साल 2014 में सत्ता में आने के बाद से आंतरिक सुरक्षा नरेंद्र मोदी सरकार की सर्वोच्च प्राथमिकताओं में से एक रही है। पिछले नौ वर्षों में दो गृह मंत्रियों, राजनाथ सिंह और अमित शाह ने आंतरिक सुरक्षा की चुनौतियों को कम करने के लिए कई कदम उठाए हैं। देश की आंतरिक सुरक्षा के लिए इस्लामी आतंकवाद, वामपंथी उग्रवाद, पूर्वोत्तर और जम्मू-कश्मीर की सिक्योरिटी सिचुएशन एक चुनौती है। सभी क्षेत्रों की आंतरिक सुरक्षा की चुनौतियों से निपटने में मोदी सरकार को सफलता और असफलता दोनों मिली है।
पिछले एक दशक में वामपंथी उग्रवाद की हिंसा में काफी कमी आई है, लेकिन छत्तीसगढ़ माओवादियों का गढ़ बना हुआ है जहां सुरक्षा बल अभी भी हताहत होते हैं।
जम्मू-कश्मीर में सरकार पब्लिक ऑर्डर के मोर्चे पर सफल रही है, लेकिन बाहरी आतंकवादियों की घुसपैठ जारी है। नागरिकों को निशाना बनाया गया है। जम्मू में आतंकवाद की वापसी हुई है।
पूर्वोत्तर ने मोदी सरकार में शांति की लंबी अवधि देखी है। विद्रोही समूहों के साथ कई युद्ध विराम और शांति समझौतों पर हस्ताक्षर किए गए हैं। लेकिन सरकार नागा शांति समझौते पर मुहर लगाने में विफल रही है और मणिपुर में जारी घातक जातीय संघर्ष गंभीर चिंता का विषय है।
वामपंथी उग्रवादी
अप्रैल 2006 में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने नक्सलवाद को ‘भारत की आंतरिक सुरक्षा की सबसे बड़ी चुनौती’ कहा था। मनमोहन सरकार में वामपंथी उग्रवाद वाले क्षेत्रों पर काफी हद तक काबू पा लिया गया था। साल 2014 तक माओवाद या तो लगभग समाप्त हो गया था या पश्चिम बंगाल, झारखंड, बिहार और ओडिशा जैसे राज्यों में अपने अंतिम चरण में था। आंध्र से माओवादी पहले ही बाहर कर दिए गए थे। इस तरह मोदी सरकार को भारत के वामपंथी उग्रवाद वाले क्षेत्रों में सुरक्षित शासन व्यवस्था विरासत में मिली।
एनडीए सरकार ने माओवादियों के खिलाफ एक ‘अंतिम अभियान’ छेड़ा। इसमें न केवल छत्तीसगढ़ के बस्तर और महाराष्ट्र के गढ़चिरौली जैसे मुख्य माओवादी क्षेत्रों में चलाए गए खुफिया अभियान शामिल हैं, बल्कि स्टेट की धमक सुनिश्चित करने के लिए सुदूर जंगलों में स्थापित किए गए शिविर भी शामिल हैं। मोदी सरकार ने दुर्गम क्षेत्रों में सड़क निर्माण और मोबाइल फोन टावरों की स्थापना को बढ़ावा दिया। माओवादियों से लड़ने के लिए राज्य पुलिस बलों को आधुनिक बनाया और उन्हें प्रशिक्षित करने में भी मदद की।
इसका परिणाम यह हुआ है कि नक्सल प्रभावित जिलों की संख्या, जो साल 2010 में 96 थी, 2021 में घटकर मात्र 46 रह गई। वामपंथी उग्रवादी तत्वों की संख्या 2,213 से गिरकर 509 हो गई।
मंत्रालय के अनुसार, UPA शासन की तुलना में मोदी सरकार में नक्सली हिंसा में 50% की कमी आई है। इन घटनाओं से संबंधित मौतों में 66% की कमी आई है और सुरक्षाबलों की मौतों में 71% की गिरावट आई है। वहीं माओवादियों के आत्मसमर्पण में 140% की वृद्धि हुई है।
हालांकि, हर तरफ से धकेले जाने के बाद माओवादियों ने खुद को छत्तीसगढ़ के बस्तर क्षेत्र में केंद्रित कर लिया है, जो सुरक्षा बलों के लिए एक चुनौती बना हुआ है। संसद द्वारा उपलब्ध कराए गए सरकारी आंकड़ों के अनुसार, 2018 से 2022 तक के पांच वर्षों में वामपंथी चरमपंथियों ने 1,132 हिंसक घटनाओं को अंजाम दिया। इन घटनाओं में सुरक्षा बलों के 168 जवानों और 335 नागरिकों की जान चली गई। इस अवधि में हुई एक तिहाई हिंसा का संबंध छत्तीसगढ़ से था। इससे भी अधिक चिंता की बात यह है कि 70-90% मौतें भी इसी राज्य में हुई।
2018 से 2022 के बीच छत्तीसगढ़ में हिंसा का ग्राफ ऊपर-नीचे होता रहा: माओवादियों ने 2018 में 275 हमले किए; 2019 में 182; 2020 में 241; 2021 में 188; और फिर 2022 में 246। फरवरी 2023 के अंत तक माओवादियों ने राज्य में 37 हमले किए थे, जिसमें सुरक्षा बलों के 7 जवानों सहित 17 लोग मारे गए।

जम्मू और कश्मीर
2015 में 80,000 करोड़ रुपये के पैकेज की घोषणा से लेकर 2016 के बुरहान वानी क्राइसिस से निपटने तक, एक वार्ताकार के जरिए असंतुष्ट युवाओं से बातचीत से लेकर हुर्रियत नेताओं को सलाखों के पीछे डालने तक, पीडीपी के साथ गठबंधन में सरकार चलाने से लेकर राज्य का विशेष दर्जा छीन उसे केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित करने तक… मोदी सरकार जम्मू-कश्मीर पर प्रशासनिक और राजनीतिक रूप से काबिज है।
मोदी सरकार का सबसे महत्वपूर्ण विधायी निर्णय जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम रहा है, जिसे अगस्त 2019 में संसद द्वारा पारित किया गया था। विपक्ष और कश्मीर के नेताओं ने इसे भारत सरकार का अन्याय और विश्वास का उल्लंघन बताया। अमित शाह ने तर्क दिया कि अनुच्छेद 370 ने कश्मीर में भ्रष्टाचार और अलगाववाद को जन्म दिया था और राज्य में आतंकवाद को खत्म करने के लिए इसे हटाना बहुत महत्वपूर्ण था।
कश्मीर में अभूतपूर्व संख्या में सुरक्षाबलों को उतारने और NIA जैसी केंद्रीय एजेंसियों द्वारा की गई कड़ी कार्रवाई से घाटी में पथराव की घटनाएं लगभग शून्य हो गई हैं। वहीं आतंकवादी घटनाओं में गिरावट देखी गई है।
सरकारी आंकड़ों के अनुसार, 5 अगस्त, 2019 (6 जून, 2022 तक) से आतंकवादी घटनाओं में 32% की गिरावट आई है। सुरक्षा बलों की मौतों में 52% और नागरिकों की मौत में 14% की गिरावट देखी गई है। सीमा पार से आतंकियों की घुसपैठ में भी 14% की कमी दर्ज की गई है।
इन सफलताओं के बावजूद, नागरिकों की हत्याएं नहीं रुकी हैं। विशेष रूप से कश्मीरी हिंदुओं और घाटी के गैर-कश्मीरी निवासियों ने कश्मीर में खुद को असुरक्षित महसूस किया है। 5 अगस्त, 2019 से घाटी में मारे गए सभी नागरिकों में से 50% से अधिक पिछले आठ महीनों में मारे गए हैं।
जम्मू में हिंदू बहुल इलाकों पर आतंकवादियों ने हमले के कई प्रयास किए हैं। 2000 के दशक की शुरुआत में इस तरह के हमले हुए थे। 2021 में जम्मू-कश्मीर पुलिस ने लगभग 20 आतंकवादियों को गिरफ्तार किया और कई आईईडी बरामद किए, जिनका उद्देश्य हिंदू क्षेत्रों को निशाना बनाना था। साल 2022 की शुरुआत जम्मू में हिंदू नागरिकों की हत्या से हुई, ऐसी घटना इस संभाग में सालों से नहीं देखी गई थी। जम्मू सीमा पर भी लगातार घुसपैठ और सेना के साथ गोलीबारी देखी गई, जिसमें एक दर्जन से अधिक सशस्त्र बल के जवान मारे गए।

पूर्वोत्तर
मोदी सरकार ने अपनी “एक्ट ईस्ट” नीति की घोषणा के साथ अपने शुरुआती वर्षों में पूर्वोत्तर के बारे में अपनी प्राथमिकताओं को स्पष्ट कर दिया था। सरकार ने विद्रोही समूहों के साथ शांति समझौते पर हस्ताक्षर करने और उन्हें बातचीत की मेज पर लाने पर ध्यान केंद्रित किया, यहां तक कि सरकार ने उग्रवादियों के लिए एक व्यापक आत्मसमर्पण और पुनर्वास नीति भी शुरू की।
पिछले नौ वर्षों में सरकार ने मणिपुर में बोडो समूहों, यूनाइटेड पीपुल्स फ्रंट (UPF) और कुकी नेशनल ऑर्गेनाइजेशन, असम में कार्बी आंगलोंग समूहों, त्रिपुरा के नेशनल लिबरेशन फ्रंट और कार्बी लोंगरी एनसी हिल्स लिबरेशन फ्रंट के साथ समझौतों पर हस्ताक्षर किया है।
2021 के असम-मिजोरम सीमा संघर्ष के मद्देनजर, जिसमें मिजोरम पुलिस द्वारा असम पुलिस के पांच कर्मियों की हत्या कर दी गई थी, सरकार ने पूर्वोत्तर में विभिन्न राज्यों के बीच सीमा वार्ता को बढ़ावा दिया। 1970 के दशक से लंबित असम-अरुणाचल सीमा पर वार्ता समाप्त हो गई है और असम-मेघालय सीमा विवाद आंशिक रूप से हल हो गया है।

सरकार के अनुसार, यूपीए काल की तुलना में मोदी शासन के दौरान हिंसक घटनाओं में 68% की गिरावट और पूर्वोत्तर में सुरक्षाबलों और नागरिकों की मौत में 60% की गिरावट आई है। सरकार द्वारा पूर्वोत्तर में उठाया गया सबसे महत्वपूर्ण कदम क्षेत्र के सभी राज्यों के विभिन्न जिलों से सशस्त्र बल विशेषाधिकार अधिनियम (AFSPA) को हटाना है।
त्रिपुरा और मेघालय अब पूरी तरह से AFSPA से मुक्त हैं। मणिपुर में सरकार ने छह जिलों के 15 पुलिस थानों से AFSPA हटा दिया है और नागालैंड में इसे सात जिलों के 15 पुलिस थानों से हटा दिया गया है। अरुणाचल में AFSPA केवल तीन जिलों में और एक जिले के दो पुलिस थानों में लागू है।
हालांकि, दिसंबर 2021 में नागालैंड के मोन जिले में भारतीय सेना द्वारा 13 निर्दोष नागरिकों की दुखद हत्या कर दी गई थी। इस मामले में अभी तक न्याय नहीं मिला है; इस साल अप्रैल में केंद्र ने हत्या में शामिल 30 सैन्य अधिकारियों के खिलाफ मुकदमा चलाने की मंजूरी देने से इनकार कर दिया था।
सरकार सबसे महत्वपूर्ण नगा शांति समझौते पर हस्ताक्षर करने में विफल रही है। 2015 में इसकी घोषणा करने के बावजूद, सरकार को अभी तक सफलता नहीं मिली है। गृह मंत्री शाह के व्यक्तिगत हस्तक्षेप के बावजूद मणिपुर एक महीने से अधिक समय से जल रहा है।