आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत 11 स‍ितंबर, 2023 को 73 साल के हो गए। वैसे तो उनके ल‍िए जन्‍मद‍िन भी एक आम द‍िन की ही तरह होता है, क्‍योंक‍ि वह सादगी भरे जीवन का प्रचार करते हैं और खुद भी इसी फलसफे के साथ जीते हैं। वह खान-पान तक में सादगी के पैरोकार रहे हैं। हालांक‍ि, संघ प्रमुख बनने से पहले वह मांसाहार करते थे। इस बात की जानकारी संघ से ही जुड़े एक शोधकर्ता ने दी थी।

आरएसएस के जाने-माने शोधकर्ता और संगठन पर 42 पुस्तकों के लेखक दिलीप देवधर ने जुलाई, 2015 में इकोनॉमिक टाइम्स (ईटी) को बताया था कि “2009 में आरएसएस सरसंघचालक बनने तक मोहन भागवत मांसाहारी भोजन का आनंद लेते थे। मैंने बाला साहब देवरस को भी आरएसएस प्रमुख बनने तक खुलेआम चिकन-मटन खाते देखा है। आरएसएस के ज्यादातर प्रचारक नॉनवेज खाना खाते हैं।”

देवधर के इस बयान के बाद ‘तरुण भारत’ में छपने वाला उनका 16 वर्ष पुराना कॉलम बंद कर दिया गया। तब देवधर ने ईटी से ही बातचीत में कहा था, “मैं आरएसएस में दोहरेपन के खिलाफ हूं। मैं आलोचना करता हूं लेकिन मेरी आलोचना नकारात्मक नहीं है, रचनात्मक है। शाकाहारी बनाम मांसाहारी मुद्दा आरएसएस को बदनाम कर रहा था और इसलिए मैंने इस बारे में बात की कि कैसे आरएसएस मांस खाने के खिलाफ नहीं है और यहां तक कि आरएसएस के शीर्ष नेता मांस खाते थे। मेरे बोलने के बाद आरएसएस के कुछ शीर्ष नेताओं ने मुझे बधाई दी, लेकिन कुछ लोग जो इस मुद्दे को नहीं समझते, वे परेशान हो गए और उन्होंने मेरे कॉलम पर प्रतिबंध लगाकर जवाबी हमला करने की कोशिश की।”

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ScreenGrab/Economic Times

‘गोमांस खाने में भी दिक्कत नहीं, अगर…’

हाल में महाराष्ट्र के नागपुर में अग्रसेन छात्रावास (छात्रावास) में छात्रों की एक सभा को संबोधित करते हुए, मोहन भागवत ने कहा कि आरएसएस कार्यकर्ताओं को गाय का मांस भी खाने में कोई दिक्कत नहीं होगी अगर इससे वंचित वर्गों का हिंदू धर्म में समावेश सुनिश्चित हो जाए। भागवत ने आरएसएस के स्वयंसेवकों द्वारा वंचित वर्गों को नाराज न करने के लिए एक अंतरजातीय सामुदायिक भोज में गाय का मांस खाने में भी कोई हिचकिचाहट ना करने का एक किस्सा भी सुनाया।

उन्होंने कहा, “एक बार शाकाहारी स्वयंसेवकों का एक समूह सहभोजन (अंतरजातीय भोज) में शामिल होने के लिए गया। वहां उन्हें मांस परोस द‍िया गया। उन्होंने खाना शुरू कर दिया ताकि उनके मेजबान को बुरा न लग जाए। हद तो तब हो गई जब एक मेज़बान ने कहा कि भोजन में गाय का मांस मिलाया गया है और अब यह खाने वाले सभी लोग 42 पीढ़ियों तक नरक में सड़ेंगे।

भागवत आगे बताते हैं, “इस पर खाना रहे एक बुजुर्ग ने कहा, देखिए, सदियों से आप और हम अलग-अलग रहे हैं। लेकिन अब आपको आत्मसात करने के लिए अगर हमें 42 पीढ़ियों तक नरक में सड़ना पड़े तो हमें यह भी स्वीकार है। बाद में पता चला कि खाने में गाय का मांस नहीं था और मेजबान केवल मेहमानों की परीक्षा ले रहे थे।”

वैसे, दिसंबर 2022 में उज्जैन में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के छठे सरसंघचालक मोहन भागवत ने कहा था कि शाकाहार होना वैज्ञानिक दृष्टि से अच्छा है। मांसाहार नहीं होगा, तो कत्लखाने खुद ही बंद हो जाएंगे।

वाजपेयी भैंस का मांस भी खाते थे

एन. पी. उल्लेख अपनी किताब ‘The Untold Vajpayee: Politician and Paradox’ में लिखते हैं कि संघ के सदस्य और भाजपा नेता अटल बिहारी वाजपेयी न सिर्फ मांसाहारी भोजन खाते थे, बल्कि उनके व्यंजनों में भैंस के मांस से बने डिश भी शामिल होते थे। खाने के साथ वह व्हिस्की लेना पसंद करते थे।

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Ullekh N.P. ने अपनी किताब The Untold Vajpayee: Politician and Paradox में लिखा है। (ScreenGrab/ThePrint)

हालांक‍ि, आरएसएस से संबद्ध पत्रिका पाञ्चजन्य ने अपने एक लेख में दावा किया था कि मांसाहार करना ‘हिंदू विरोधी’ है। पत्रिका ने जुलाई 2022 में आईआईटी रुड़की को कैंटीन में मांसाहारी भोजन परोसने के लिए “हिंदू विरोधी” करार दिया था। लेक‍िन, सितंबर 2022 में गुवाहाटी में आरएसएस के बौद्धिक संगठन प्रज्ञा प्रवाह के प्रमुख नंद कुमार ने कहा था कि “मांसाहार वर्जित नहीं है और देश में इसे प्रतिबंधित नहीं किया जा सकता है, लेकिन गोमांस से बचना चाहिए।”