महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) के हत्या के दोषी नाथूराम गोडसे (Nathuram Godse) और नारायण आप्टे (Narayan Apte) को 15 नवंबर 1949 को अदालत के आदेशानुसार फांसी दी गई थी। अंबाला जेल के भीतर जब गोडसे को फांसी के लिए ले जाया जा रहा था, तो उसके एक हाथ में भगवद् गीता और ‘अखंड भारत’ का नक्शा था। वहीं दूसरे हाथ में भगवा झंडा था।

बीबीसी ने प्रत्यक्षदर्शियों के हवाले से लिखा है कि फांसी का फंदा पहनाए जाने से ठीक पहले गोडसे और आप्टे ने  ‘नमस्ते सदा वत्सले’ का उच्चारण किया था। संस्कृत में रचित ‘नमस्ते सदा वत्सले’ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की प्रार्थना है।

आज भी सुरक्षित रखी हैं गोडसे की अस्थियां

महात्मा गांधी के हत्यारे नाथूराम गोडसे  की अस्थियां आज भी पुणे के शिवाजी नगर इलाके में स्थित ‘नाथूराम गोडसे संग्रहालय’ में सुरक्षित रखी हैं। गोडसे की अस्थियों को चांदी के कलश में भरकर शीशे के एक केस में रखा गया है। म्यूजियम जिस इमारत में है, उस इमारत के मालिक नाथूराम गोडसे के भाई गोपाल गोडसे के पोते अजिंक्य गोडसे हैं।

अजिंक्य गोडसे ने दैनिक भास्कर को अस्थियों को सुरक्षित रखने की वजह बतायी थी। उन्होंने कहा था कि, ”इन अस्थियों का विसर्जन सिंधु नदी में ही होगा और तभी होगा जब उनका अखंड भारत का सपना पूरा हो जाएगा। बताया था।”

गांधी हत्या षड्यंत्र में शामिल नाथूराम गोडसे के भाई गोपाल गोडसे ने अपनी विवादित किताब ‘गांधी-वध और मैं’ में दावा किया है कि नाथूराम ने फांसी से एक दिन पहले जेल से पत्र लिखकर अस्थियों के संबंध में अपनी इच्छा व्यक्त की थी।

गोपाल गोडसे के मुताबिक दत्तात्रेय विनायक गोडसे के नाम लिखे पत्र में नाथूराम गोडसे ने कहा था कि ”मेरे शरीर के कुछ हिस्से को संभाल कर रखो और जब सिंधु नदी स्वतंत्र भारत में फिर से समाहित हो जाए और फिर से अखंड भारत का निर्माण हो जाए, तब मेरी अस्थियां उसमें प्रवाहित कर देना। इसमें दो-चार पीढ़ियां भी लग जाएं तो कोई बात नहीं।”

गांधी के बेटों ने रुकवानी चाही थी गांधी की फांसी

महात्मा गांधी के चार बेटों में से दो मणिलाल और रामदास गोडसे और आप्टे को फांसी दिए जाने के खिलाफ थे। इस बात की पुष्टि खुद महात्मा गांधी के पोते गोपाल कृष्ण गांधी ने की है।

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उन्होंने साल 2018 में एक सवाल के जवाब में मीडिया से कहा था, ”महात्मा गांधी ने मृत्युदंड का विरोध किया। वह हत्यारे की गोलियों का शिकार हो गया, लेकिन उसके दो बेटों ने तत्कालीन सरकार से अपील करते हुए कहा कि नाथूराम गोडसे को फांसी नहीं दी जानी चाहिए, नारायण आप्टे को फांसी नहीं दी जानी चाहिए, क्योंकि गांधीजी मौत की सजा के खिलाफ थे। मैं भी उसी विचारधारा से ताल्लुक रखता हूं।”