प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की उपलब्धियों की सूची का एक नाम अंतरराष्ट्रीय योग दिवस है। मोदी की अपील पर साल 2015 में संयुक्त राष्ट्र ने प्रतिवर्ष 21 जून को योग दिवस मनाने की स्वीकृति दी थी। योग को लेकर प्रधानमंत्री मोदी की प्रतिबद्धता को जनता जान चुकी है। लेकिन नरेंद्र मोदी भारत के ऐसे पहले प्रधानमंत्री नहीं हैं, जिन्होंने योग को लेकर वैश्विक मंच पर चर्चा की हो। देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू भी योग की महिमा का बखान दुनियाभर में करते रहे थे।

नेहरू और योग : नेहरू शायद स्वतंत्र भारत के पहले राजनेता थे जिन्होंने शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य में सुधार लाने में योग की क्षमता को पहचाना था। नेहरू खुद नियमित रूप से योग का अभ्यास करते थे। ऐसी कई तस्वीरें उपलब्ध हैं, जिनमें नेहरू शीर्षासन करते देखे जा सकते हैं। जवाहरलाल नेहरू के पिता मोतीलाल नेहरू भी योग किया करते थे। 28 मार्च, 1958 को बंबई के चुन्नीलाल योगिक हेल्थ सेंटर में नेहरू ने बताया था कि वो बचपने में अपने पिता के साथ लोनावला के कैवल्यधाम योग सेंटर में जाया करते थे। नेहरू योग को आंडबरविहीन बनाने के पैरोकार थे। वो चाहते थे कि इस भारतीय विद्या को आधुनिक विज्ञान की कसौटी कसकर जनहितौषी बनाया जाए। नेहरू ज्ञान-विज्ञान और विचारों की शरहद में कैद करने के खिलाफ थे। यही वजह है कि वे योग को सिर्फ भारतीय कहने को गलत मानते थे।

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राज्यसभा में योग का प्रस्ताव : सन् 1952 में यह नेहरू ही थे जिन्होंने योग को भारत की स्वास्थ्य शिक्षा का एक हिस्सा बनाने के लिए राज्यसभा में एक प्रस्ताव पेश किया था। 1953 में उन्होंने यह सुनिश्चित किया कि योग अभ्यास को ‘National Plan of Physical Education and Recreation’ में शामिल किया जाए, जिसे शारीरिक शिक्षा के केंद्रीय सलाहकार बोर्ड द्वारा तैयार किया गया था।

योग को विदेश पहुंचाने वाले से नेहरू की बातचीत

पश्चिमी देशों तक योग पहुंचने का श्रेय ब्रिटिश लेखक पॉल ड्यूक्स को दिया जाता है। इन्होंने योग पर कई किताबें भी लिखी थी। जवाहरलाल नेहरू के जीवनीकार पत्रकार पीयूष बबेले की किताब ‘नेहरू मिथक और सत्य’ में पॉल ड्यूक्स और नेहरू के बीच हुए पत्राचार का जिक्र मिलता है। दरअसल पॉल ने अपनी किताब ‘योगा फॉर द वेस्टर्न वर्ल्ड’ की एक प्रति नेहरू को भेजी थी।

19 मई, 1958 को नेहरू पॉल को किताब के लिए शुक्रिया अदा करते हुए लिखते हैं, ”मुझे 17 मई का लिखा आपका पत्र और आपकी किताब प्राप्त हुई। इसके लिए शुक्रिया। मैं लंबे समय से योग पद्धति के फिजिकल कल्चर में रूचि रखता हूँ। कुछ हद तक मैं योगाभ्यास भी करता हूँ और मुझे इससे बहुत फायदा हुआ है। मैं इस बात से सहमत हूं कि यह एक मूल्यवान पद्धति है। शुरूआती तौर पर यह शरीर के लिए है, लेकिन यह सिर्फ पहला चरण है। इसका दूसरा चरण मस्तिष्क की ट्रेनिंग के लिए है और मैं समझता हूँ तीसरा चरण चेतना या उसे आप जो भी कहें, वहां तक जाता है।”