लोकसभा चुनाव के तीसरे चरण में बिहार की 5 सीटों पर मतदान होगा, मधेपुरा उनमें से एक है। जेडीयू से दिनेश चंद्र यादव और आरजेडी से प्रोफेसर कुमार चंद्रदीप इस निर्वाचन क्षेत्र से प्रमुख उम्मीदवार हैं। आइए दीप्तिमान तिवारी की ग्राउंड रिपोर्ट में जानते हैं क्या हैं क्षेत्र की समस्याएं और मुद्दे और जनता अपने प्रतिनिधि से क्या चाहती है?
मधेपुरा शहर से लगभग 10 किमी दूर, टिन की छत वाले कच्चे घर दिखते हैं। मुरहो गांव के आखिर में मंडल आयोग की रिपोर्ट के लिए प्रसिद्ध बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री बिंदेश्वरी प्रसाद मंडल का स्मारक है। वहीं, मंडल स्मारक से बमुश्किल 100 मीटर की दूरी पर मुसहर टोले के एक कोने में, एक मिट्टी की झोपड़ी है, जहां क्षेत्र के पहले संसद सदस्य किराई मुसहर के पोते रहते हैं। इस सबको देखने पर ऐसा लगता है कि विकास मंडल के गांव तक पहुंचा ही नहीं है। मंडल का पैतृक घर और उनके नाम पर स्मारक मुरहो गांव में कुछ प्रमुख संरचनाओं में से एक हैं।
लालू और नीतीश ने सामाजिक न्याय आंदोलन को कमजोर कर दिया- किराई मुसहर के पोते
अपनी झोपड़ी से सटे बांस के पेड़ों की छाया में बैठे मुसहर के पोते जीवछ ऋषिदेव ने इंडियन एक्स्प्रेस से बातचीत के दौरान कहा, “लालू और नीतीश ने सामाजिक न्याय आंदोलन को कमजोर कर दिया क्योंकि दोनों ने अपनी-अपनी जातियों को बढ़ावा देना शुरू कर दिया। दलितों को दोनों से कुछ नहीं मिला। वे अब भी सबसे गरीब बने हुए हैं।”
वहीं, जीवछ के भाई उमेश जो स्थानीय स्तर पर राजनीति में भी सक्रिय हैं और मधेपुरा के पूर्व सांसद पप्पू यादव के साथ काम करते हैं, उन्होंने इंडियन एक्स्प्रेस से बातचीत के दौरान कहा, “हमारे अपने घर को देखो। क्या आपने किसी पूर्व सांसद का ऐसा घर देखा है? महादलितों की बात करें तो यहां महादलितों की स्थिति क्या है? गांव की हालत देखो।”

गांव की हालत दयनीय
गांव के अन्य निवासियों ने भी अपनी दयनीय हालत के बारे में एक्स्प्रेस को बताया। 70 वर्षीय दिनेश यादव कहते हैं, ”मेरा पूरा जीवन एक फूस की छत के नीचे बीता है। अब मैं क्या उम्मीद कर सकता हूं। मैं अब बस अपने दिन गिन रहा हूं।”
25 साल के चंदन यादव मवेशियों का चारा काटते हैं। टिन शेड के नीचे एक कोने में एक सफेद बोर्ड रखा है जिस पर गणित के समीकरण लिखे हुए हैं और बिस्तर पर खुली किताबें बिखरी हुई हैं। बीएड की डिग्री और आईटीआई सर्टिफिकेट होने के बावजूद चंदन पिछले कुछ सालों से नौकरी की तलाश कर रहे हैं। अपने खाली समय में वह गांव में स्कूली बच्चों को फीस लेकर पढ़ाते हैं। वह सभी पार्टियों से नाराज हैं।
असल मुद्दे की कोई बात नहीं करता- गांव का एक नौजवान
इंडियन एक्स्प्रेस से बातचीत के दौरान चंदन कहते हैं, “कोई भी वास्तविक मुद्दों के बारे में बात नहीं कर रहा है। असली मुद्दा बेरोजगारी है। बुजुर्गों ने मुझसे कहा कि टीचिंग लाइन में आने के लिए बीए, बीएड करो। मैंने किया लेकिन नौकरी नहीं मिली। फिर उन्होंने कहा, रेलवे में जाने के लिए आईटीआई करो। मैंने किया, फिर भी कोई फायदा नहीं। अब मैंने चपरासी के पद के लिए फॉर्म भरा है लेकिन एक साल से अधिक समय से कोई परीक्षा आयोजित नहीं की गई है।”
चंदन आगे कहते हैं, “सभी पार्टियां सामाजिक न्याय की बात करती हैं लेकिन वास्तविक सामाजिक न्याय आर्थिक सशक्तिकरण होगा। परिवार में एक लड़के को नौकरी मिल जाती है और पूरे परिवार का स्तर बढ़ जाता है। मुझे ट्यूशन क्यों पढ़ाना पड़ रहा है? ऐसा इसलिए है क्योंकि सरकारी स्कूल में ठीक से पढ़ाई नहीं हो रही है। शिक्षा के बिना कौन सा सामाजिक न्याय प्राप्त किया जा सकता है?”

गांव में सालों से कोई विकास नहीं हुआ- ग्रामीण
पचपनिया (ओबीसी बनिया) समुदाय से आने वाले गांव के दुकानदार नरेंद्र दास इंडियन एक्स्प्रेस से बातचीत के दौरान कहते हैं कि गांव में कोई भी नेता नहीं आता है और सालों से यहां कोई विकास नहीं हुआ है। वह कहते हैं, “जल नल योजना अच्छी गुणवत्ता वाला पानी नहीं देती है। नल तो लगे हैं लेकिन गांव में नालियां नहीं हैं। यहां कूड़ा उठाने भी कोई नहीं आता। पीएम आवास योजना भी यहां तक नहीं पहुंची है।”
हालांकि कुछ कट्टर आरजेडी समर्थक भी हैं, जो दावा करते हैं कि पिछले कुछ सालों में गांव में सड़कें बनी हैं और किसानों को उनकी मक्के की फसल के लिए अच्छी कीमत मिल रही है। आनंद मंडल, बीपी मंडल के पोते और आरजेडी नेता इंडियन एक्स्प्रेस से बातचीत के दौरान कहते हैं, “सामाजिक न्याय केवल एक विचारधारा नहीं है। यह भी एक आंदोलन है। दुर्भाग्य से जो लोग इस आंदोलन से उठे वे या तो अपने परिवार को आगे बढ़ाने या सत्ता हथियाने में लग गये। जब तक सामाजिक-आर्थिक असमानता है, समाजवाद जीवित रहेगा।”

मंडल आयोग की रिपोर्ट
महादलित समुदाय से आने वाले किराई मुसहर ने 1952 में सोशलिस्ट पार्टी का प्रतिनिधित्व करते हुए भागलपुर लोकसभा क्षेत्र (तब मधेपुरा इसका हिस्सा था) से जीत हासिल की थी। मधेपुरा संसदीय क्षेत्र के भागलपुर से अलग होने के बाद, मंडल ने संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी (एसएसपी) के टिकट पर 1967 का चुनाव जीता। वह 1968 में थोड़े समय के लिए बिहार के सीएम बने।
बिंदेश्वरी प्रसाद मंडल जो यादव समुदाय से थे, बाद में दूसरे पिछड़ा वर्ग आयोग के अध्यक्ष बने और 1978-80 के दौरान मंडल आयोग की रिपोर्ट के लेखक बने, जिसने अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के लिए सरकारी नौकरियों में कोटा की सिफारिश की। मंडल पैनल रिपोर्ट को 1990 में वी पी सिंह सरकार द्वारा लागू किया गया था, जिससे बिहार और उत्तर प्रदेश में कई क्षेत्रीय दलों का उदय हुआ।
मधेपुरा में 7 मई को मतदान
यादवों के प्रभुत्व वाले निर्वाचन क्षेत्र मधेपुरा में 7 मई को तीसरे चरण में मतदान होगा। जेडीयू से दिनेश चंद्र यादव और आरजेडी से प्रोफेसर कुमार चंद्रदीप इस निर्वाचन क्षेत्र से प्रमुख उम्मीदवार हैं। मुरहो गांव मुख्य रूप से यादवों द्वारा बसा हुआ है। यहां रहने वाले अन्य समुदायों में कुर्मी और पचपनिया जैसे कुछ अन्य ओबीसी समूहों के साथ-साथ महादलित भी शामिल हैं। 1998 के बाद से मधेपुरा सीट पर राजद या जदयू का ही कब्जा रहा है। दोनों ने यहां 3 बार जीत हासिल की है, वहीं आरजेडी ने 2004 के उपचुनाव में भी जीत हासिल की थी।
लोकसभा चुनाव 2019 का परिणाम
मधेपुरा में 2019 के चुनावों में, जेडीयू के दिनेश चंद्र यादव ने राजद के टिकट पर चुनाव लड़ने वाले शरद यादव को 3 लाख से अधिक वोटों से हराया था। 2019 के चुनाव में जेडीयू प्रत्याशी को 54.42% और आरजेडी प्रत्याशी को 28.14% वोट हासिल हुए थे। JAP(L) से खड़े हुए पप्पू यादव को 97 हजार से ज्यादा वोट मिले थे।
लोकसभा चुनाव 2014 का परिणाम
2014 के चुनाव में आरजेडी के टिकट पर खड़े हुए पप्पू यादव ने यहां जीत हासिल की थी। पप्पू को मधेपुरा सीट पर 3.68 लाख (35.65%) वोट मिले थे। दूसरे स्थान पर जेडीयू प्रत्याशी शरद यादव को 3.12 लाख (30.22%) वोट हासिल हुए थे। वहीं, बीजेपी प्रत्याशी विजय कुमार को 24.40% वोट (2.52 लाख) मत मिले थे।