लोकसभा चुनाव 2024 में भ्रष्टाचार एक बड़ा मुद्दा बनता जा रहा है। सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी ने तो बकायदा नारा दिया है “मोदी कहता है भ्रष्टाचार हटाओ, विपक्ष कहता है भ्रष्टाचारी बचाओ”।

नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार का दावा है कि उन्होंने भ्रष्टाचार को कम करने के लिए कई उपाय अपनाए हैं, मसलन योजनाओं का डिजिटलाइजेशन, कानून में परिवर्तन, आदि।

लेकिन एक चिंताजनक तथ्य यह भी है कि इसी सरकार द्वारा भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम में किए संशोधन के बाद से भ्रष्टाचार के आरोपी अधिकारियों पर कार्रवाई मुश्किल हो गई है।

उदाहरण के लिए महाराष्ट्र का एंटी करप्शन ब्यूरो (ACB) कथित वित्तीय अनियमितताओं से जुड़े दो-तिहाई मामलों में आरोपी अधिकारियों के खिलाफ जांच शुरू नहीं कर पा रहा क्योंकि राज्य सरकार या संबंधित विभाग की तरफ से मंजूरी नहीं मिल रही है। जांच के कई मामले महीनों तो कुछ वर्षों से लंबित हैं।  

547 मामलों में से सिर्फ 51 को मिली मंजूरी

द इंडियन एक्सप्रेस के मोहम्मद थावेर ने राज्य एसीबी से प्राप्त आंकड़ों का विश्लेषण किया है, जिससे पता चला है कि कानून में बदलाव के बाद से मार्च 2024 तक एसीबी ने वित्तीय अनियमितताओं से जुड़े 547 मामलों की जांच के लिए अर्जी लगाई, जिसमें से केवल 51 को मंजूरी मिली। 126 मामलों की अर्जी खारिज कर दी गई थी। 31 मार्च तक मंजूरी मिले मामलों समेत 354 केस की जांच नहीं की जा सकी थी।

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राज्य के पास लंबित 354 स्वीकृतियों में से 210 वरिष्ठ अधिकारियों से संबंधित हैं और 144 अनुरोध उस सरकारी विभाग के समक्ष लंबित हैं जहां कर्मचारी काम करता है। इन 354 मामलों में से दो को छोड़कर, एसीबी को चार महीने से अधिक समय से राज्य या संबंधित विभाग से कोई जवाब नहीं मिला है।

जिस दौरान ये सब चल रहा था राज्य में अलग-अलग गठबंधन की सरकार रही, जैसे- भाजपा+शिवसेना, महा विकास अघाड़ी (शिवसेना+कांग्रेस+एनसीपी) और भाजपा+शिवसेना (शिंदे)+एनसीपी (अजित पवार)।

ACB के हाथ क्यों बंधे हैं?

जुलाई 2018 से पहले एसीबी सरकार से मंजूरी का इंतजार नहीं करती थी। प्रारंभिक जांच शुरू करने के साथ ही, FIR दर्ज की जा सकती थी। लेकिन जुलाई 2018 में केंद्र सरकार ने भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम में धारा 17 (ए) पेश किया। इस संशोधन के बाद पुलिस सीधे केस दर्ज नहीं कर सकती थी, संबंधित विभाग या राज्य सरकार से मंजूरी लेने को आवश्यक बना दिया गया।

संशोधन के मुताबिक, अर्जी मिलने पर सरकार को तीन महीने के भीतर अपना निर्णय बताना होता है। सरकार लिखित में कारण बताकर अतिरिक्त एक महीना ले सकती है।

महाराष्ट्र एसीबी के एक अधिकारी ने द इंडियन एक्सप्रेस को बताया, “हालांकि मंजूरी देने के लिए अधिकतम चार महीने का समय होता है, लेकिन कानून में यह उल्लेख नहीं है कि समय सीमा का पालन नहीं करने पर क्या कार्रवाई की जा सकती है। इसलिए, देरी के बावजूद हम इस बारे में ज्यादा कुछ नहीं कर सकते।”

भाजपा और भ्रष्टाचार

नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार का दावा है कि उनके कार्यकाल में भ्रष्टाचार कम हुआ है। लेकिन विपक्ष का आरोप है कि मोदी सरकार में न सिर्फ भ्रष्टाचार बढ़ा है बल्कि सत्ताधारी भाजपा ने बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार के आरोपियों को अपनी पार्टी में जगह भी दी है।

कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने तो भाजपा पर तंज कसते हुए उसे ‘फुली ऑटोमेटिक वॉशिंग मशीन’ बताया है। दरअसल, कांग्रेस अध्यक्ष ने इंडियन एक्‍सप्रेस की जिस इन्वेस्टिगेटिव रिपोर्ट को शेयर करते भाजपा पर तंज कसा है, उसमें बताया गया है कि नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद से भाजपा में शामिल होने वाले या सहगोयी बनने वाले भ्रष्टाचार के आरोपी 25 विपक्षी नेताओं में से 23 को राहत मिल गई है।

विपक्ष से आकर भाजपा में राहत पाने वालों में 10 पूर्व कांग्रेसी हैं। इसके अलावा पूर्व शिवसेना, पूर्व एनसीपी, पूर्व टीमसी, पूर्व टीडीपी, पूर्व सपा और वायएसआरपी नेता भी भाजपा से जुड़कर राहत पा चुके हैं।

लोकसभा चुनाव 2024 के लिए भी भाजपा दूसरे दल के दागी नेताओं को उम्मीदवार बना रही है, जैसे- नवीन जिंदल के खिलाफ सीबीआई और ईडी ने चार्जशीट दायर की है, लेकिन अभी कुछ दिन पहले जैसे ही वह भाजपा में शामिल हुए उन्हें पार्टी ने लोकसभा का टिकट दे दिया। विस्तार से जानने के लिए नीचे दिए फोटो पर क्लिक करें:

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The Indian Express में दीप्‍त‍िमान त‍िवारी ने एक खोजी र‍िपोर्ट ल‍िखी है ज‍िससे पता चलता है क‍ि कैसे दूसरी पार्टी से बीजेपी या एनडीए में आने के बाद दागी नेताओं को एजेंस‍ियों की कार्रवाई से राहत म‍िलती रही है।

भारत और भ्रष्टाचार

जनवरी 2024 में Corruption Perceptions Index-2023 का डेटा जारी हुआ था। ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल द्वारा जारी इस रिपोर्ट से पता चलता है कि भारत दुनिया का 93वां सबसे भ्रष्ट देश है। सूची में कुल 180 देशों शामिल हैं। इंडेक्स में देशों को उनके सरकारी क्षेत्र की कथित भ्रष्टाचार के स्तर के अनुसार सूचीबद्ध किया जाता है। लिस्ट में टॉप पर डेनमार्क है, उसके बाद फ़िनलैंड, न्यूजीलैंड और नॉर्वे हैं।

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Corruption Perceptions Index में भारत की स्थिति

यह सूचकांक 0 से 100 के पैमाने का उपयोग करता है, जहां 0 ‘अत्यधिक भ्रष्ट’ और 100 ‘भ्रष्टाचार मुक्त’ को प्रदर्शित करता है। 2023 में भारत का कुल स्कोर 39 था जबकि 2022 में यह 40 था। 2022 में भारत की रैंक 85 थी, जो 2023 में 93 रही। ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल की रिपोर्ट के मुताबिक, मोदी सरकार के 9 साल में  (2014-2023) में भ्रष्टाचार दो पॉइंट कम हुआ है।