प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा लगाए आपातकाल के दौरान बिहार की सारी जेलें पूरी तरह भरने लगी थीं। गिरफ्तार लोगों को पुलिस गाड़ियों में भर-भर कर लाती और जेलों में जगह नहीं होने के कारण कहीं दूर-दराज़ स्थान पर छोड़ देती थी। जेल बंद आन्दोलनकारियों में असंतोष बढ़ता जा रहा था। वहां से कभी भी विद्रोह की ज्वालामुखी फूट सकती थी।
आपातकाल के खिलाफ संपूर्ण क्रांति का आह्वान करने वाले जयप्रकाश नारायण खुद हज़ारीबाग़ जेल की चारदीवारी फांदकर पुलिस को अंगूठा दिखा चुके थे। छोटे-मोटे जेलों में ऐसी ही घटना की पुनरावृत्ति की आशंका हर रोज़ बढ़ती ही जा रही थी। इसलिए महत्त्वपूर्ण क़ैदियों को अपेक्षाकृत बड़े और अधिक सुरक्षित जेलों में स्थानांतरित किया जाने लगा।
बदला गया नीतीश कुमार का जेल
आपातकाल के दौरान नीतीश कुमार भी जेल गए थे। उन्हें बिहार के अलग-अलग जेलों में रखा गया था। अखबारों और पत्रिकाओं पर लगे प्रतिबंध के कारण जेल में बाहर चल रहे आंदोलन की खबरें नहीं पहुंच पाती थीं। बस इधर-उधर से छन-छन कर कुछ सूचनाएं आती थीं। रेडियो पर तो सरकार का पूरा नियंत्रण था ही। इसलिए मानसिक स्थिरता बनाए रखने के लिए नीतीश जेल में किताबें पढ़ा करते थे। लोगों का उत्साह बनाए रखने के लिए वह अक्सर बहस और चर्चा आयोजित करते थे। जमकर बौद्धिक वाद-विवाद होता था।
नीतीश ने पूरी जेल का अंदरूनी कलेवर ही बदल दिया था। राजकमल से प्रकाशित उदय कांत की किताब ‘नीतीश कुमार अंतरंग दोस्तों की नजर से’ में लिखा है कि नीतीश कुमार की लोकप्रियता से दक्षिणपंथी विचारधारा वाले राजनीतिक कैदियों की बौखलाहट बढ़ती ही जाती थी। इसी क्रम में नीतीश को पुलिस एस्कॉर्ट के साथ बक्सर से भागलपुर सेंट्रल जेल भेजने का निश्चय हुआ।
बंदी नीतीश पुलिस वालों को ले गए ससुराल
नीतीश कुमार को लेकर पुलिस एस्कॉर्ट बक्सर से भागलपुर के लिए ट्रेन से रवाना हुई। नीतीश कुमार खुद बताते हैं, “ट्रेन खुलने के थोड़ी ही देर बाद मेरे साथ चल रहे पुलिस वालों को मुझसे सहज ही सहानुभूति हो गई। कई छोटे-बड़े स्टेशनों पर रुकती- थमती ट्रेन पटना जंक्शन पर पहुंच गई। स्टेशन पहुंचने के थोड़ी देर पहले से ही मेरे दिल की धड़कन अपने आप तेज़ होने लगीं। इसी शहर से तो मेरा सर्वस्व जुड़ा हुआ था! मुझे मेरी पहचान, मेरी आस्था और मेरे भविष्य के जीवन दर्शन की पहली झलक भी यहीं मिली थी। फिर मेरी जीवनसंगिनी भी तो इसी शहर पटना में, रेलवे स्टेशन से तीन किलोमीटर से भी कम दूरी पर, संताप में जी रही थी। जब ट्रेन पटना जंक्शन पर रुकी तब तक रात का आंचल पसरने लगा था। पटना में ट्रेन काफ़ी देर तक रुकती थी। बहुत तेज़ बारिश के बंद हो जाने के बाद भी वहां हल्की-फुल्की फुहारें गिर ही रही थी। ट्रेन में बैठे-बैठे हम सबके शरीर अकड़े हुए थे। सबको ज़ोरों की चाय की तलब भी लग गई थी। पुलिस एस्कॉर्ट मुझे साथ लेकर प्लेटफॉर्म पर चाय पीने के लिए उतर गई। मुझे हथकड़ी तो लगी नहीं थी, इसलिए मैं पुलिस को चाय पीने में व्यस्त छोड़कर वहीं प्लेटफ़ॉर्म पर टहलने लगा।”
नीतीश कुमार आगे बताते हैं, “मज़े की बात यह थी कि भागलपुर के लिए अगली ट्रेन दूसरे दिन सवेरे ही मिलनेवाली थी। इसलिए मैंने सबको अपनी ससुराल में भोजन करने और वहीं रात गुज़ारने का आमंत्रण दिया। पुलिस एस्कॉर्ट ने तुरन्त ही यह प्रस्ताव मान लिया। उसी हल्की- फुल्की बारिश में हम सब रिक्शों पर लदकर मेरी ससुराल, कंकड़बाग में पहुंचे। वहां घुटने-घुटने भर पानी में अनगिनत हरहरा सांप तैर रहे थे! मेरा एकाएक वहां पहुंच जाना इतना अप्रत्याशित था कि पहले तो किसी को विश्वास ही नहीं हुआ। लेकिन मुझे सशरीर देखकर तुरंत ही लोगों की ख़ुशी का ठिकाना न रहा। फटाफट सभी लोगों के खाने-सोने की व्यवस्था की गई। मंजु (पत्नी) को देखकर मुझे बहुत ही दया आई। मुझे देखते ही उस विरहिणी की कुम्हलाई शक्ल कैसे खिल उठी थी, यह याद करके मुझे आज भी अच्छा लगता है।”
भागलपुर जेल का अनुभव
एस्कॉर्ट के साथ नीतीश भागलपुर के लिए सवेरे-सवेरे ही रवाना हो गया। भागलपुर जेल में कई महिलाएं भी बंदी थीं। उनमें सुधा श्रीवास्तव, कृष्णा मित्रा, वीणा मोदी, स्मृति पांडेय शामिल थीं। सुधा, जेपी की बहन की बेटी थीं। उनके पति भी क्रान्तिकारी प्रवृत्तियों वाले सज्जन थे इसलिए आन्दोलन के प्रति इनका समर्पण बहुत ज़बरदस्त था। इस परिवार के बच्चों की मानसिकता भी बेहद आदर्शवादी थी।
भागलपुर जेल में शाम में जब मुलाक़ातियों से मिलने का समय होता था, तब जेल के गेट तक आते-जाते महिला और पुरुष क़ैदियों की दुआ सलाम भी हो जाया करती थी। इसी क्रम में सुधा जी को नीतीश का व्यक्तित्व बहुत गरिमापूर्ण लगा। नीतीश भी उनके प्रति बड़ी श्रद्धा और आदर का भाव रखने लगा था। बकौल नीतीश- ‘मुझे भागलपुर जेल भेज दिया गया। भागलपुर जेल बहुत विशाल तो है ही, अपने आपमें एक विस्तृत संसार ही है वह जगह। वहीं मुझे अनुभव भी हुआ कि ‘कबिरा इस संसार में भाँति-भाँति के लोग!’