किरण पाराशर

22 जनवरी को अयोध्या में राम मंदिर का उद्घाटन होना है। तीन मूर्तिकारों ने राम लला की तीन अलग-अलग मूर्तियां बनाई हैं। एक मूर्तिकार अरुण योगीराज की खूब चर्चा है। साल के पहले ही दिन कर्नाटक के भाजपा नेता सोशल मीडिया पर योगीराज को बधाई देते नजर आए।

हालांकि श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट ने अभी तक यह घोषणा नहीं की है कि तीन मूर्तियों में से किसको गर्भगृह में रखा जाएगा। लेकिन पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा और केंद्रीय संसदीय कार्य मंत्री प्रह्लाद जोशी सहित कई भाजपा नेताओं ने दावा किया है कि योगीराज की बनाई मूर्ति का ही चयन किया गया है।

मैसूर के रहने वाले योगीराज मशहूर मूर्तिकारों के परिवार से हैं। उनका कहना है कि उनका परिवार 250 साल यानी पिछली पांच पीढ़ियों से यह काम कर रहा है।

कौन हैं अरुण योगीराज?

38 वर्षीय योगीराज को देश के सबसे अधिक डिमांड वाले मूर्तिकारों में गिना जाता है। योगीराज ने एमबीए की डिग्री लेने के बाद कुछ समय नौकरी भी थी। फिर वे अपने पारिवारिक पेशे में वापस आ गए।

योगीराज बताते हैं, “मैं 11 साल की उम्र से ही मूर्तिकला में अपने पिता की सहायता कर रहा हूं। कुछ महीनों तक कहीं और काम करने के बाद, मुझे एहसास हुआ कि मूर्तिकला मेरा जुनून है। मैं 2008 में घर लौट आया। मेरे पिता ने मेरे फैसले का समर्थन किया। हालांकि मेरी मां इस बात से खुश नहीं थीं कि मैंने नौकरी छोड़ दी। उन्हें तब खुशी मिली जब साल 2014 में मुझे दक्षिण भारत का युवा प्रतिभा पुरस्कार मिला।”

योगीराज के दादा बी बासवन्ना शिल्पी को मैसूर के राजाओं द्वारा संरक्षण प्राप्त था। उन्हें मैसूर महल के शाही गुरु और शिल्पी सिद्धांती सिद्धलिंग स्वामी द्वारा प्रशिक्षण मिला था। बसवन्ना ने मैसूर महल परिसर स्थित गायत्री मंदिर के लिए 11 महीनों में 64 मूर्तियां बना दी थीं।

अरुण योगीराज के पास 15 कारीगरों और कुछ छात्रों की एक टीम है जो कला सीखने के लिए स्वेच्छा से काम कर रहे हैं। भारत से ऑर्डर के अलावा, उन्हें यूएसए, मलेशिया और अन्य स्थानों से भी कई ऑर्डर मिले हैं।

उन्होंने कई छात्रों को निःशुल्क प्रशिक्षण भी दिया है। वह बच्चों को क्ले मॉडलिंग और अन्य कौशल में प्रशिक्षित करने के लिए मैसूर में ब्रह्मर्षि कश्यप शिल्पकला शाला ट्रस्ट चलाते हैं।

योगीराज की कुछ प्रसिद्ध काम

योगीराज के कुछ बेहतरीन कामों में दिल्ली के इंडिया गेट के समीप लगे स्वतंत्रता सेनानी सुभाष चंद्र बोस की 28 फीट लंबी मूर्ति है। बोस की वह मूर्ति एक काले ग्रेनाइट पत्थर को काटकर बनाया गया है।

इसके अलावा योगीराज ने ही केदारनाथ (उत्तराखंड) में लगी 12 फीट की आदि शंकराचार्य की मूर्ति बनाई है। मैसूर में लगी श्री रामकृष्ण परमहंस की भारत की सबसे बड़ी 10 फीट की सफेद संगमरमर पत्थर की मूर्ति का निर्माण भी योगीराज ने ही किया है।

भारत भर के विभिन्न मंदिरों में भगवान पंचमुखी गणपति, भगवान महाविष्णु, भगवान बुद्ध, नंदी, स्वामी शिवबाला योगी, स्वामी शिवकुमार और देवी बनशंकरी की मूर्तियां भी योगीराज ने बनाई हैं।

रामलला की मूर्ति कैसे तैयार की?

योगीराज बताते हैं कि ट्रस्ट ने तीन मूर्तिकारों से कहा था कि पांच वर्ष के रामलला की मूर्ति बनानी है। मूर्ति की लंबाई 51 इंच (4.25 फीट) होनी चाहिए।

योगीराज कहते हैं, “हमें कई जगहों के पत्थर दिए गए। जैसे नेपाल, उत्तर कन्नड़ जिले के करकला, मैसूर जिले के एचडी कोटे और राजस्थान के मकराना के पत्थर। मैंने एचडी कोटे के कृष्ण शिला पत्थर का चयन किया। खान एवं भूतत्व विभाग के वैज्ञानिकों ने मदद की। इनमें से कुछ पत्थर भक्तों द्वारा डाले जाने वाले पानी और दूध पर प्रतिक्रिया करते हैं। कृष्ण शिला एक अनोखा पत्थर है जो किसी भी तरल पदार्थ पर प्रतिक्रिया नहीं करता है और इसका उपयोग कर्नाटक में 1,000 वर्षों से किया जा रहा है।”

कलाकार ने कहा कि जहां भगवान कृष्ण के बाल रूप के कई विवरण मिलते हैं। वहीं भगवान राम के बचपन के बारे में बहुत कम विवरण उपलब्ध हैं। वह बताते हैं, “मैंने कुछ स्कूलों का दौरा किया। मैसूर में बच्चों का एक कार्यक्रम (चिन्नारामेला का एक समर कैंप) हुआ था। मैं वहां बच्चों को देखने गया था। पांच साल का बच्चा तीन साल या चार साल के बच्चे से बहुत अलग दिखता है। मैंने लगभग 1,200 तस्वीरों के साथ काम करते हुए यह कैद करने की कोशिश की कि पांच साल का बच्चा कैसा दिखता है। मूर्ति में एक बच्चे की मासूमियत के साथ-साथ दिव्यता भी होनी चाहिए। मूर्ति की कल्पना करने में मुझे दो महीने लग गए।”

अगले चार महीनों में योगीराज ने मूर्ति गढ़ी। योगीराज ने कहा, “चूंकि मैं घर से दूर अयोध्या में था, इसलिए मैं दिन में 12 घंटे काम करता था और उसके बाद अगले दिन के लिए कुछ होमवर्क करता था।”

मूर्ति पर काम करने वाले अन्य दो मूर्तिकार बेंगलुरु के जीएल भट्ट और राजस्थान के सत्यनारायण पांडे हैं। ट्रस्ट इन तीन मूर्तियों में से एक को गर्भगृह के अंदर स्थापित करेगा, जबकि अन्य दो को मंदिर के परिसर में रखा जाएगा।