लोकसभा चुनाव के दूसरे चरण में आज 13 राज्यों की 88 सीटों पर मतदान हो रहा है। इनमें से कई सीटें ऐसी हैं जहां लड़ाई पार्टियों के बीच नहीं बल्कि जातियों में हैं। आइये जानते हैं राजस्थान, महाराष्ट्र और बिहार की उन सीटों के बारे में जहां जाति प्रत्याशी पर भी भारी है।

बीड़ में चुनाव मराठा आरक्षण के मुद्दे से प्रभावित

कई लोगों का मानना ​​है कि इस बार बीड़ में चुनाव मराठा आरक्षण के मुद्दे से प्रभावित हो सकता है, जो अब मराठा और ओबीसी के बीच संघर्ष में बदल गया है। मराठा आरक्षण आंदोलन का चेहरा माने जाने वाले मनोज जारांगे-पाटिल ने शिंदे सरकार के मराठा कोटा कानून को खारिज कर दिया है और जोर देकर कहा है कि इसे ओबीसी श्रेणी के तहत प्रदान किया जाना चाहिए। उन्होंने इसकी सुविधा के लिए सभी मराठों के लिए कुंभी प्रमाणपत्र मांगा है।

बीड़ में मराठा और ओबीसी की लड़ाई

महाराष्ट्र के बीड़ लोकसभा क्षेत्र में भाजपा नेता और पूर्व मंत्री गोपीनाथ मुंडे की बेटी पंकजा मुंडे और शरद पवार के नेतृत्व वाली एनसीपी (शरदचंद्र पवार) के उम्मीदवार बजरंग सोनवणे के बीच सीधी लड़ाई है। एक प्रमुख वंजारी (ओबीसी) चेहरा, पंकजा कुछ समय से भाजपा से दूर थीं लेकिन पार्टी ने अब उन्हें उनके गृह क्षेत्र से मैदान में उतारा है। वहीं, शरद पवार की पार्टी ने एक बार फिर मराठा चेहरे बजरंग सोनवणे को मैदान में उतारा है। हालांकि 2019 में वह भाजपा कैंडीडेट से 1.68 लाख वोटों से हार गए थे। ऐसे में यहां मराठा और ओबीसी की लड़ाई है।

लंबे समय से चले आ रहे इस गतिरोध ने मराठा समुदाय के एक वर्ग को महायुति गठबंधन से अलग कर दिया है, साथ ही साथ जातिगत आधार पर भी ध्रुवीकरण हुआ है। अपना नामांकन दाखिल करने के बाद पंकजा ने कहा, ”लोकसभा चुनाव में राष्ट्रीय मुद्दों पर चर्चा की उम्मीद की जाती है। मुझे दुख है कि यह मेरे निर्वाचन क्षेत्र में नहीं हो रहा है।”

आरक्षण विवाद का असर

इसके अलावा, सात अन्य निर्वाचन क्षेत्रों में भी आरक्षण विवाद ने जोर पकड़ लिया है, जिसमें औरंगाबाद, जालना, हिंगोली, नांदेड़, लातूर, परभणी और उस्मानाबाद शामिल हैं। वहीं, दूसरी ओर कई ओबीसी बहुल बेल्टों में समुदाय के कार्यकर्ता कह रहे हैं कि मराठों की 28-30% की तुलना में राज्य की आबादी में ओबीसी हिस्सेदारी 50-52% है।

जबकि महायुति खेमे का मानना ​​है कि ओबीसी उनके पीछे लामबंद होंगे, वहीं विपक्षी महा विकास अघाड़ी जिसमें उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस शामिल हैं वह मराठों, मुसलमानों और दलितों को एकजुट करना चाह रहे हैं।

मराठा समुदाय को 10% आरक्षण

फरवरी 2024 में भाजपा, मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली शिवसेना और अजित पवार के नेतृत्व वाली एनसीपी के सत्तारूढ़ महायुति गठबंधन ने मराठों को 10% अलग आरक्षण देने के लिए राज्य विधानमंडल में एक नया कानून पारित किया था। हालांकि, इस फैसले को बॉम्बे हाई कोर्ट में चुनौती दी गई है, जहां मामला पेंडिंग है। बीड़ मराठवाड़ा क्षेत्र के आठ जिलों में से एक है जो नौकरियों और शिक्षा में मराठों के लिए आरक्षण के लिए चले आंदोलन का केंद्र रहा है। हालांकि, ओबीसी समुदाय ने इसके खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया था।

राजस्थान में कितना हावी है जातिवाद?

राजस्थान में दूसरे चरण में जिन सीटों पर मतदान होगा उनमें प्रमुख निर्वाचन क्षेत्र हैं- बाड़मेर-जैसलमेर, बांसवाड़ा, जालौर, कोटा, जोधपुर और टोंक। प्रधानमंत्री मोदी के साथ-साथ बीजेपी के मुख्य मुद्दे राष्ट्रवाद और राम मंदिर हैं। इसके अलावा इस बार जाति की राजनीति भी कुछ सीटों पर भारी पड़ती नजर आई। यह संयोग नहीं हो सकता कि पीएम मोदी के ध्रुवीकरण वाले दोनों भाषण, जहां उन्होंने मुसलमानों का जिक्र करते हुए कांग्रेस पर हमला किया था, राजस्थान के बांसवाड़ा और टोंक में आए थे।

भाजपा को सबसे ज्यादा टक्कर बाड़मेर में मिल रही है, जहां निवर्तमान केंद्रीय मंत्री कैलाश चौधरी का मुकाबला निर्दलीय रवींद्र भाटी और कांग्रेस के उम्मेदा राम बेनीवाल से है। राजपूत और कुछ अन्य समूह जहां भाटी का समर्थन कर रहे हैं, वहीं जाट बेनीवाल और चौधरी के पीछे लामबंद होते दिख रहे हैं, जिससे बेनीवाल का पलड़ा भारी है।

जाट किसे करेंगे वोट?

वहीं, जोधपुर में केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत जो राजस्थान से भाजपा का सबसे मजबूत राजपूत चेहरा हैं, एक और राजपूत करण सिंह उचियारड़ा के खिलाफ चुनाव लड़ रहे हैं। ऐसे में बहुत कुछ इस बात पर निर्भर करता है कि जाट और बिश्नोई जैसी अन्य जातियां किस आधार पर वोट करती हैं। जालौर में कांग्रेस की ओर से पूर्व सीएम अशोक गहलोत के बेटे वैभव भाजपा के लुंबाराम चौधरी के खिलाफ लड़ रहे हैं। अशोक गहलोत वैभव के लिए आक्रामक रूप से प्रचार कर रहे हैं।

अजमेर में जाट बनाम जाट का मुकाबला

एक और सीट टोंक-सवाई माधोपुर की बात की जाये तो मौजूदा बीजेपी सांसद सुखबीर सिंह जौनापुरिया और कांग्रेस के हरीश चंद्र मीणा के बीच कड़ा मुकाबला देखने को मिल रहा है। इस सीट पर मुस्लिमों की अच्छी खासी संख्या है, ऐसे में बीजेपी को उम्मीद है कि हिंदू पार्टी से जुड़े रहेंगे और पीएम मोदी के भाषण से भी असर पड़ेगा। अजमेर में भी मामला जाट बनाम जाट है। हालांकि, यहां जाट भाजपा के भागीरथ चौधरी की ओर झुकते दिख रहे हैं। भीलवाड़ा उन सीटों में से एक है जहां उम्मीदवार मतदाताओं के लिए बहुत कम मायने रखते हैं और कहानी पीएम मोदी और भाजपा की नीतियों पर केंद्रित है। यहां एक बार के विधायक और तीन बार के सांसद, भाजपा के सुभाष चंद्र बहेरिया और कांग्रेस के सीपी जोशी के बीच मुकाबला है।

बिहार में जेडीयू कैंडिडेट को नीतीश से ज्यादा मोदी का सहारा

बिहार के भागलपुर में भी शुक्रवार को दूसरे चरण के तहत मतदान होगा। 2019 के चुनाव में जेडीयू के अजय कुमार मंडल ने एनडीए उम्मीदवार के रूप में 2.7 लाख से अधिक वोटों के अंतर से सीट जीती। मंडल को उनकी पार्टी ने फिर से मैदान में उतारा है। जद (यू) नेता और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की घटती लोकप्रियता के बीच मतदाता मानते हैं कि अजय मंडल की अपने निर्वाचन क्षेत्र में रुचि कम है। वह मैदान में सबसे कम लोकप्रिय उम्मीदवार प्रतीत होते हैं।

नीतीश कुमार की घटती लोकप्रियता

बिहार के भागलपुर में लगभग 20 लाख मतदाता हैं, जिनमें से 4.5 लाख मुस्लिम और 3 लाख यादव हैं। लगभग 2 लाख मतदाता दलित और कुर्मी हैं और लगभग 5 लाख उच्च जाति के हैं। हालांकि, पीएम नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता के दम पर एनडीए और अजय मंडल इस सीट को बरकरार रखने को लेकर आश्वस्त हैं। यह इस चुनाव में क्षेत्र में नीतीश कुमार की घटती लोकप्रियता को दिखाता है। इंडियन एक्स्प्रेस से बातचीत के दौरान ज्योति विहार के मतदाता सुनील कुमार कुर्मी भी हैं, उन्होंने कहा, “नीतीश कुमार का समय समाप्त हो गया है। हम मोदी के नाम पर उनके उम्मीदवार को वोट देंगे लेकिन विधानसभा चुनाव में नये चेहरे की जरूरत है, चाहे वह जद (यू) से हो या भाजपा से। उन्होंने बहुत अधिक कलाबाजी की है। उन पर भरोसा करना मुश्किल हो रहा है।”

भूमिहार वोटों का बंटवारा नहीं

कई मतदाता भाजपा के पक्ष में हैं, हालांकि मंडल जदयू के उम्मीदवार हैं। वहीं, कांग्रेस इस बात पर भरोसा कर रही है कि वह मंडल के खिलाफ मतदाताओं का गुस्सा, निर्वाचन क्षेत्र में यादव और मुस्लिम वोट और भूमिहार वोटों के विभाजन के दम पर बाजी पलट सकती है। कांग्रेस उम्मीदवार अजीत शर्मा भूमिहार हैं। दलितों में फूट है। जहां कई लोग कांग्रेस का समर्थन कर रहे हैं, वहीं पासवान दृढ़ता से भाजपा के साथ हैं लेकिन भूमिहार वोटों का बंटवारा होता नहीं दिख रहा है। इंडियन एक्स्प्रेस से बातचीत के दौरान सबौर के बबलू कुमार राय कहते हैं, “हमने एक पल के लिए शर्मा के बारे में सोचा लेकिन फिर उस पार्टी के साथ जाने का फैसला किया जो अगड़ी जातियों के लिए बोलती है। आख़िरकार, हम अब उत्पीड़ित वर्ग हैं।”