भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (Congress) के पूर्व विधायक अनुग्रह नारायण सिंह (Anugrah Narayan Singh) का आरोप है कि भाजपा (BJP) नेता और विधायक हर्षवर्धन वाजपेयी (Harsh Vardhan Bajpayee) ने चुनावी हलफनामे अपनी शैक्षणिक योग्यता की गलत जानकारी दी है।

कांग्रेस नेता का दावा है कि वाजपेयी ने 2007, 2012 और 2017 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों के लिए दाखिल हलफनामे में अपनी शैक्षिक योग्यता की सही जानकारी ना देकर, भ्रष्टा आचरण किया है।

कांग्रेस नेता इस मामले को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट गए थे। लेकिन सितंबर 2022 में उच्च न्यायालय ने अनुग्रह नारायण सिंह की याचिका को इस आधार पर खारिज कर दी कि जिस कार्यकाल के लिए वाजपेयी चुने गए थे वह पहले ही 2022 में समाप्त हो गया है।

सुप्रीम कोर्ट में मामला

इलाहाबाद हाईकोर्ट से याचिका खारिज होने के बाद अनुग्रह नारायण सिंह सुप्रीम कोर्ट पहुंचे हैं। मामले की सुनवाई जस्टिस केएम जोसेफ और बीवी नागरत्ना की बेंच कर रही है।

याचिकाकर्ता ने कोर्ट को बताया है वाजपेयी ने 2017 में इंग्लैंड में ‘सेफर्ड’ नामक एक ऐसे विश्वविद्यालय से बीटेक की डिग्री हासिल करने का दावा किया था, असल में नहीं है। वहीं 2007 और 2012 के विधानसभा चुनाव में उन्होंने अपने हलफनामे में दिखाया था कि उनके पास इंग्लैंड के शेफील्ड विश्वविद्यालय से बीटेक की डिग्री है।

याचिकाकर्ता ने कहा है कि वाजपेयी ने 2006 में दिल्ली विश्वविद्यालय से एमबीए की डिग्री हासिल करने का दावा किया था, संभव नहीं है क्योंकि उन्होंने कथित तौर पर उसी वर्ष बीटेक की परीक्षा पास की थी।

‘डिग्री देख कहां वोट देते हैं लोग’

कांग्रेस नेता की याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने कहा है कि भारत में कोई भी शैक्षिक योग्यता के आधार पर वोट नहीं देता है और इसलिए चुनाव उम्मीदवार की शैक्षिक योग्यता के बारे में गलत जानकारी देने को लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 123(4) और धारा 123 (2) के तहत ‘भ्रष्ट आचरण’ नहीं कहा जा सकता है।

जस्टिस जोसेफ ने कहा कि वैसे भी हमारे देश में शैक्षिक योग्यता के आधार पर कोई वोट नहीं देता है। इसपर जस्टिस बीवी नागरत्ना ने केरल को अपवाद बताते हुए कहा, ‘शायद केरल को छोड़कर’ यानी जस्टिस नागरत्ना का मानना है कि केरल के लोग मतदान के वक्त उम्मीदवारों की शैक्षणिक योग्यता का ध्यान रखते हैं।