल का फलसफा

गुजरात मंत्रिमंडल में फेरबदल का भाजपा ने नया समीकरण अपनाया है। मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल ने गुरुवार को सभी मंत्रियों से त्यागपत्र लिए थे। हालांकि, इनमें से छह के इस्तीफे स्वीकार नहीं किए। फेरबदल की भूमिका तो पहले ही बन गई थी, पर किया गया शुक्रवार को। कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष रहे अर्जुन मोडवाडिया को भी मंत्री बनाया गया है। यह फेरबदल भाजपा की दूरदर्शी रणनीति का नतीजा है। सूबे में 2027 में विधानसभा चुनाव होंगे। गुजरात में भाजपा कोई जोखिम नहीं लेना चाहती। इसलिए बेहद चौकसी बरती है। फेरबदल में जातीय, सामाजिक, क्षेत्रीय सभी संतुलन बिठाने की कोशिश तो हुई ही है। युवा चेहरों को अहमियत दी गई है। हर्ष संघवी को राज्य मंत्री से सीधा उपमुख्यमंत्री बनाया जाना उनके कौशल को महत्त्व देना है। तीसरी बार के विधायक संघवी सूरत के हैं। उन्हें कार्यकुशल माना जाता है। महज 40 साल के हैं। उनकी छवि लोकप्रिय नेता की है। 2021 से मंत्री थे। सब कुछ अनुकूल रहा तो संघवी 2027 में भाजपा का मुख्यमंत्री पद का चेहरा भी हो सकते हैं।