इस साल 31 जुलाई को एक धार्मिक जुलूस के बाद हरियाणा के नूंह जिले में हुई सांप्रदायिक झड़पों में बड़ा मेवात क्षेत्र फोकस में आ गया है। यह हरियाणा, राजस्थान और उत्तर प्रदेश तक फैला हुआ है। मेवात, मेव मुसलमानों का गढ़ है।

मेव कौन हैं?

मेवात में हरियाणा के नूंह, पलवल, फरीदाबाद और गुड़गांव जिले, राजस्थान के अलवर और भरतपुर जिले, उत्तर प्रदेश के मथुरा सहित पश्चिमी यूपी के कुछ क्षेत्र शामिल हैं। मेवात क्षेत्रफल की दृष्टि से बड़ा लेकिन पिछड़ा इलाका है। द इंडियन एक्सप्रेस के सुखबीर सिवाच ने मेवों के इतिहास को लेकर कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय (हरियाणा) के हिस्ट्री डिपार्टमेंट के चेयरपर्सन और सोशल साइंस डिपार्टमेंट के डीन प्रोफेसर एसके चहल से बात की है।

चलह बताते हैं कि मुगल सम्राट अकबर के शासनकाल के दौरान मेवात पंद्रह सूबों में से एक था। अधिकांश इतिहासकारों का मानना है कि मेव शुरू में मुस्लिम नहीं थे। 12वीं से 17वीं शताब्दी के दौरान दिल्ली के सुल्तानों से लेकर मुगल सम्राट औरंगजेब तक ने धीरे-धीरे उन्हें इस्लाम में परिवर्तित कर दिया। दिल्ली सल्तनत की शुरुआत 13वीं सदी की शुरुआत में खिलजी वंश के शासन के साथ हुई। 16वीं शताब्दी के मध्य में यह मुगलों के अधीन हो गया।

मेव मूल रूप से क्या थे, इसे लेकर इतिहासकारों में मतभेद है। कुछ इन्हें राजपूत मानते हैं, तो कुछ आदिवासी संभवत: मीना मानते हैं। पंजाब विश्वविद्यालय में इतिहास के प्रोफेसर एम राजीवलोचन मानते हैं कि “मेव दूसरे आदिवासी समुदायों की तरह अरावली की पहाड़ियों में रहते थे। 20वीं शताब्दी की शुरुआत में वे पहाड़ियों से उतरकर नदी के मैदानी क्षेत्र में रहने वाले समूहों, विशेषकर अहीरों और जाटों के साथ घुल-मिल गए।”

गाय और मेव मुसलमान

मेवात में मुस्लिम स्वामित्व वाला पहला गौशाला मोहम्मद हबीब ने खोला था, जिसे 2014 में उनके भाई आबिद हुसैन ने संभाला। आबिद ने सिविल इंजीनियरिंग में ग्रेजुएशन किया है। अद्रिजा रॉयचौधरी ने द इंडियन एक्सप्रेस में प्रकाशित अपनी रिपोर्ट में बताया है कि मेव के मुसलमानों का गायों से कैसा संबंध रहा है।

रॉयचौधरी ने अपनी रिपोर्ट में आबिद हुसैन को उद्धत करती हैं, “हम लोग ये साबित करना चाहते हैं कि मुसलमान गौ हत्यारे नहीं, गौ पालक हैं। ये तो सिर्फ राजनीति की वजह से हम लोगों को कलंकित किया जा रहा है।” 2017 में मेवात के 55 वर्षीय पहलू खान की मॉब लिंचिंग के बाद मेवों ने गाय को राष्ट्रीय पशु घोषित करने की मांग की थी। इस मांग के पीछे मेवों की अनोखी धार्मिक-सांस्कृतिक परंपरा है, जिसमें ‘गाय पूजा’ और नमाज़ का मिश्रण दिखता है।

आम तौर पर गाय को एक हिंदू धार्मिक प्रतीक माना जाता है। लेकिन मेवात में गाय मेव मुस्लिमों द्वारा समान रूप से पूजनीय है। मेवात में पहली मुस्लिम गौशाला खोलने वाले सामाजिक कार्यकर्ता मोहम्मद हबीब कहते हैं, “मेव मुसलमान भारत में सबसे अधिक संख्या में गाय पालते हैं। मेवात का पूरा समुदाय हिंदू और मुस्लिम दोनों, इसके खिलाफ हैं। हम यह मानते हुए बड़े हुए हैं कि इस्लाम कहता है कि गाय का दूध दवा की तरह है और इसका मांस बीमारियां फैलाता है। इस्लाम इस बात को स्पष्ट करता है और हम आम जनता के बीच इस बारे में जागरूकता फैलाने की पूरी कोशिश कर रहे हैं।”

गाय के साथ मेवों का रिश्ता स्पष्ट रूप से मेवात के सामाजिक-आर्थिक ढांचे में निहित है। मेवों की जातीय संरचना का अध्ययन करने वाले विशेषज्ञ प्रोफेसर शैल मायाराम बताते हैं कि, “मेवात ब्रज क्षेत्र तक फैला है, जहां अहीर और यादव, प्रमुख गाय पूजक समुदाय संख्या के लिहाज से महत्वपूर्ण और सामाजिक रूप से प्रभावशाली हैं। मेव मुसलमान भी उस परंपरा का हिस्सा हैं। मेवों के जीवन में गायों का विशेष महत्व है, जो कई प्रथाओं में झलकता है- जैसे कि विवाहित मेव महिलाएं पवित्र बटेवरा (गाय के गोबर के उपलों का ढेर) बनाती हैं और समुदाय गोवर्धन पूजा मनाता है।”

मेवात के इतिहास के स्वतंत्र शोधकर्ता सिद्दीकी अहमद कहते हैं कि मेव जैसे कृषक समुदाय में गाय का अपना महत्व है। उनका गायों पर बहुत विश्वास था, और अब भी है। मानसून के पहले महीने में यहां ‘खानसोतिया ‘ नामक त्योहार मनाया जाता है। उस त्यौहार में गाय को नहलाया जाता है, उसके माथे पर टीका लगाया जाता है और उसके सींगों पर तेल लगाया जाता है। हो सकता है कि तकनीकी अर्थों में गायों की पूजा न की जाती हो, लेकिन गायों में उनकी एक निश्चित आस्था जरूर है, जो समुदाय की आर्थिक आवश्यकताओं से जुड़ा है।”

इस्लाम में जीवित प्राणियों की पूजा की मनाही है। हालांकि गाय के प्रति मेवों का जो सम्मान और स्नेह है, उसे नजरअंदाज करना मुश्किल है। यह पूछे जाने पर कि क्या वह गाय को माता मानते हैं, आबिद हुसैन कहते हैं, “हम इस्लाम धर्म से हैं। तो हम गाय को माता नहीं कह सकते, गाय की पूजा तो नहीं करते, लेकिन हम उन्हें वही सम्मान देते हैं, जो अपनी मां को देते हैं।”