ब्रिटिश भारत में मुसलमानों को गाय की बलि देने की अनुमति थी। हालांकि हिंदू तब भी गाय को पूजा करते थे। भारत के स्वतंत्र होने के तुरंत बाद इसमें बदलाव आया। कई राज्यों में गोहत्या पर प्रतिबंध लगाने वाले कानून बनाए। जबकि यह भी सच है कि गांधी और नेहरू जैसे नेताओं ने इस तरह के कानून का कड़ा विरोध किया था।
हालांकि महात्मा गांधी एक हिंदू के रूप में गायों की रक्षा करना अपना कर्तव्य मानते थे। उनका मानना था कि मुसलमानों को स्वेच्छा से गोमांस छोड़ने के लिए राजी करना चाही। नेहरू ने गौ रक्षा आंदोलन के बारे में कभी ज्यादा नहीं सोचा और एक बार तो उन्होंने जिन्ना से वादा भी किया था कि उनकी सरकार गायों के वध पर प्रतिबंध नहीं लगाएगी।
कब किया था वादा?
बॉम्बे हाईकोर्ट के वकील और भारत के वर्तमान मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ के बेटे अभिनव चंद्रचूड़ ने अपनी किताब ‘Republic of Religion: The Rise and Fall of Colonial Secularism in India’ में लिखा है कि नेहरू को गोरक्षा आंदोलन के प्रति बहुत कम सहानुभूति थी।
अभिनव चंद्रचूड़ ने अपनी किताब में ‘India’s Struggle For Freedom’ के वॉल्यूम-3 के हवाले से नेहरू के एक पत्र का जिक्र किया है, जो उन्होंने 6 अप्रैल, 1938 को मोहम्मद अली जिन्ना को लिखा था।
पत्र में नेहरू ने लिखा, “जहां तक गोहत्या का सवाल है, कांग्रेस के खिलाफ काफी गलत और निराधार प्रचार किया गया है, जिसमें कहा गया है कि कांग्रेस कानून बनाकर इसे जबरन रोकने जा रही है। कांग्रेस इस मामले में मुसलमानों के स्थापित अधिकारों को प्रतिबंधित करने के लिए कोई विधायी कार्रवाई नहीं करना चाहती।”
जिन्ना को नहीं था भरोसा!
जिन्ना ने एक विदेशी पत्रकार से कहा था कि भारत में मुसलमानों को हिंदुओं से कोई सहानुभूति नहीं है क्योंकि हम गाय खाते हैं, हिंदू गाय की पूजा करते हैं। हम एक साथ नहीं रह सकते। जिन्ना की इस बातचीत को लेखक George E. Jones ने अपनी किताब Tumult in India में दर्ज किया है।
गोहत्या के खिलाफ कानून नहीं चाहते थे गांधी
जुलाई 1947 में यानी आजादी से एक महीने पहले गांधी और अन्य नेताओं को भारत में गोहत्या पर प्रतिबंध की वकालत करने वाले कई टेलीग्राम और पत्र मिलने लगे। 19 जुलाई 1947 को महात्मा गांधी ने एक भाषण दिया जिसमें उन्होंने कहा कि वह नेहरू या पटेल को भारत में गोहत्या पर रोक लगाने वाला कानून बनाने के लिए नहीं मनाएंगे।
उन्होंने दोहराया कि गायों को खाना कम देकर, बैलों से भारी बोझ उठवाकर और गायों को बूचड़खानों में बेचकर खुद हिंदू ही गौहत्या के लिए जिम्मेदार हैं। उन्होंने कहा, ‘जवाहरलाल नेहरू या सरदार कोई भी कानून नहीं बना सकते जो गोहत्या को रोक सके।
25 जुलाई, 1947 को एक अन्य भाषण में गांधी ने कहा कि राजेंद्र प्रसाद ने सूचित किया है कि उन्हें लगभग 50,000 पोस्टकार्ड, 25,000 से 30,000 के बीच पत्र और कई हजारों टेलीग्राम मिले हैं, जिनमें गोहत्या पर प्रतिबंध लगाने की मांग की गई है। लेकिन भारत में गोहत्या पर प्रतिबंध लगाने के लिए कोई कानून नहीं बनाया जा सकता है।
उन्होंने कहा, गोहत्या पर प्रतिबंध लगाने वाले कानून का मतलब उन भारतीयों के खिलाफ जबरदस्ती होगा जो हिंदू नहीं हैं। भारत में केवल हिंदू ही नहीं, बल्कि ‘मुस्लिम, पारसी, ईसाई और अन्य धार्मिक समूह’ भी रहते हैं। इसलिए मैं सुझाव दूंगा कि इस मामले को संविधान सभा में नहीं लाना चाहिए। पाकिस्तान को मुसलमानों का कहा जा सकता है। लेकिन भारत सभी का है।
30 जुलाई 1947 को गांधी ने एक बार फिर कानून द्वारा गोहत्या पर प्रतिबंध लगाने के किसी भी कदम के खिलाफ बात रखी। उन्होंने कहा, ‘हमें अपने अहंकार में यह नहीं सोचना चाहिए कि चूंकि सत्ता अब हमारे हाथ में आ गई है, इसलिए हम कानून के जरिए दूसरों को अपनी इच्छा के लिए बाध्य कर सकते हैं।