पाकिस्तानी सेना के पसंदीदा उम्मीदवार और तीन बार के प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ़ की पार्टी पीएमएल-एन आम चुनाव में बहुमत का आंकड़ा नहीं छू पाए हैं। पीएमएल-एन के खिलाफ चुनाव लड़ी भुट्टो-जरदारी परिवार के नेतृत्व वाले पार्टी पीपीपी ने अच्छा प्रदर्शन नहीं किया है। दोनों दल संसदीय चुनाव परिणामों में इमरान खान की पीटीआई समर्थित उम्मीदवारों से पीछे रह गए हैं।
ऐसे में एक दूसरे के खिलाफ चुनाव लड़ी पीएमएल-एन और पीपीपी अब सरकार बनाने के लिए गठबंधन कर रही है। शुक्रवार (9 फरवरी) की रात शरीफ़ ने अपने समर्थकों से कहा, “मैं उन लोगों से लड़ना नहीं चाहता जो लड़ने के मूड में हैं… हमें सभी मामलों को सुलझाने के लिए एक साथ बैठना होगा। हमारे पास दूसरों के समर्थन के बिना सरकार बनाने के लिए पर्याप्त बहुमत नहीं है। हम सहयोगियों को गठबंधन में शामिल होने के लिए आमंत्रित करते हैं ताकि हम पाकिस्तान को उसकी समस्याओं से बाहर निकालने के लिए संयुक्त प्रयास कर सकें…।”
शरीफ़ ने कहा कि वह अपने भाई और पूर्व प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ को अन्य दलों के नेताओं से मिलने के लिए भेज रहे हैं, ताकि उन्हें गठबंधन में शामिल किया जा सके।
पीटीआई समर्थित उम्मीदवारों के शानदार प्रदर्शन का क्या है मतलब?
यह आउटरीच उस दिन हुई जब इमरान खान की पार्टी द्वारा समर्थित स्वतंत्र उम्मीदवार संसदीय चुनाव में सबसे बड़े गुट के रूप में उभरे। इसे सिर्फ जेल में बंद पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान की लोकप्रियता का संकेत नहीं माना जा रहा है, बल्कि पाकिस्तानी आवाम की ओर से वहां की सर्वशक्तिमान सेना को भी एक मजबूत संदेश माना जा रहा है।
पाकिस्तान चुनाव आयोग के नवीनतम आंकड़ों के अनुसार, 265 में से 226 निर्वाचन क्षेत्रों के परिणाम घोषित किए गए। पाकिस्तान की समाचार एजेंसियों के बताया है कि पीटीआई समर्थित स्वतंत्र उम्मीदवारों ने 92 सीटें हासिल की हैं, जबकि पीएमएल-एन को 64 और पीपीपी को 50 सीटें मिली हैं। वहीं छोटी पार्टियों ने करीब 20 सीटें हासिल की हैं।
और सीट जीत सकते थे पीटीआई उम्मीदवार, लेकिन…
सरकार बनाने के लिए किसी पार्टी को पाकिस्तान की संसद नेशनल असेंबली की 265 में से 133 सीटें जीतनी होंगी। पाकिस्तान में कुल 266 संसदीय सीटें हैं लेकिन एक उम्मीदवार की मृत्यु के बाद एक सीट पर चुनाव स्थगित कर दिया गया था। बता दें कि 266 के अलावा पाकिस्तान की 60 से सीटें महिलाओं और 10 से सीटें अल्पसंख्यकों के लिए आरक्षित है। यानी कुल 70 सीटे आरक्षित होती हैं। इस तरह कुल सीटें 336 हो गईं।
कुल 336 सीटों में से साधारण बहुमत हासिल करने के लिए 169 सीटों की आवश्यकता होती है, इसमें महिलाओं और अल्पसंख्यकों के लिए आरक्षित 70 सीटें भी शामिल होती हैं। लेकिन नियम के मुताबिक, आरक्षित 70 सीटों पर डायरेक्ट इलेक्शन नहीं होता। सीधा चुना 266 सीटों पर ही होता है। इसके बाद जो पार्टियां नेशनल असेंबली में जीतकार आती हैं, उन्हें उनकी क्षमता के हिसाब से उसी अनुपात आरक्षित सीटें अलॉट कर दी जाती हैं। इसका लाभ स्वतंत्र उम्मीदवारों को नहीं मिलता। यहीं पर पीटीआई पीछे रह जाती है। उसे ये 70 सीटें नहीं मिलेंगी क्योंकि पीटीआई पर पाबंदी है और उसके उम्मीदवारों ने निर्दलीय चुनाव लड़ा है। इस तरह शरीफ की पीएमएल-एन और भुट्टो-जरदारी की पीपीपी को आरक्षित सीटों का बड़ा हिस्सा मिलेगा।
हालांकि चुनावों में समान अवसर की कमी के बावजूद पीटीआई द्वारा समर्थित उम्मीदवारों ने शानदार प्रदर्शन किया है। उनके पास अपनी पार्टी का चुनाव चिन्ह ‘क्रिकेट का बल्ला’ नहीं। पीटीआई के कई बड़े नेता जेल में बंद हैं। कई के चुनाव लड़ने पर प्रतिबंध है। पीटीआई को पाकिस्तान के चुनाव आयोग द्वारा आवंटित प्रतीकों पर चुनाव लड़ने के लिए मजबूर किया गया था। उनके उम्मीदवारों को पीटीआई समर्थित स्वतंत्र उम्मीदवार कहा गया।
सेना नवाज-भुट्टो-जरदारी गठबंधन को दे रही है बढ़ावा
शुक्रवार (9 फरवरी) को मतों की गिनती चल रही थी, उस बीच इंटरनेट और मोबाइल सेवाएं बंद कर दिया गया, ऐसे में बड़े पैमाने पर धांधली के आरोप लगे। पीटीआई के कुछ निश्चित रूप से जीतने योग्य उम्मीदवार, जो 50,000 से अधिक वोटों से आगे चल रहे थे, उनकी हार हो गई। पाकिस्तान में टीवी बहसों में पैनलिस्टों ने कहा कि “वोट को इज्जत दो” का नारा टुकड़े-टुकड़े हो गया है।
नतीजे का मतलब है कि सेना नवाज-भुट्टो-जरदारी गठबंधन को बढ़ावा दे रही है, साथ ही पीटीआई से अलग हुए गुट के भगोड़ों की मदद ले रही है, जो इमरान खान की पार्टी को प्रधानमंत्री कार्यालय से दूर रखेगी।
पाकिस्तान के कई विश्लेषकों का विचार यह है कि शरीफ और भुट्टो-जरदारी को पर्याप्त संख्या न मिलना वास्तव में पाकिस्तानी सेना के लिए अच्छा है क्योंकि उनमें से कोई भी कमांडिंग स्थिति में नहीं होगा और सेना के अधीन होगा। इसके अलावा, पीटीआई समर्थित उम्मीदवारों के मजबूत प्रदर्शन को पाकिस्तानी प्रतिष्ठान इस तथ्य के सबूत के रूप में पेश कर सकती है कि यह कोई दिखावटी चुनाव नहीं था।
पाकिस्तान को चलाने में सेना की एक बड़ी भूमिका रही है। अतीत में सैन्य शासन का एक उतार-चढ़ाव वाला इतिहास रहा है। अयूब खान, याह्या खान, जिया-उल-हक और परवेज मुशर्रफ ने देश पर शासन किया और उनमें से कुछ ने निर्वाचित सरकारों को अपदस्थ करके सत्ता हासिल कर ली थी। इस दौरान एक पूर्व प्रधानमंत्री को भी फांसी दी गई।
पाकिस्तानी एस्टेब्लिशमेंट को मिली चुनौती
पाकिस्तान का यह चुनाव मोबाइल फोन और सोशल मीडिया के युग में हुआ है। पाक में युवा मतदाताओं की संख्या 46 प्रतिशत है। महिला मतदाताओं की संख्या 47 प्रतिशत है। 30% मुद्रास्फीति से जूझ रही जनता, आर्थिक गड़बड़ी से तंग आ चुकी है। ऐसे में इस चुनाव को संभालना पाकिस्तानी एस्टेब्लिशमेंट के लिए मुश्किल हो गया।
परिणाम भले ही शरीफ और भुट्टो-जरदारी की झुकता नजर आ रहा है। दोनों ही महत्वाकांक्षी राजवंश-परिवारों से ताल्लुक रखते हैं। लेकिन एक तथ्य यह है कि लोग बड़ी संख्या में मतदान करने के लिए निकले। लोगों ने इमरान खान के आह्वान को स्वीकार किया।
कभी सेना ने ही खान को चुना था
खान कभी खुद सेना द्वारा चुने गए उम्मीदवार थे। उन्हें नवाज शरीफ को सत्ता से बाहर करने के लिए 2013 से तैयार किया जा रहा था। वह पिछले चुनाव (2018) में भारी जनसमर्थन से “चयनित” हुए। विडंबना यह है कि वह कुछ साल बाद ही पाकिस्तान के जनरलों के चहेते नहीं रहे क्योंकि वह उन्हें चुनौती देने लगे थे।
खान की गिरफ्तारी के बाद पिछले साल 9 मई को यादगार विरोध प्रदर्शन हुआ था। उस विरोध प्रदर्शन के दौरान पीटीआई कार्यकर्ता और समर्थक पाकिस्तानी सेना के जनरल के आवास सहित सैन्य प्रतिष्ठानों में घुस गए थे। कई अन्य ‘प्रतिष्ठित’ संस्थानों को भी निशाना बनाया गया था।
इससे पाकिस्तानी सेना क्रोधित हो गई – लेकिन ऐसी चर्चा थी कि सेना स्वयं विभाजित थी, क्योंकि खान कल तक उन्हीं में से एक थे। हालांकि, सेना ने खान और उनकी पार्टी पर कड़ी कार्रवाई की।
तब से, उनकी पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार किया गया, परेशान किया गया और डराया गया। इतना कि खान के करीबी सहयोगी जहांगीर तरीन के नेतृत्व में पीटीआई नेताओं के एक समूह ने पार्टी छोड़ दी और एक नया राजनीतिक संगठन, इश्तेक़ाम-ए-पाकिस्तान पार्टी का गठन किया। इस नई पार्टी को पाकिस्तानी सेना का आशीर्वाद प्राप्त है और उसे इस चुनाव में मुट्ठी भर सीटें भी मिलीं हैं। उम्मीद है कि यह पार्टी नवाज-भुट्टो-जरदारी के साथ सत्तारूढ़ गठबंधन का हिस्सा होगी।