लोकसभा चुनाव के चौथे चरण में आज मध्य प्रदेश की 8 सीटों पर मतदान हो रहा है। इसके साथ ही एमपी की सभी 29 लोकसभा सीटों पर चुनाव संपन्न हो जाएगा। एक तरफ जहां बीजेपी राज्य की सभी 29 सीटें जीतने की उम्मीद जता रही है। वहीं, कांग्रेस ने भाजपा के खेल को खराब करने के लिए मुट्ठी भर निर्वाचन क्षेत्रों में अपनी ताकत झोंक दी है।
भाजपा के लिए हिंदी हार्टलैंड राज्य मध्य प्रदेश दशकों से उसका गढ़ रहा है। दिसंबर 2023 में विधानसभा चुनावों में 224 सीटों में से 163 सीटें जीतकर एमपी की सत्ता में आई भाजपा के लिए पहले दो चरणों में मतदान में गिरावट चिंता का कारण है।
भाजपा के लिए कम मतदान बना चिंता का विषय
भाजपा के एक वरिष्ठ नेता ने इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत के दौरान कहा, “केंद्रीय भाजपा टीम ने आंकड़ों का विश्लेषण किया और पाया कि महिला मतदाता जो लाडली बहना योजना की लाभार्थी हैं, पहले दो चरणों में बड़ी संख्या में नहीं आईं, जैसा कि उन्होंने विधानसभा चुनावों के दौरान किया था। कई कार्यकर्ताओं ने भी पूरी ताकत से प्रचार नहीं किया। केंद्रीय नेतृत्व को पार्टी कार्यकर्ताओं को कई हलकों में अति-आत्मविश्वास से बचाने के लिए चेताना पड़ा।” कहा जाता है कि महिला कल्याण लाभार्थियों और उनके बीच पूर्व सीएम शिवराज सिंह चौहान की सकारात्मक छवि ने पार्टी को विधानसभा चुनाव में भारी जीत दर्ज करने में मदद की थी।
इससे पहले केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने दूसरे चरण की वोटिंग के पहले 25 अप्रैल को बीजेपी दफ्तर में मध्य प्रदेश के बड़े नेताओं की एक बैठक ली थी। बैठक में उन्होंने कहा था कि जिन मंत्रियों के क्षेत्र में मतदान प्रतिशत कम होगा, उनका पद चला जाएगा। साथ ही उन्होंने यह भी कहा था कि उन विधायकों को मंत्री बनाया जाएगा जिनके क्षेत्र में मतदान प्रतिशत बढ़ेगा। अमित शाह के वोटिंग प्रतिशत बढ़ाने की चेतावनी के बाद बीजेपी के नेताओं-कार्यकर्ताओं ने मतदान प्रतिशत बढ़ाने की कवायद शुरू कर दी थी।

मौजूदा भाजपा सांसदों के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर
कुछ निर्वाचन क्षेत्रों में मौजूदा सांसदों के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर के कारण भाजपा को कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है। उदाहरण के लिए राजगढ़ में दो बार के सांसद रोडमल नागर जो पूर्व कांग्रेस सीएम दिग्विजय सिंह के खिलाफ खड़े हैं, उन्हें अपनी पार्टी के भीतर कड़े विरोध का सामना करना पड़ रहा है। प्रचार के दौरान नागर ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता पर काफी भरोसा जताया।
इसके अलावा, केंद्रीय मंत्री फग्गन सिंह कुलस्ते (मंडला), गणेश सिंह (सतना), आलोक शर्मा (भोपाल), और भरत सिंह कुशवाहा (ग्वालियर) जैसे उम्मीदवार जो विधानसभा चुनाव हार गए थे, उन्हें लोकसभा की लड़ाई के लिए चुना गया। ऐसे में कांग्रेस को इन सीटों से फायदा होने की उम्मीद है।
कांग्रेस का खेल
एक कांग्रेस नेता ने कहा, “इस बार हम पार्टी मशीनरी का बहुत अधिक विस्तार नहीं कर रहे हैं, उम्मीद है कि हम कुछ सीटें जीत लेंगे।” कांग्रेस अपने तीन विधायकों और इंदौर लोकसभा सीट से उम्मीदवार अक्षय कांति बम जैसे बड़े नेताओं के साथ-साथ हजारों पार्टी कार्यकर्ताओं के जाने के बाद से पार्टी छोड़कर जाने वालों को रोकने की कोशिश कर रही है।

जब से अक्षय बम ने भाजपा में शामिल होने का फैसला किया है, तब से कांग्रेस इंदौर में नोटा के लिए अभियान चला रही है। कांग्रेस दीवारों और ऑटो-रिक्शा पर पोस्टर चिपका रही है, मशाल रैलियां और बैठकें आयोजित कर रही है और मतदाताओं को भाजपा को ‘सबक’ सिखाने के लिए कहने के लिए सोशल मीडिया कैम्पेन चला रही है। हालांकि, भाजपा का दावा है कि उसने 5 लाख से अधिक कांग्रेस नेताओं को पार्टी में शामिल किया है। वहीं, कांग्रेस ने इसे खारिज करते हुए अपने कैडर को हतोत्साहित करने की चाल बताया।
MP की इन सीटों पर बीजेपी की खास नजर
भाजपा की नजर पूर्व मुख्यमंत्री कमल नाथ के गढ़ छिंदवाड़ा पर होगी, जहां उनके बेटे नकुल नाथ दूसरी बार चुनाव मैदान में हैं। यहां भाजपा 2000 से अधिक नेताओं को अपने पाले में लाने में कामयाब रही है, जिसमें अमरवाड़ा के मौजूदा विधायक कमलेश्वर शाह भी शामिल हैं, जिससे कांग्रेस के आदिवासी वोट बैंक में सेंध लगने की उम्मीद है। हालांकि, नकुल के वफादारों ने कहा कि उन्हें लगता है कि वे इस बार भी जीतेंगे।
मध्य प्रदेश के उत्तरी क्षेत्रों में, केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया गुना की अपनी पारिवारिक सीट को फिर से हासिल करने की उम्मीद करेंगे। सिंधिया को उम्मीद है कि यादव मतदाता जो उनके खेमे से दूर चले गए थे, सीएम मोहन यादव के गुना में उनके लिए प्रचार करने से वापस आ जाएंगे।

इन सीटों पर कांग्रेस को मिल सकता है फायदा
राज्य के आदिवासी क्षेत्र भी ऐसे हैं जहां कांग्रेस को फायदा होने की उम्मीद है। हालांकि विधानसभा चुनावों में अनुसूचित जनजाति (एसटी) के लिए आरक्षित 47 विधानसभा सीटों में कांग्रेस की सीटें 31 से घटकर 22 हो गईं। इन क्षेत्रों में उसके लगभग एक तिहाई विधायक आदिवासी समुदाय से हैं। कांग्रेस धार, बैतूल, शहडोल, रतलाम, मंडला और खरगोन में खासतौर पर प्रभाव छोड़ना चाहती है।
साल | बीजेपी को मिली सीटें | कांग्रेस को मिली सीटें | अन्य को मिली सीटें |
1996 | 27 | 8 | 5 |
1998 | 30 | 10 | – |
1999 | 29 | 11 | 0 |
2004 | 25 | 4 | – |
2009 | 16 | 12 | – |
2014 | 27 | 2 | – |
2019 | 28 | 1 | – |
कांग्रेस के लिए क्या हैं रुकावटें?
कांग्रेस के लिए जो बाधाएं प्रतीत होती हैं, वे हैं इस्तीफे, पैसों की कमी और ‘मोदी गारंटी’ के खिलाफ मजबूत विकल्पों के अभाव के बीच एक कमजोर संगठन। इन सबके परिणामस्वरूप राज्य में कांग्रेस के चुनाव अभियान पर असर पड़ा है, खासकर भाजपा के गढ़ों बुंदेलखंड, विंध्य, मालवा-निमाड़ और भोपाल-नर्मदापुरम क्षेत्रों में। ग्वालियर-चंबल क्षेत्र में, जहां कांग्रेस अपनी संभावनाएं तलाश रही है वहां बहुजन समाज पार्टी (बसपा) की एंट्री कांग्रेस के लिए सिरदर्द बन रही है। मायावती के नेतृत्व वाली पार्टी ने कांग्रेस से आए लोगों को उम्मीदवार के रूप में चुना है। ऐसे में वे वोटों को विभाजित कर सकते हैं और आखिरकार स्थिति भाजपा के पक्ष में जा सकती है।
बीजेपी का वोट प्रतिशत 40% के नीचे नहीं गया
मध्य प्रदेश में साल 1989 के बाद से कभी भी बीजेपी का वोट प्रतिशत 40% के नीचे नहीं गया है। 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में तो उसे क्रमशः 54 और 58% वोट मिले थे। आंकड़ों पर नजर डालने से पता चलता है कि बीजेपी को मध्य प्रदेश में कई सीटों पर बड़े अंतर से जीत मिलती रही है। मध्य प्रदेश में साल 2004 से 2019 तक हुए लोकसभा चुनाव में कुल सीटों को मिलाकर देखें तो 116 लोकसभा सीटों में से 77 लोकसभा सीटें ऐसी हैं, जहां पर जीत का अंतर 10% या इससे ज्यादा रहा है। इन 77 सीटों में से 71 सीटों पर बीजेपी जीती है जबकि कांग्रेस के खाते में ऐसी सिर्फ 6 सीटें ही आई हैं।
