पिछले पांच वर्षों में 13,626 दलित (SC), आदिवासी (ST) और पिछड़ा समुदाय (OBC) के छात्रों ने केंद्रीय विश्वविद्यालयों, IIT और IIM से पढ़ाई छोड़ दी है। सोमवार (4 दिसंबर, 2023) को यह जानकारी शिक्षा राज्य मंत्री सुभाष सरकार ने लोकसभा में एक लिखित जवाब में दिया।
लोकसभा में यह सवाल पूछा गया था कि क्या सरकार ने इन उच्च शिक्षा संस्थानों में एससी, एसटी और ओबीसी के छात्रों के बीच हाई ड्रॉपआउट रेट के कारणों को समझने के लिए कोई अध्ययन किया है? सरकार ने जवाब दिया कि “उच्च शिक्षा में छात्रों को कई विकल्प होते हैं। वे अक्सर अलग-अलग संस्थानों के बीच, या एक ही संस्थान के अलग-अलग कोर्स के बीच ट्रांसफर होते रहते हैं।”
किस समुदाय के छात्रों का कितना ड्रॉप आउट रेट?
सरकार द्वारा पेश किए डेटा से पता चलता है कि पिछले पांच वर्षों में 4,596 ओबीसी, 2,424 एससी और 2,622 एसटी छात्र केंद्रीय विश्वविद्यालयों से बाहर हो गए हैं। इसी अवधि में 2,066 ओबीसी, 1,068 एससी और 408 एसटी छात्र IIT से बाहर हो गए। 163 ओबीसी, 188 एससी और 91 एसटी छात्र IIM से बाहर हो गए।
सरकार ड्रॉपआउट रेट कम करने के लिए क्या कर रही है?
जवाब में बताया गया है कि ड्रॉपआउट रेट कम करने के लिए सरकार द्वारा आर्थिक रूप से कमजोर छात्रों को पढ़ाई के लिए कई तरह से मदद पहुंचाई जा रही है। इन प्रयासों में फीस को कम करना, अधिक संस्थानों की स्थापना करना, छात्रवृत्ति, आदि शामिल हैं।
सरकार भी यह भी कहना है कि एससी/एसटी छात्रों के कल्याण के लिए ‘आईआईटी में ट्यूशन फीस की छूट’, सेंट्रल सेक्टर स्कीम के तहत राष्ट्रीय छात्रवृत्ति का अनुदान, संस्थानों में छात्रवृत्ति आदि जैसी योजनाएं भी हैं।
मंत्री ने कहा, “एससी/एसटी छात्रों के किसी भी समस्या का तुरंत सुनवाई के लिए, संस्थानों ने एससी/एसटी छात्र सेल, इक्वल अपॉर्चुनिटी सेल, छात्र शिकायत सेल, छात्र शिकायत समिति, स्टूडेंट सोशल क्लब, संपर्क अधिकारी, संपर्क समिति आदि जैसे तंत्र स्थापित किए हैं। इसके अलावा UGC ने छात्रों के बीच समानता और भाईचारे को बढ़ावा देने के लिए समय-समय पर निर्देश जारी किए हैं।”
विशेषज्ञ क्या कहते हैं?
हायर एजुकेशन में छात्रों के ड्रॉपआउट रेट को लेकर ऑल इंडिया काउंसिल फॉर टेक्निकल एजुकेशन के पूर्व चेयरमैन एसएस मंथा और भारत सरकार के पूर्व शिक्षा सचिव अशोक ठाकुर ने अप्रैल 2023 में इंडियन एक्सप्रेस के लिए एक लेख लिखा था।
मंथा और ठाकुर ने लिखा है ने वर्तमान शिक्षा प्रणाली को तनाव देने वाला बताते हुए लिखा है, “हमारे कॉलेजों और विश्वविद्यालयों पर शिक्षा और प्लेसमेंट का दबाव है। छात्रों पर सफल होने का दबाव है। इसके साथ कई अन्य कारक भी जोड़ें जो अंततः छात्रों को पढ़ाई छोड़ने के लिए मजबूर करते हैं। पढ़ाई छोड़ना एक व्यक्तिगत मुद्दा हो सकता है। लेकिन अगर इतनी बड़ी संख्या में छात्र पढ़ाई छोड़ रहे हैं, उसके कारणों की समीक्षा होनी चाहिए। हमें यह सोचना चाहिए किन बदलावों की जरूरत है, जिससे स्टूडेंट्स अपना कोर्स बीच में न छोड़ें?”
दोनों आगे लिखते हैं, “ऐसा होने के लिए, हमारे विश्वविद्यालयों और कॉलेजों को आत्मनिरीक्षण करना होगा। उच्च शिक्षण संस्थान में एक छात्र का सफर आसान नहीं होता है। एक छात्र को जोड़े रखने के लिए हमारे मैनेजमेंट, फैकल्टी और कर्मचारियों को क्या करना चाहिए, इस पर गंभीरता से चर्चा होनी चाहिए? छात्रों को विशेषकर प्रथम वर्ष में कॉलेज लाइफ के अनुरूप ढलने के लिए समय की आवश्यकता होती है। लेकिन इससे पहले कि वे अपनी नई मिली आज़ादी के मूल्य को समझें और कैंपस जीवन की कई संभावनाओं को समझें, कई लोग पढ़ाई छोड़ देते हैं। उच्च शिक्षा पर शोध इस बात की पुष्टि करता है कि केवल 50 प्रतिशत छात्र पिछले वर्षों के भारी बैकलॉग के बिना ग्रेजुएशन तक पहुंच पाते हैं।”
क्या करने की जरूरत?
मंथा और ठाकुर लिखते हैं “शोध से पता चलता है कि अधिकतर ड्रॉपआउट उन परिवारों में होते हैं जो आर्थिक रूप से कमजोर होते हैं। ऐसे हालात में छात्रों को घर, नौकरी और पढ़ाई में संतुलन बनाने में कठिनाई होती है, जो आसानी से शिक्षा में बाधा का कारण बन सकता है। परिवार को सपोर्ट करने की जरूरत उन्हें किसी भी नौकरी करने को मजबूर करती है, जिससे अंततः पढ़ाई में रुचि की कमी हो जाती है। शोध बताते हैं कि पढ़ाई छोड़ने वाले तीन में से एक छात्र को या तो अपना या अपने परिवार का भरण-पोषण करना पड़ता है।”
वे आगे कहते हैं, “रातोरात कुछ भी हासिल नहीं किया जा सकता। हालांकि इसे ठीक किया जा सकता है यदि हम केवल छात्रों की निराशा को समझें और उचित सहायता प्रदान करें, और छात्रों को कठिन समय से निपटने में मदद करने के तरीके खोजें।”