इंदिरा गांधी की नेतृत्व वाली भारत सरकार ने साल 1984 में ‘ऑपरेशन ब्लू स्टार’ चलाकर सिख उग्रवादी और खालिस्तानी विचारक भिंडरांवाले को मार गिराया था। ‘ऑपरेशन ब्लू स्टार’ एक सैन्य अभियान था, जो 1 जून, 1984 से 10 जून 1984 के बीच चला था। हालांकि सेना से भिड़ने की तैयारी सिख उग्रवादी बहुत पहले से कर रहे थे।

पूर्व रॉ ऑफिसर जी.बी. एस. सिद्धू ने अपनी किताब खालिस्तान षड्यंत्र की इनसाइड स्टोरी (प्रभात प्रकाशन) में बताया है कि खालिस्तानी लड़ाके कई महीनों से तैयारी में जुटे थे। ऑपरेशन ब्लू स्टार के कई महीनों से स्वर्ण मंदिर में लंगर की सामग्री लादकर लेने वाले ट्रकों में छिपाकर हथियार और गोला-बारूद मंदिर परिसर के अंदर पहुंचाए जा रहे थे।

संबंधित अधिकारियों से मिले निर्देश के चलते पुलिस उन ट्रकों की जांच नहीं करती थी। एक ट्रक को स्टेनगन और बारूद लादकर ले जाते हुए रोका भी गया, लेकिन कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई। शाहबेग सिंह की देखरेख में मंदिर परिसर में ही युवा सिख उग्रवादियों को सेना के पूर्व सैनिकों द्वारा हथियारों का प्रशिक्षण दिया जा रहा था।

पूर्व भारतीय सैनिक शाहबेग सिंह ने पाकिस्तान और चीन के खिलाफ युद्ध लड़ा था। देश को धर्म से आगे रखकर अपने केस कटा दिए थे। लेकिन बाद में कुछ ऐसा हुआ कि वह भिंडरांवाले के खास बन गए और ऑपरेशन ब्लू स्टार में अपनी ही सेना पर गोली बरसाई। शाहबेग सिंह ने ही भिंडरांवाले के लड़ाकों को प्रशिक्षण दिया था। (शाहबेग सिंह के बारे में विस्तार से पढ़ने के लिए लिंक पर क्लिक करें)

इधर सरकार भी थी तैयार

वर्ष 1984 तक ‘अंतिम समाधान’ को अंजाम देने का समय आ गया था। इंदिरा गांधी की सरकार यह साबित करने में सफल हो चुकी थी कि उसने अपनी तरफ से बातचीत कर समाधान निकलने की पूरी कोशिश की। जी.बी. एस. सिद्धू लिखते हैं कि अगर पंजाब में व्याप्त उपद्रव और ज्यादा समय तक चलता तो प्रधानमंत्री देश के बहुसंख्यक समुदाय का वोट और विश्वास खो देतीं।

सरकारी आंकड़ों के अनुसार, अगस्त 2022 में धर्म युद्ध मोर्चा शुरू होने के बाद 22 महीने के अंदर ही भिंडरांवाले द्वारा प्रेरित उग्रवादी गतिविधियों में 165 हिंदू और निरंकारी मारे गए। भिंडरांवाले का विरोध करने पर 39 सिख और मारे गए।

25 मई, 1984 को प्रधानमंत्री ने स्थिति पर चर्चा करने के लिए सेना प्रमुख जनरल ए.एस. वैद्य से मुलाकात की और कहा कि आवश्यकता पड़ने पर पंजाब में सिविल अधिकारियों की मदद के लिए वह सेना तैयार रखें। 29 मई को प्रधानमंत्री ने एक और बैठक की। इसके बाद तय हो गया कि ऑपरेशन ब्लू स्टार चलाया जाएगा, जिसका मुख्य निशाना अकाल तख्त का क्षेत्र होगा जहां हथियारों से पूरी तरह लैस लगभग 100 उग्रवादी छिपे बैठे थे। सरकार ने इस अभियान में टैंक का भी इस्तेमाल किया था।

लेकिन दिलचस्प यह है कि ऑपरेशन शुरू होने से कुछ घंटे पहले तक तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने सरदार स्वर्ण सिंह को आश्वासन दिया था कि वह ऐसा (सैन्य अभियान) करने के बारे में सोच भी नहीं सकतीं।

इंदिरा गांधी ने क्या कहा था

सिद्धू ने अपनी किताब में बताया है कि कैस इंदिरा गांधी ने ऑपरेशन को मंजूरी देने के बावजूद सरदार स्वर्ण सिंह झूठा दिलासा दिया था। ‘ऑपरेशन ब्लू स्टार’ शुरू करने से कुछ दिन पहले की बात है। सरदार स्वर्ण सिंह अपनी निजी कार में जालंधर से दिल्ली जा रहे थे। ग्रांड ट्रंक रोड पर उन्होंने सेना की बड़ी-बड़ी टुकड़ियों को उत्तर की ओर बढ़ते देखा। यह मेरठ की 9वीं डिवीजन की सैन्य टुकड़ी थी, जो 30 मई तक अमृतसर पहुंचने वाली थी।

अगले दिन दिल्ली पहुंचकर सरदार स्वर्ण सिंह ने इंदिरा गांधी के विशेष सहायक आर.के. धवन से बात की और उसी दिन दोपहर इंदिरा गांधी के साथ आपात बैठक के लिए अनुरोध किया। इंदिरा गांधी से मिलकर सिंह ने उन्हें सेना की गतिविधि के बारे में बताया। उन्होंने कहा कि उन्हें लग रहा है कि शायद स्वर्ण मंदिर को भिंडरावाले एवं अन्य उग्रवादियों से खाली कराने के लिए सेना तैनात की जा रही है। इंदिरा गांधी को उन्होंने सलाह दी कि किसी भी स्थिति में सेना को स्वर्ण मंदिर परिसर के अंदर नहीं जाने देना चाहिए, नहीं तो पंजाब के साथ-साथ पूरे देश के लिए इसके गंभीर परिणाम होंगे।

सरदार स्वर्ण सिंह की बात पर आश्चर्य प्रकट करते हुए इंदिरा गांधी ने कहा, “सरदार साहिब, आप यह कैसे सोच सकते हैं कि मैं इतनी बड़ी गलती करूंगी?” स्वर्ण सिंह ने इंदिरा गांधी से 29 मई या उसके बाद मुलाकात की थी। तब तक वह ऑपरेशन ब्लू स्टार को मंजूरी दे चुकी थीं। स्वर्ण सिंह दिल्ली से तो बहुत आश्वस्त होकर लौटे थे, लेकिन जल्द ही ‘ऑपरेशन ब्लू स्टार’ की भयावहता को देखकर दंग रह गए।