चुनावी माहौल गरम हो गया है और सराकरी एजेंस‍ियां भी सक्र‍िय हैं। सीबीआई, ईडी, इनकम टैक्स का जो डर द‍िखाया जा रहा, वैसा शायद ही कभी किसी सरकार ने क‍िया हो। पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी बॉन्ड को असंवैधान‍िक करार देते हुए जो कुछ भी ट‍िप्‍पणी की, उससे भी सरकार के पाक-साफ होने के दावे की पोल खुल गई। चंडीगढ़ मेयर चुनाव का प्रकरण भी भाजपा की क‍िसी भी कीमत पर सत्‍ता हथ‍ियाने की नीत‍ि का सबूत है। इन दोनों ही मामलों पर सुप्रीम कोर्ट के न‍िर्णय के बाद विपक्ष ने यह कहते हुए भाजपा पर हमला तेज क‍िया है क‍ि इलेक्टोरल बॉन्ड के जर‍िए सत्तारूढ़ दल ने अकूत दौलत जमा की और चंडीगढ़ में चोरी तो आज पकड़ी गई, अन्यथा जबसे भाजपा सत्ता में आई है, तभी से अवैध व अनैत‍िक तरीके से सत्‍ता हथ‍ियाती रही है।

उधर, इंड‍िया गठबंधन का हौसला प‍िछले दिनों थोड़ा बढ़ा है। ब‍िहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने जिस तरह पाला बदला और भाजपा को साथी बना कर मुख्‍यमंत्री पद की शपथ ली, उसके बाद लग रहा था क‍ि इंड‍िया छ‍िन्‍न-भ‍िन्‍न हो जाएगा। फ‍िर कई जाने—माने नेताओं ने भी पाला बदला। लेक‍िन, कांग्रेस ने ज‍िस तरह यूपी, द‍िल्‍ली, गुजरात आद‍ि राज्‍यों में सपा और आप के साथ सीटे बंटवारा समझौता फाइनल क‍िया उससे इंड‍िया को मृत मान चुके लोगों को जरूर झटका लगा होगा।

नेताओं के पाला बदलने को ईडी, सीबीआई, इनकम टैक्स आद‍ि एजेंस‍ियों की कार्रवाई के डर से भी जोड़ कर देखा जा रहा है। वैसे भी यह बात समझ में नहीं आती कि आख‍िर क्‍यों इन एजेंसियों को चुनाव से ऐन पहले तमाम व‍िपक्षी नेता भ्रष्‍ट नजर आने लगते हैं? वह कौन सा कारण होता कि चुनाव काल में ही सभी विपक्षियों के यहां छापे पड़ने लगते हैं? यह बात भी समझ में नहीं आती कि क्या सत्तारूढ़ दल का एक भी व्यक्ति या नेता भ्रष्ट नहीं है?

सवाल यह भी उठता है क‍ि क्‍या जनता भी इन सवालों से परेशान है और इसके पीछे का मकसद समझ पा रही है या नहीं? मानना चाह‍िए क‍ि दस साल का वक्‍त लंबा होता है और जनता इतने लंबे समय तक क‍िसी पार्टी या नेता की मंशा से अनजान रहे, यह संभव नहीं लगता। तो क्‍या वह पर‍िवर्तन के मूड में है? इसका जवाब तो चुनाव पर‍िणाम आने के बाद ही म‍िलेगा। वैसे, यह भी सच है क‍ि बदलाव कुछ लोगों के चाहने से नहीं होगा। बहुमत ज‍िसे चाहेगा, सत्‍ता में वही आएगा। तो क्‍या बहुमत बदलाव चाहता है?

कांग्रेस इस मुद्दे को लेकर काफी चिंतित है कि यदि यही सरकार फिर से सत्ता में आएगी, तो ताकत के बल पर विपक्ष को खत्म कर देगी और तानाशाही रवैया अपनाते हुए देश को उद्यमियों के हाथों में गिरवी रख दिया जाएगा। पर क्‍या वह अपनी इस च‍िंंता के साथ जनता को जोड़ पाएगी और बहुमत को समझा पाएगी? उसकी इसी कोश‍िश की कामयाबी में उसकी च‍िंंता का समाधान है। अंजाम जानने के ल‍िए चुनाव नतीजे आने तक इंतजार कीज‍िए।

Nishikant Thakur

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं। यहां ल‍िखी बातें उनके न‍िजी व‍िचार हैं।)