लोकसभा चुनाव 2024 के लिए सत्ताधारी भाजपा ने ‘विकसित भारत’ का नारा दिया है। भाजपा के स्टार प्रचारक और देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने चुनावी भाषणों में भारत को 2047 तक विकसित बनाने का वादा कर रहे हैं।

भाजपा ‘विकसित भारत’ का सपना भारत की बढ़ती अर्थव्यवस्था को आधार बनाकर दिखा रही है। नरेंद्र मोदी नेतृत्व वाली सरकार का दावा रहा है कि आने वाले वर्षों में देश दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगी।

दूसरी तरफ भाजपा की आर्थिक नीतियों की आलोचक विपक्ष है जो अक्सर यह कहती हैं कि उच्च विकास दर या दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के टैग का अधिकांश भारतीयों के लिए कोई मतलब नहीं रखता क्योंकि भारत की प्रति व्यक्ति आय बहुत कम है।

अब सवाल उठता है कि 2024 के लोकसभा चुनावों में मतदाताओं की राजनीतिक पसंद किस बात से तय होगी? क्या लोग अपने आर्थिक भविष्य को लेकर उतने ही उत्साही हैं जितना कि भाजपा चाहती है कि वे रहें? या वे उतने ही निराशावादी हैं जितना कि विपक्ष मानता है कि वे हैं?  

इस प्रश्न का उत्तर आरबीआई द्वारा किए जाने वाले Consumer Confidence Survey (CCS) के आंकड़ों में खोजा जा सकता है। सीएसएस के आंकड़ों से कंज्यूमर सेंटिमेंट का पता चलेगा। कंज्यूमर सेंटिमेंट एक तरह का आर्थिक संकेतक है। इससे यह मापा जाता है कि उपभोक्ता अपनी आर्थिक स्थिति को लेकर कितना आशावादी महसूस कर रहे हैं।  

हालांकि CCS के आंकड़ों को देखते हुए इस बात को ध्यान में रखना जरूरी है कि आरबीआई का यह सर्वे केवल शहरी क्षेत्रों में आयोजित किया जाता है और इसलिए यह हमें ग्रामीण भारत में आर्थिक भावना के बारे में कुछ नहीं बताता है। मार्च राउंड के सीसीएस का आंकड़ा 5 अप्रैल को जारी किया गया था।

हताश हैं उपभोक्ता!

आरबीआई के सर्वे से पता चलता है कि मार्च 2019 की तुलना में मार्च 2024 में उपभोक्ता हताश हैं। Current Situation Index (CSI) तैयार करने के लिए लोगों से सामान्य आर्थिक स्थिति, रोजगार के माहौल, वस्तुओं के दाम, घर की कमाई और कुल खर्च पर रिस्पांस मांगा जाता है। जो भी प्रतिक्रिया मिलती है, उसके औसत में 100 जोड़ा जाता है।

इसके बाद अगर नंबर 100 से नीचे आता है तो उसे नकारात्मक माना जाता है। मार्च (2024) राउंड का नंबर 98.5 है, जबकि मार्च 2019 में यह आंकड़ा 104.6 था। इससे पता चलता है कि पिछले लोकसभा चुनाव से पहले भारत के उपभोक्ता इस चुनाव से पहले की तुलना में अपनी आर्थिक स्थिति को लेकर अधिक आशावादी थी।

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सोर्स- RBI

मार्च 2019 के बाद हुए सर्वे में रिस्पांस अलग तरह के मिले थे, इसलिए ऐसा अनुमान लगाया जा रहा है कि लोकसभा चुनाव के बाद जो सर्वे के जो आंकड़े सामने आएंगे उसमें रिस्पांस अलग तरह के होंगे।

भविष्य को लेकर क्या अनुमान?

पिछले आम चुनाव से पहले की तुलना में इस बार सामान्य आर्थिक स्थिति, रोजगार और आय को लेकर उपभोक्ता अधिक नाउम्मीद नजर आ रहे हैं। जैसे मार्च 2019 में 19.9 प्रतिशत लोगों ने माना था कि आय में कमी आएगी। वहीं मार्च 2024 में 21.7 प्रतिशत लोगों का रिस्पांस है कि कमाई घटेगी।

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सोर्स- RBI

मार्च 2019 में 30.1 प्रतिशत लोगों ने माना था कि आय बढ़ेगी। मार्च 2024 में 27.7 प्रतिशत लोगों ने कहा है कि आय बढ़ेगी। इसी तरह का हाल सामान्य आर्थिक स्थिति और रोजगार को लेकर भी है।

तीसरी अर्थव्यस्था बनना कितना आसान या मुश्किल?

फिलहाल भारत दुनिया की 5वीं सबसे बड़ी इकोनॉमी है। तीसरी अर्थव्यस्था बनने के लिए भारत को जर्मनी और जापान को पीछे छोड़ना होगा। ऐसा तब होगा जब भारत 5 साल में 6 प्रतिशत की जीडीपी ग्रोथ हासिल करेगी। मोदी सरकार के नौ साल में जीडीपी ग्रोथ 5.7 प्रतिशत रही है।

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Modi lok sabha 2024
भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विकसित भारत का नारा दिया है। (PV- FB)