लोकसभा चुनाव 2024 के ल‍िए जारी भाजपा और कांग्रेस के घोषणापत्रों को पढ़ने के दो तरीके हैं। एक तो आसान तरीके से मुद्दों, वादों और संकल्पों की सूची बनाकर देखा जा सकता है। इस तरीके से यह पता चल जाता है कि किन मुद्दों को प्राथमिकता दी गई है और किन मुद्दों पर बात नहीं की गई है।

उदाहरण के लिए, आर्थिक विकास और समाज के विभिन्न वर्गों के कल्याण संबंधी पैकेज को दोनों ही पार्टियों ने प्राथमिकता दी है ताकि यह दिखाया जा सके कि उनका भविष्य के लिए एक सकारात्मक एजेंडा है। फिर भी, सीएए और एनआरसी जैसे विवादास्पद मुद्दों को सुविधानुसार नजरअंदाज किया गया है। भाजपा ने भी, जिसने सीएए को एक महत्वपूर्ण राजनीतिक उपलब्धि के तौर पर पेश किया था, इस मुद्दे को भविष्य के वादे के तौर पर रखने में काफ़ी सावधानी बरती। पार्टी के घोषणा पत्र में लिखा है, “हमने नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) बनाने का ऐतिहासिक कदम उठाया है और योग्य लोगों को नागरिकता देने के लिए इसे लागू किया जाएगा।”

कांग्रेस का घोषणापत्र भी नागरिकता के मुद्दे को नहीं उठाता

इसी प्रकार, कांग्रेस का घोषणापत्र भी नागरिकता के मुद्दे को नहीं उठाता है, और सीएए के बारे में भी कुछ नहीं कहता है। इन घोषणापत्रों को पढ़ने का दूसरा तरीका यह है कि इन्हें भविष्य के भारतीय राष्ट्र की रूपरेखा तैयार करने वाले बहुमूल्य राजनीतिक दस्तावेज के तौर पर देखा जाए, न कि इनमें दिए गए वादों और छोड़ दिए गए वादों पर बहस की जाए। इस उद्देश्य के लिए, सामाजिक न्याय, आर्थिक समानता और धार्मिक-सांस्कृतिक बहुलतावाद जैसे तीन मौलिक संवैधानिक सरोकारों पर फिर से गौर करना चाहिए ताकि विकस‍ित भारत 2047, आत्मनिर्भर भारत, न्याय और संविधान का बचाव जैसे लगातार इस्‍तेमाल की जा रही शब्‍दावल‍ियों का अर्थ सही से समझा जा सके।

भाजपा का संकल्प पत्र प्रधानमंत्री के इर्द-गिर्द घूमता है

भाजपा का संकल्प पत्र (जिसे आधिकारिक तौर पर मोदी की गारंटी – 2024 के तौर पर जारी किया गया है), प्रधानमंत्री के इर्द-गिर्द घूमता है। हर चुनावी वादे को मोदी की गारंटी के तौर पर पेश किया गया है ताकि यह ज्यादा व्यक्तिगत और आकर्षक लगे। संकल्प पत्र के दो मुख्य अंग हैं – सरकार के प्रदर्शन की रिपोर्ट कार्ड और कुछ गारंटियाँ। इस दस्तावेज को ध्यान से पढ़ने पर यह साफ हो जाता है कि मोदी सरकार उस चीज के प्रति वचनबद्ध है जिसे मैं परोपकारी राज्य कहता हूँ – एक ऐसा राज्य जो लोगों की भलाई को आधिकारिक उदारता के रूप में देखता है, जबकि खुले बाजार की अर्थव्यवस्था को बुनियादी ढाँचे के विकास के लिए एक प्रेरक शक्ति के रूप में देखता है।

भाजपा के संकल्प पत्र में इन योजनाओं पर है फोकस

इस परोपकारी राज्य मॉडल को पीएम गरीब कल्याण अन्न योजना, पीएम जन धन खाता, आयुष्मान भारत, पीएम आवास योजना और जल जीवन मिशन जैसी लोकप्रिय योजनाओं को सही ठहराने के लिए व्‍यक्‍त किया गया है। इन योजनाओं को न केवल उपलब्धियों के तौर पर, बल्कि आय असमानताओं और वर्ग-आधारित विषमता से संबंधित महत्वपूर्ण आर्थिक सवालों का समाधान करने के लिए संभावित नीतिगत उपकरणों के तौर पर भी पेश किया गया है। इसलिए संकल्प पत्र में गरीब और मध्यम वर्गीय परिवारों के लिए कार्यक्रमों और नीतियों को अलग से सूचीबद्ध किया गया है।

यह आर्थिक वर्गीकरण परोपकारी राज्य के मूल आधार के साथ अच्छी तरह से मेल खाता है। कल्याणकारी योजनाएँ आर्थिक संकट से जुड़ी हैं, खासकर समाज के निचले स्तर पर, जबकि मध्यम वर्ग को संतुष्ट करने के लिए ढाँचागत विकास प्रस्तावित है। परोपकारी राज्य मॉडल का उपयोग पारंपरिक सामाजिक न्याय श्रेणियों – ओबीसी, एससी और एसटी को समायोजित करने के लिए भी किया जाता है। यह जोर देकर कहा गया है कि भाजपा हर स्तर पर सामाजिक न्याय-आधारित प्रतिनिधित्व के लिए प्रतिबद्ध है।

वर्तमान सरकार में 60 प्रतिशत मंत्री ओबीसी, एससी और एसटी समुदायों से

घोषणा पत्र इस तथ्य पर प्रकाश डालता है कि वर्तमान सरकार में 60 प्रतिशत मंत्री ओबीसी, एससी और एसटी समुदायों से हैं। प्रस्तावित किया गया है कि पार्टी “यह सुनिश्चित करने के लिए जिला स्तर पर समितियाँ गठित करेगी कि कल्याणकारी योजनाएँ सबसे निचले स्तर तक पहुँचें।” एससी, एसटी और ओबीसी समुदायों के लिए इस समिति में पर्याप्त प्रतिनिधित्व का भी वादा किया गया है।

ऐसा लगता है कि संकल्प पत्र धार्मिक-सांस्कृतिक बहुलवाद की धारणा के प्रति बहुत सावधान है। यह मंदिर-केंद्रित योजनाओं, जनजातीय विरासत और यहां तक कि भाषाई रूप से कमज़ोर समूहों की चिंताओं के बारे में बात करता है। हालाँकि, धार्मिक अल्पसंख्यकों और भारत की बहुधार्मिक संस्कृति और विरासत पर कुछ भी नहीं कहा गया है। भविष्य के विकसित भारत में समावेशीपन द‍िखाने के लिए एक प्रसिद्ध नारा “सबका साथ, सबका विकास” द‍िया गया है। हालाँकि, इस समावेशी को बहुत ही संकीर्ण तरीके से परिभाषित किया गया है।

क्या खास है कांग्रेस के घोषणा पत्र में?

कांग्रेस पार्टी का घोषणा पत्र (न्याय पत्र) परोपकारी राज्य मॉडल को एक गंभीर चुनौती प्रतीत होता है। यह कांग्रेस की नव संकल्प आर्थिक नीति के तीन लक्ष्यों – काम, धन और कल्याण – को रेखांकित करता है। इन तीन विषयों को न केवल नरेंद्र मोदी शासन द्वारा शुरू किए गए कार्यक्रमों और नीतियों की आलोचना के मकसद से लाया गया है, बल्कि भविष्य के लिए एक रचनात्मक संकल्प पेश करने के लिए भी ल‍िया गया है।

आर्थिक असमानता न्याय पत्र का मुख्‍य विषय है। इसमें कहा गया है, “भारत के लोग आर्थिक रूप से विभाजित हैं। बहुत अमीर लोगों का एक छोटा वर्ग है, एक बड़ा मध्यम वर्ग है, बड़ी संख्‍या उन लोगों की है जो गरीबी रेखा से ऊपर हैं पर मध्‍यम वर्ग में नहीं हैं और लगभग 22 करोड़ लोग जो गरीब हैं।” भारतीय समाज का यह वर्ग विभाजन आर्थिक असमानताओं और सामाजिक अन्याय के पीछे के कारणों में से एक माना जाता है।

कांग्रेस एकाधिकार और पूंजीवाद का विरोध करती है

खुली अर्थव्यवस्था के प्रति पार्टी की प्रतिबद्धता को दोहराते हुए, घोषणा पत्र एक क्रांतिकारी प्रस्ताव देता है। यह कहता है कि आर्थिक विकास निजी क्षेत्र द्वारा संचालित होना चाहिए, जिसका पूरक “एक मजबूत और व्यवहार्य सार्वजनिक क्षेत्र” होना चाहिए। इस योजना में निजी क्षेत्र को एक आत्म-विनियमन आर्थिक इकाई के रूप में नहीं देखा गया है। न्याय पत्र का दावा है कि कांग्रेस एकाधिकार और पूंजीवाद का विरोध करती है। पार्टी यह सुनिश्चित करेगी कि किसी भी कंपनी या व्यक्ति को अनुचित आर्थिक लाभ न दिया जाए।

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सामाजिक न्याय के लिए एक नए ढांचे का प्रस्ताव

सामाजिक न्याय के लिए एक नए ढाँचे का प्रस्ताव करने के लिए असमानता के प्रश्न का और विस्तार किया गया है। न्याय पत्र एक राष्ट्रव्यापी सामाजिक-आर्थिक और जाति जनगणना की आवश्यकता पर प्रकाश डालता है ताकि सकारात्मक कार्रवाई की सार्थक नीति के लिए जातियों और उप-जातियों और उनकी सामाजिक-आर्थिक परिस्थितियों की गणना की जा सके। इसमें आगे प्रस्ताव किया गया है कि पार्टी एससी, एसटी और ओबीसी के लिए आरक्षण की 50 प्रतिशत की सीमा बढ़ाएगी; और साथ ही, “ईडब्ल्यूएस आरक्षण सभी जातियों और समुदायों के लिए लागू किया जाएगा”।

न्याय पत्र विशेष रूप से असहिष्णुता के बढ़ने को लेकर चिंतित है। यह बहुलवादी मूल्यों और संवैधानिक सिद्धांतों को अपनी मूल प्रतिबद्धताओं के तौर पर आमंत्रित करता है। यह सांप्रदायिक और भाषाई अल्पसंख्यकों सहित भारतीय समाज के सभी वर्गों को समायोजित करने की आवश्यकता पर ज़ोर देता है, ताकि असली अर्थों में विविधता में एकता को पुनः प्राप्त किया जा सके।

दूसरे शब्दों में, राज्य की एक नई अवधारणा प्रस्तावित है, जो बाज़ार-संचालित आर्थिक सुधारों के पक्ष में प्रमुख आर्थिक सहमति से विचलित नहीं होना चाहती है। फिर भी, यह आर्थिक लोकतंत्र और सामाजिक न्याय सुनिश्चित करने के लिए भी उतना ही समर्पित है। इन घोषणापत्रों के राजनीतिक नतीजों की भविष्यवाणी करना जल्दबाजी होगी। फिर भी, राजनीतिक विचारों की एक दिलचस्प लड़ाई पहले ही शुरू हो चुकी है, जो हमारे लोकतंत्र के भविष्य को आकार देगी।

(लेखक सीएसडीएस, नई दिल्ली में एसोसिएट प्रोफेसर हैं। यहां व्‍यक्‍त व‍िचार उनके न‍िजी हैं।)